हरियाणा विधानसभा चुनावः 12 साल से अनुसूचित जाति के नेताओं के हाथ में कांग्रेस की कमान
By बलवंत तक्षक | Updated: September 14, 2019 10:40 IST2019-09-14T10:40:07+5:302019-09-14T10:40:07+5:30
अनुसूचित जाति के बड़े वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने पहले फूलचंद मुलाना, फिर डॉ. अशोक तंवर और अब कुमारी शैलजा को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है.

हरियाणा विधानसभा चुनावः 12 साल से अनुसूचित जाति के नेताओं के हाथ में कांग्रेस की कमान
हरियाणा में पिछले 12 वर्षो से लगातार कांग्रेस की कमान अनुसूचित जाति के नेताओं के हाथ में है. अनुसूचित जाति के बड़े वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने पहले फूलचंद मुलाना, फिर डॉ. अशोक तंवर और अब कुमारी शैलजा को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है. अनुसूचित जाति के राज्य में करीब 23 फीसदी वोट हैं और कांग्रेस को भरोसा है कि इस जाति के ज्यादातर मतदाताओं का समर्थन उसे ही मिलता है.
जाट और अनुसूचित जाति के गठजोड़ का प्रयोग मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कार्यकाल में शुरू किया गया था. वर्ष 2007 में मुलाना को कांग्रेस को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. वे 27 जुलाई, 2007 से 10 फरवरी, 2014 तक, करीब साढ़े छह साल तक इस पद पर रहे. वर्ष 2014 में हुए विधानसभा चुनावों से पहले हरियाणा में कांग्रेस की कमान डॉ. अशोक तंवर को सौंप दी गई. तंवर की अगुवाई में विधानसभा चुनावों में न केवल कांग्रेस हार गई, बल्कि तीसरे स्थान पर खिसक गई. इसके बावजूद तंवर करीब पांच साल सात महीने पार्टी के अध्यक्ष पद पर जमे रहे.
हरियाणा में जल्दी ही विधानसभा चुनाव होने हैं. लोकसभा चुनावों में कांग्रेस राज्य की सभी दस सीटें हार गई. इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विधानसभा चुनावों के मद्देनजर पार्टी की कमान पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा को सौंप दी. इस फैसले में पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा की सहमति भी शामिल थी. हरियाणा के 53 वर्षो के इतिहास में कांग्रेस के अब तक 20 अध्यक्ष रहे हैं. इस दौरान अनुसूचित जाति के चार नेताओं के हाथ में कांग्रेस की कमान रही है.
शैलजा के पिता चौधरी दलबीर सिंह भी कांग्रेस की कमान संभाल चुके हैं. उन्हें 3 नवंबर, 1979 को ऐसे हालात में कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था, जब हरियाणा में देवीलाल की सरकार थी और आपातकाल की सजा के तौर पर कांग्रेस 1977 के विधानसभा चुनावों में बुरी तरह से पिट गई थी. हरियाणा में हालात आज भी कांग्रेस के ज्यादा पक्ष में नहीं हैं.
पार्टी को सत्ता में लाना बड़ी चुनौती
राज्य में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं. इस समय इनमें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीटों पर कांग्रेस के चार विधायक हैं, जबकि राज्य में रिजर्व सीटों की संख्या 17 है. कई गुटों में बंटी कांग्रेस को एकजुट करना और पार्टी को फिर से सत्ता में लाना शैलजा के लिए बड़ी चुनौती है. कांग्रेस को बहुमत के लिए 46 सीटें चाहिए. शैलजा को मौजूदा 17 सीटों को बरकरार रखते हुए भाजपा और इनेलो से 29 सीटें छीननी होंगी. चार बार सांसद और मौजूदा राज्यसभा सदस्य कुमारी शैलजा अगर पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा के साथ मिलकर कांग्रेस को सत्ता दिलवा पाईं तो हरियाणा में यह सचमुच किसी चमत्कार से कम नहीं होगा.