झारखंड: राज्यसभा की दूसरी सीट के लिए किसी धनकुबेर की तलाश में कांग्रेस, भाजपा ने बिछाई चौरस

By एस पी सिन्हा | Published: March 13, 2020 06:06 AM2020-03-13T06:06:37+5:302020-03-13T06:06:37+5:30

पहले उम्मीदवार दिशोम गुरु शिबू सोरेन मैदान में हैं और इनकी जीत तय है, लेकिन महागठबंधन अगर दूसरा उम्मीदवार देता है तो भाजपा के लिए परेशानी हो सकती है. झारखंड विधानसभा में विधायकों की संख्या 81 है. इस वक्त 80 विधायक सदन में हैं. 27 विधायकों के प्रथम वरीयता के मतों के आधार पर देखें झारखंड में राज्यसभा की 2 सीटें हैं. हालांकि राज्यसभा चुनाव में भाजपा को आजसू का समर्थन मिल सकता है.

Jharkhand: Congress search of any Dhankuber for second seat of Rajya Sabha, BJP plays its game | झारखंड: राज्यसभा की दूसरी सीट के लिए किसी धनकुबेर की तलाश में कांग्रेस, भाजपा ने बिछाई चौरस

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

Highlightsझारखंड में दिशोम गुरु के नाम से प्रसिद्ध झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन को राज्यसभा भेजे जाने की तैयारी के बीच महागठबंधन में दूसरे उम्मीदवार को लेकर अभी भी संशय की स्थिती है. दूसरी तरफ भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश को अपना उम्मीदवार बनाया है.

झारखंड में दिशोम गुरु के नाम से प्रसिद्ध झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन को राज्यसभा भेजे जाने की तैयारी के बीच महागठबंधन में दूसरे उम्मीदवार को लेकर अभी भी संशय की स्थिती है. दूसरी तरफ भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश को अपना उम्मीदवार बनाया है. प्रकाश के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास और रवींद्र राय भी राज्यसभा की रेस में शामिल थे, लेकिन भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति में दीपक प्रकाश के नाम पर मुहर लगी.

यहां उल्लेखनीय है कि पहले उम्मीदवार दिशोम गुरु शिबू सोरेन मैदान में हैं और इनकी जीत तय है, लेकिन महागठबंधन अगर दूसरा उम्मीदवार देता है तो भाजपा के लिए परेशानी हो सकती है. झारखंड विधानसभा में विधायकों की संख्या 81 है. इस वक्त 80 विधायक सदन में हैं. 27 विधायकों के प्रथम वरीयता के मतों के आधार पर देखें झारखंड में राज्यसभा की 2 सीटें हैं. हालांकि राज्यसभा चुनाव में भाजपा को आजसू का समर्थन मिल सकता है.

आजसू के विधायक भाजपा के प्रत्याशी को अपना वोट दे सकते हैं. लेकिन आजसू ने अभी अपना स्टैंड क्लीयर नहीं किया है, लेकिन भाजपा द्वारा दीपक प्रकाश को उम्मीदवार घोषित किए जाने से इसकी संभावना बढ़ गई है. पूर्व में आजसू ने कहा था कि वह पार्टियों द्वारा प्रत्याशी की घोषणा किए जाने के बाद ही अपना पत्ता खोलेगी. इधर, चर्चा यह है कि आजसू के रुख के कारण ही भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को राज्यसभा चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार नहीं बनाया.

रघुवर दास का आजसू प्रमुख सुदेश महतो के साथ संबंध अच्छा नहीं रहा है. विधानसभा चुनाव में गठबंधन टूटने में भी एक बड़ा कारण इन दोनों नेताओं के बीच कटुता रही थी. हालांकि विधानसभा चुनाव के बाद आजसू के वरिष्ठ नेता चंद्रप्रकाश चौधरी सांसद के रूप में एनडीए की बैठक में शामिल होते रहे हैं. बरकट्ठा के निर्दलीय विधायक अमित यादव भी रघुवर दास के नाम पर राजी नहीं थे. 

झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास राज्यसभा की एक सीट जीतने की पूरी संख्या है. शिबू सोरेन की जीत पक्की मानी जा रही है. झामुमो के पास 29 सीटें हैं जीतने के लिए सिर्फ 27 सीट चाहिए. दूसरी सीट को लेकर महागठबंधन के पास जो आंकड़ा है वह इस प्रकार है. कांग्रेस के पास 16 विधायक हैं. हाल में ही झारखंड विकास मोर्चा से आये दो विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को जोड़ दें तो यह संख्या 18 पहुंचती है.

राजद के पास एक, एनसीपी के पास एक और माले के पास भी एक विधायक है और 2 निर्दलीय विधायक हैं. कांग्रेस निर्दलीय और दूसरे विधायकों के भरोसे उम्मीदवार मैदान में उतार सकती है. हालांकि राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवारों की घोषणा के वक्त एक ऐसा भी माहौल बन रहा है कि कांग्रेस अपना उम्मीदवार ही घोषित ना करे. इसके पीछे तो कारण बताया जा रहा है आंकड़ों का नहीं होना, लेकिन असली कारण है पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का उम्मीदवार नहीं बनाया जाना.

