बिहार में लोकसभा चुनाव के तीन चरण पार कर जाने और चौथे चरण के मतदान के आज आखिरी दुन होने के बावजूद भी सूबें में सभी राजनीतिक दलों की नैया बीच मझधार में हिचकोले खा रही हैं. सभी दल अपनी नैया मझधार से निकालकर तट पर लाने के लिए हर तिकडम कर रहे हैं.
एक तरफ नेता जहां रैलियां और सभाओं के जरिए मतदाताओं को आकर्षित करने में जुटे हुए हैं, वहीं जीत का सहारा जातीय समीकरण भी है. दलों ने जातीय समीकरण के आधार पर ही नैया के 'खेवनहार' (उम्मीदवार) तय किए हैं.
क्या है जातीय राजनीतिकरण का पूरा ब्योरा
वैसे, बिहार में जातीय समीकरण कोई नई बात नहीं है. दलों के रणनीतिकार 'सोशल इंजीनियरिंग' के बहाने जातीय समीकरण तय करते हैं. सभी दलों के अपने जातीय कनेक्शन हैं. विपक्षी महागठबंधन में राजद जहां आज भी अपने पुराने जातीय समीकरण मुस्लिम और यादव गठजोड के सहारे चुनावी नैया पार कराने की जुगत में है.
वहीं भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल भाजपा ने एक बार फिर अपने परंपरागत वोट बैंक यानी अगडे (सामान्य) उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है. तो वहीं, जनता दल (युनाइटेड) ने पिछडों और अतिपिछडे पर भरोसा जताया है.
लोजपा ने अनुसूचित जाति पर जता रहा है भरोसा
एनडीए में शामिल लोजपा ने अनुसूचित जाति पर भरोसा जताया है. इस तरह देखा जाए तो सभी दलों के द्वारा अपने परंपरागत मतदाताओं को हीं लुभाने का प्रयास किया जा रहा है. महागठबंधन की बात की जाए तो यहां मुस्लिम और यादव (एमवाई) समीकरण को फिर से साधने की कोशिश की गई है.