राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 में जहां कांग्रेस ने किसानों का कर्ज, युवाओं की बेरोजगारी, गैस-पेट्रोल के दाम जैसे जनहित के मुद्दों से बीजेपी पर सियासी हमला किया था, वहीं बीजेपी, गांधी-नेहरू खानदान, कांग्रेस के 70 साल, सोने का चम्मच, गरीब का बेटा जैसे मुद्दों पर फोकस थी, लेकिन मतदाताओं ने सोशल मुद्दों को महत्व दिया और इमोशनल मुद्दों को नकार दिया।
सवाल यह है कि- क्या लोकसभा चुनाव में भी सोशल मुद्दे, इमोशनल मुद्दों को मात दे पाएंगे? यह इस पर निर्भर है कि मतदान के वक्त तक बीजेपी इमोशनल मुद्दों को बनाए रख पाती है या नहीं!
सोशल मुद्दे स्थाई प्रभाव रखते हैं, जबकि इमोशनल मुद्दे तत्काल प्रभावी होते हैं, जो विवादास्पद बयान, भाषण, घटनाक्रम आदि पर निर्भर होते हैं और गुजरते समय के साथ कमजोर पड़ जाते हैं।
कांग्रेस के सामने चुनौतियां
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने दो चुनौतियां हैं, एक- केन्द्र सरकार की नाकामयाबी को उजागर करना, और दो- जनता को प्रदेश की कांग्रेस सरकार की उपलब्धियों का अहसास कराना।
सीएम गहलोत कहते हैं- सबसे गंभीर बात यह है, 70 साल तक कभी भी गांधी का नाम नहीं लिया गया, सरदार पटेल का नाम नहीं लिया गया और अब उनकी विरासत को चुरा करके मोदी जी राजनीति करना चाहते हैं देश के अंदर... देश उनको कभी स्वीकार नहीं करेगा!
राजस्थान में प्रभावी मुद्दें ही तय करेंगी हार-जीत
राजस्थान में इस बार भी सियासी जंग में हार-जीत, प्रभावी मुद्दों पर ही तय होगी। यदि इमोशनल मुद्दों को बनाए रखने में बीजेपी कामयाब रही तो चुनावी नतीजा उसके पक्ष में होगा और यदि कांग्रेस, सोशल मुद्दों को ठीक-से उभारने में कामयाब रही तो कांग्रेस लोस चुनाव में भी कामयाबी का परचम लहराएगी।