कांग्रेस और झामुमो पूरी तरह से विश्वास कर रहे थे कि भाजपा रघुवर को उम्मीदवार बनाएगी और ऐसे में आजसू और कुछ बागी विधायकों का साथ लेकर कांग्रेस राज्यसभा में पहुंच जाएगी. लेकिन आखिरी समय में भाजपा ने अपना रुख बदल लिया और प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश को राज्यसभा का उम्मीदवार घोषित कर दिया.

इस घोषणा से भाजपा के पुराने सहयोगी आजसू और निर्दलीय विधायक अमित यादव का साथ मिलता दिख रहा है. इस प्रकार भाजपा आसानी से जीत दर्ज करती दिख रही है. दूसरी ओर, कांग्रेस का कोई उम्मीदवार खड़ा भी हुआ तो हार को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा. कांग्रेस आंकड़ों में कमजोर होने के कारण पार्टी के बाहर के किसी धनकुबेर की तलाश में बताई जा रही है, जिसे साथ देकर आजसू और निर्दलीय विधायकों को भाजपा का समर्थन करने से रोका जाए.

ऐसे भी झारखंड में धनकुबेर आसानी से जीत दर्ज करते रहे हैं. आजसू समर्थित परिमल नाथवाणी लगातार दो बार जीत दर्ज कर चुके हैं और दोनों बार उन्हें निर्दलीय व अन्य दलगत विधायकों का भी साथ मिला है. भाजपा के पास 25 सीटें हैं. बाबूलाल भाजपा में शामिल हुए हैं उन्हें जोड़ दिया जाए तो यह संख्या 26 हो जाती है. राज्यसभा चुनाव में 1 सीट जीतने के लिए 1 विधायक कम हैं. वही भाजपा अपने पूर्व सहयोगी आजसू की तरफ देख रही है, जिसके पास दो विधायक हैं. अब कांग्रेस उम्मीदवार का नाम सामने आने के बाद ही विधायकों का रुख सामने आ सकता है. 

ऐसे में सत्ता में शामिल कांग्रेस के लिए अपने विधायकों के अलावा झामुमो के कुछ विधायक और कुछ निर्दलीय विधायकों का साथ आवश्यक है. कांग्रेस के 16 विधायकों के साथ-साथ झाविमो से कांग्रेस में आए दो विधायकों को जोड़ दें तो संख्या 18 हो रही है. दूसरी ओर, माना जा रहा है कि झामुमो के 29 विधायकों में से शिबू सोरेन के वोट देने के बाद शेष विधायक कांग्रेस को वोट करेंगे. वहीं राजद के एकमात्र विधायक सह मंत्री भी कांग्रेस के पक्ष में होंगे.

अब देखना है कि कांग्रेस किसी स्थानीय नेता को मैदान में उतारती है या केंद्र से किसी उम्मीदवार को जिम्मेदारी दी जाती है. इधर, मध्यप्रदेश में कांग्रेस विधायकों के संभावित विरोध को देखते हुए कांग्रेस नेतृत्व फूंक-फूंक कर निर्णय ले रहा है. माना जा रहा है कि अब कोई भी निर्णय लेने के पूर्व केंद्रीय नेतृत्व हेमंत सोरेन को भी विश्वास में लेगी.

झारखंड में झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के साथ सत्ता पर काबिज कांग्रेस किसी को भी नाराज करने की स्थिति में नहीं है. खासकर भाजपा में बाबूलाल मरांडी के विधायक दल के नेता चुने जाने के बाद कांग्रेसी सकते में हैं. कांग्रेस को यह विश्वास हो चुका है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व झामुमो को समर्थन देकर सत्ता में शामिल होने की जुगत में है. बाबूलाल मरांडी की ताजपोशी इसी के तहत उठाया गया कदम है. रघुवर दास को राज्यसभा नहीं भेजकर भाजपा ने कहीं न कहीं हेमंत की नाराजगी को भी कम करने का काम किया है.

ऐसे में यह माना जा रहा है कि आदिवासी चेहरा सामने होने के साथ ही झामुमो के लिए भाजपा भी अछूत नहीं रह गई है. कांग्रेस से किसी प्रकार की खटपट की स्थिति में झामुमो भाजपा की बदौलत सरकार में बनी रहेगी. सूत्रों के अनुसार भाजपा भी ऐसे ही मौके की तलाश में है. इधर, काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन, मंत्रिमंडल से ईसाई सदस्यों को दूर रख झामुमो ने भाजपा के लिए एक बेहतर वातावरण का संकेत तो दिया ही है. अब देखना यह होगा कि कांग्रेस उम्मीदवार को झामुमो कितना पसंद करता है. झामुमो की चुप्पी कांग्रेसी उम्मीदवार की हार की गारंटी होगी. ऐसे भी अभी तक के हालात में भाजपा की उम्मीदवारी मजबूत दिख रही है.

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