लोकसभा चुनावः ये चुनाव नहीं लड़ रहे, लेकिन नतीजे तय करेंगे इनका सियासी भविष्य?

By प्रदीप द्विवेदी | Published: May 7, 2019 07:03 AM2019-05-07T07:03:46+5:302019-05-07T07:03:46+5:30

राजस्थान में ऐसे कई नेता हैं, जो चुनाव तो नहीं लड़ रहे हैं, पर अपने-अपने समाजों के बड़े नेता हैं. अब वे अपनी पार्टी को जीत दिलाने में कितने कामयाब रहते हैं, इस पर सभी की नजरें हैं.

Lok Sabha elections: These elections are not contesting, but the results will decide their political future in rajasthan? | लोकसभा चुनावः ये चुनाव नहीं लड़ रहे, लेकिन नतीजे तय करेंगे इनका सियासी भविष्य?

लोकसभा चुनावः ये चुनाव नहीं लड़ रहे, लेकिन नतीजे तय करेंगे इनका सियासी भविष्य?

राजस्थान में अंतिम चरण के मतदान के बाद अब केवल नतीजों का इंतजार है, लेकिन ये नतीजे केवल उम्मीदवारों की हार-जीत तय नहीं करेंगे बल्कि कई ऐसे नेताओं का सियासी भविष्य तय करेंगे जो चुनाव तो नहीं लड़ रहे हैं, किन्तु अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को जिताने के लिए अपनी सियासी ताकत दिखा रहे हैं.

राजस्थान में ऐसे कई नेता हैं, जो चुनाव तो नहीं लड़ रहे हैं, पर अपने-अपने समाजों के बड़े नेता हैं. अब वे अपनी पार्टी को जीत दिलाने में कितने कामयाब रहते हैं, इस पर सभी की नजरें हैं. 

किरोड़ीलाल मीणा, अपने समाज के बड़े नेता हैं. कभी वसुंधरा राजे से सियासी मतभेद के चलते उन्होंने बीजेपी छोड़ दी थी. कई राजनीतिक रंग देखने के बाद पिछले विधानसभा चुनाव 2018 से पहले वे बीजेपी में लौट आए थे. अब बीजेपी को उनसे काफी उम्मीदें हैं कि वे अपने प्रभाव वाली सीटों पर बीजेपी की जीत सुनिश्चित करेंगे.

राज्यसभा सांसद मीणा अपने प्रभाव क्षेत्र में पूरी ताकत लगा रहे हैं. मतदान के दौरान वे दौसा लोकसभा क्षेत्र के महाराजपुरा गांव में पहुंचे, जहां उन्होंने मतदाताओं के साथ नृत्य भी किया और मतदान के लिए प्रेरित भी किया.

हालांकि, विधानसभा चुनाव में तो वे उतना असर नहीं दिखा पाए थे, लेकिन इस बार अपेक्षित परिणाम मिलेंगे या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा. 
राजस्थान में गुर्जर आंदोलन के कारण अपनी अलग पहचान बनाने वाले किरोड़ी सिंह बैसला भी पिछले दिनों बीजेपी में शामिल हो गए थे. वे भी बीजेपी की विभिन्न सभाओं में तो अपनी मौजूदगी दिखा ही रहे हैं. वे हिण्डौन, करौली जैसे गुर्जर बाहुल्य विधानसभा क्षेत्रों का सघन दौरा करते हुए बीजेपी की कामयाबी के लिए पसीना भी बहा रहे हैं.
कभी बीजेपी के प्रमुख नेता रहे घनश्याम तिवाड़ी की बतौर ब्राह्मण नेता प्रदेश में विशेष पहचान है. उन्होंने भी वसुंधरा राजे से राजनीतिक मतभेद के कारण बीजेपी छोड़ी, अपनी पार्टी बनाई और विधानसभा चुनाव 2018 भी लड़ा, परन्तु अपेक्षित कामयाबी नहीं मिली. बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गए. तिवाड़ी भी इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवारों को जिताने के लिए सीएम अशोक गहलोत और उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट के साथ सभाएं कर रहे हैं. पहले तिवाड़ी अकेले कांग्रेस में शामिल हुए थे, किन्तु कुछ दिन पहले उनके समर्थक भी एक समारोह में कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. यह देखना भी दिलचस्प होगा कि तिवाड़ी अपने सियासी प्रभाव का कितना राजनीतिक लाभ कांग्रेस को दिला पाते हैं?
बहरहाल, चुनाव नहीं लड़ने वाले ऐसे नेताओं का सियासी कद इस बार के चुनावी परिणाम तय करेंगे!

Web Title: Lok Sabha elections: These elections are not contesting, but the results will decide their political future in rajasthan?



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