बिहार में विधानसभा चुनाव हो और उसमें लाल प्रसाद यादव की पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ही मैदान में ना उतरें तो कैसा लगेगा? पर ये हो चुका है, आगामी 11 मार्च को भभुआ विधानसभा उपचुनाव 2018 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सीधी टक्कर कांग्रेस से है। महागठबंधन में कांग्रेस की सहयोगी होने चलते आरजेडी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में बीजेपी की सहयोगी होने नाते जेडीयू, इस सीट पर अपने प्रत्याशी नहीं उतारे।
वर्तमान में सीट बीजेपी की है। लेकिन बीजेपी विधायक आनंद भूषण पांडेय के निधन के चलते सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं। लेकिन यह क्षेत्रीय चुनाव दो राष्ट्रीय पार्टियों के लिए इज्जत का सवाल बना गया है। केंद्रीय मंत्री एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह समेत कई दिग्गज बीजेपी नेता यहां भी वही थियरी फिट करने में लगे हैं, जिसका जिक्र पूर्वोत्तर जीतने के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्राधनमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस के बारे में बोल रहे थे।
बीजेपी भभुआ विधानसभा उपचुनाव 2018 को कांग्रेस मुक्त भारत के अपने अभियान से जोड़कर देख रही है तो कांग्रेस में आरजेडी से लड़कर खुद मैदान में उतरने के साहस को सही ठहराने के लिए एड़ी-चोटी का दम लगा बैठी है। शरद यादव जैसे बिहार के दिग्गज और जदयू से अलग हुए नेता एनडीए को धराशाई करने में लगे हैं।
भभुआ विधानसभा सीट की बारीक जानकारियां
कांग्रेस ने किन आंकड़ों पर आरजेडी से यह सीट छीनी और बीजेपी के सामने खड़ी हुई इसका जवाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कौकब कादरी बेहतर देंगे। लेकिन आंकड़े उनके खिलाफ हैं। भले आजादी के बाद के शुरुआती चुनावों में इस सीट पर कांग्रेस का एकछत्र राज्य रहा हो। पर आखिरी बार कांग्रेस पर इस सीट पर 28 साल पहले साल 1990 में जीती थी। जबकि भभुआ आरजेडी के मजबूत नेता जगदाबाबू का गृह जिला है। आरजेडी ने सन् 2000 और 2005 में हुए दो विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की थी।
दूसरी तरफ बीजेपी भभुआ में हुए अब तक के 15 विधानसभा चुनावों में पिछले चुनाव में पहली बार जीत का स्वाद चखा था। जेडीयू का खाता अभी इस सीट पर नहीं खुला है। लेकिन मौजूदा स्थिति ये है कि इस सीट के चारों ओर एनडीए की सीटें हैं। यह सीट पश्चिम और दक्षिण में चैनपुर, पूरब और उत्तर में मोहनियां से घिरा हुआ है। जबिक इसके कुछ हिस्से चेनारी विधानसभा सटे हैं। और इन सभी जगहों पर या तो बीजेपी के विधायक हैं या फिर एनडीए के।
ऐसे में बीजेपी में एक अनकहा उत्साह है। हालिया त्रिपुरा, नागालैंड चुनाव परिणाम भी कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के काम आए हैं। लेकिन जब यहां की राजनीति को जमीनी स्तर पर देखते हैं तो ये बातें निकलती हैं।
भभुआ के चुनावों में अब भी चल जाता है जाति का सिक्का
- एक बार भभुआ सीट जीत चुकी बीएसपी अघोषित तौर पर कांग्रेस के साथ है- पिछले चुनाव में बीएसपी के अपने आम वोटों के अलावा जाति विशेष के वोटों में भी जबर्दस्त प्रभाव डाल दिया था, इसी कारण भाजपा की जीत का अंतर कम हो गया था।- साल 2005 में जब दोबारा चुनाव हुए थे तो इस सीट पर बीएसपी के रामचंद्र सिंह यादव जीते थे, जिसमें यादव जाति के मतों का खासा प्रभाव बताया गया।- हालांकि उस समय भभुआ का परिसिमन नहीं हुआ था। परिसिमन होने के बाद तेजी से जातीय समीकरण भी बदले।- अब भभुआ क्षेत्र में ब्राम्हण, कुर्मी वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। इसका उदाहरण आखिरी चुनाव में दिखा था। इस बार भी वही चाल है उनके पास।- लेकिन अभी भी किसी की जीत हार तय करने के लिए वैश्य, अल्पसंख्यक, यादव, बिंद और राजपूत मतदाताओं की जरूरत पड़ती है। कांग्रेस प्रमुख तौर पर इसी में खेलेगी।
भभुआ विधानसभा उपचुनाव 2018 के उम्मीदवार
कहने को भले चुनाव में लड़ाई बजेपी और कांग्रेस आमने-सामने हैं अपने सही मायमों में इस सीट पर कुल 17 उम्मीदवार उतरे हैं।
1. रिंकी रानी पाडेय, बजेपी2. संभू नाथ सिंह पटेल, कांग्रेस 3. संप्रभावती देवी, बहुजन मुक्ति पार्टी4. सलीम अंसारी, भारतीय मोमिन फ्रंट5. अक्षयबर सिंह, निर्दलीय6. उज्जवल कुमर चौबे, निर्दलीय7. ओम प्रकाश सिंह, निर्दलीय8. कमलेश आजाद, निर्दलीय9. जगमोहन पाल, निर्दलीय10. जसवीर सिंह, निर्दलीय11. धर्मेंद्र सिंह, निर्दलीय12. राम दुलार चौधरी, निर्दलीय13. विकास सिंह, निर्दलीय14. विजयंता देवी, निर्दलीय15. शिव मूरत बिंद, निर्दलीय16. संतोष कुमार सिंह, निर्दलीय17. समीम रैन, निर्दलीय
भभुआ विधानसभा के वोटर
भभुआ विधानसभा कुल 2 लाख, 35 हजार के करीब मतदाता हैं। इनमें 1 लाख 24 हजार के आसपास पुरुष व 1 लाख 16 हजार से ज्यादा महिलाएं हैं। बीजेपी महिला वोटरों को भी इस बार खास तौर पर प्रभावित कर रही है। क्योंकि रिंकी पांडेय में पति के असमय मृत्यू के इमोशनल कार्ड के अलावा उनका महिला होना अपने आप में एक अपील है।