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सोनिया गांधीः खामोश रहकर भी जीत जाती हैं, तो राहुल गांधी ज्यादा बोलकर उलझ जाते हैं!

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: September 2, 2020 21:44 IST

सितारों की चाल पर भरोसा करें तो सोनिया गांधी के विरोधी एक बार फिर सितंबर के अंत में सक्रिय हो सकते हैं. यह बात अलग है कि वे खास कुछ कर नहीं पाएंगे. यह वर्ष 2020 उनके लिए बेहतर है, हालांकि, विरोधी सक्रिय रहेंगे, लेकिन किसी बड़े सियासी संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा.

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ठळक मुद्देसितंबर माह के अंत से विरोधी एक बार फिर सक्रिय हो सकते हैं. विरोधी तो ज्यादा देर सक्रिय नहीं रह पाएंगे.अक्टूबर- 2020 के उतरार्ध से दिसंबर तक हालात पक्ष के रहेंगे, तो अपने कार्य को बेहतर अंजाम दे पाएंगे. वर्ष 2021 और 2022 में विरोधियों को मात देने में कामयाब रहेंगे, तो नए सियासी सहयोगी भी मिलेंगे.

जयपुरः सोनिया गांधी का नेतृत्व कांग्रेस के लिए फायदे का रहा है. उनके समय में कांग्रेस के खाते में ज्यादा कामयाबी और कम नाकामयाबी रही है. वे खामोश रहकर भी जीत जाती हैं, जबकि राहुल गांधी कई बार ज्यादा बोलकर उलझ जाते हैं.

सितारों की चाल पर भरोसा करें तो सोनिया गांधी के विरोधी एक बार फिर सितंबर के अंत में सक्रिय हो सकते हैं. यह बात अलग है कि वे खास कुछ कर नहीं पाएंगे. यह वर्ष 2020 उनके लिए बेहतर है, हालांकि, विरोधी सक्रिय रहेंगे, लेकिन किसी बड़े सियासी संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा.

अगस्त- 2020 के अंत के साथ ही सियासी विरोध भी लगभग खत्म हो जाएगा और सितंबर माह ठीक रहेगा, परन्तु सितंबर माह के अंत से विरोधी एक बार फिर सक्रिय हो सकते हैं. विरोधी तो ज्यादा देर सक्रिय नहीं रह पाएंगे, किन्तु सेहत के मोर्चे पर ध्यान देने की जरूरत रहेगी.

अक्टूबर- 2020 के उतरार्ध से दिसंबर तक हालात पक्ष के रहेंगे

अक्टूबर- 2020 के उतरार्ध से दिसंबर तक हालात पक्ष के रहेंगे, तो अपने कार्य को बेहतर अंजाम दे पाएंगे. उत्साहवर्द्धक समाचार भी मिलेंगे. वर्ष 2021 और 2022 में विरोधियों को मात देने में कामयाब रहेंगे, तो नए सियासी सहयोगी भी मिलेंगे. आश्चर्यजनक रूप से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रशासनिक सहयोग भी मिल सकता है. लेकिन, वर्ष 2023 कई चुनौतियां लेकर आएगा. वर्ष भर विभिन्न सियासी समस्याओं को सुलझाना होगा, जिसमें पचास प्रतिशत तक कामयाबी मिलेगी.

अलबत्ता, वर्ष 2024 में किस्मत करवट बदलेगी, कामयाबी करीब होगी और लक्ष्य-प्राप्ति में सियासी सहयोगी पूरा साथ देंगे. उल्लेखनीय है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से विवाह के बाद भी सोनिया गांधी के सक्रिय राजनीति में आने की कोई संभावना नहीं थी.

नेताओं ने सोनिया गांधी से पूछे बगैर उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने का ऐलान भी कर दिया

यही नहीं, राजीव गांधी की हत्या के बाद तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया गांधी से पूछे बगैर उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने का ऐलान भी कर दिया, लेकिन उन्होंने साफ इंकार कर दिया. लंबे समय तक वे सक्रिय राजनीति से दूर रहीं और अपने पुत्र राहुल और पुत्री प्रियंका का पालन-पोषण करने पर ही फोकस रहीं.

राजनीति ने करवट बदली और पीवी नरसिंहाराव के प्रधानमंत्रित्व काल के बाद कांग्रेस 1996 का लोकसभा चुनाव हार गई.कांग्रेस को फिर से मजबूत करने के लिए सियासी दबाव में सोनिया गांधी ने 1997 में कोलकाता में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और 1989 में वे कांग्रेस अध्यक्ष चुनी गयीं.

बेल्लारी, कर्नाटक और अमेठी, उत्तर प्रदेश से लोकसभा का चुनाव लड़ा और विजयी रहीं

सोनिया गांधी ने वर्ष 1999 में बेल्लारी, कर्नाटक और अमेठी, उत्तर प्रदेश से लोकसभा का चुनाव लड़ा और विजयी रहीं. इसी वर्ष वे 13वीं लोक सभा में विपक्ष की नेता चुनी गईं. वर्ष 2004 में सारे राजनीतिक पूर्वानुमान गलत साबित हुए, सोनिया गांधी ने पूरे देश में घूम कर खूब प्रचार किया जिसके नतीजे में यूपीए को दो सौ से ज्यादा सीटें मिली.

इसी वर्ष सोनिया गांधी 16-दलीय गठबंधन की नेता चुनी गईं. वे प्रधानमंत्री बन सकती थीं, परन्तु सियासी कारणों से उन्होंने डाॅ. मनमोहन सिंह को अपना उम्मीदवार बताया और डाॅ. सिंह प्रधानमंत्री बने. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भी यूपीए ने कामयाबी हासिल की और सोनिया गांधी यूपीए की अध्यक्ष चुनी गईं.

लोकसभा चुनाव 2019 में हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस्तीफ़ा दे दिया तो 10 अगस्त 2019 को सोनिया गांधी को पुनः कांग्रेस पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष चुना गया. कुछ समय पहले कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव को लेकर कुछ नेताओं ने पत्र के माध्यम से अपना नज़रिया पेश किया था, जिसे विरोध के रूप में देखा गया, लेकिन यह ज्यादा प्रभावी नहीं रहा और नया कांग्रेस अध्यक्ष बनने तक सोनिया गांधी को ही नेतृत्व की ज़िम्मेदारी दे दी गई!  

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