औरंगाबाद का नाम बदलने के पीछे वोट बैंक की राजनीति, कांग्रेस और शिवसेना की नूरा कुश्ती
By शीलेष शर्मा | Updated: January 6, 2021 18:27 IST2021-01-06T18:26:00+5:302021-01-06T18:27:33+5:30
महाराष्ट्र के औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजीनगर किए जाने का मुद्दा बीते कुछ दिनों से राज्य की राजनीति में चर्चा का विषय बना हुआ है। रेलवे पुलिस बल ने शहर के रेलवे स्टेशन की सुरक्षा बढ़ा दी है।

औरंगाबाद का नाम बदलने की संभावना समाप्त होती दिख रही है। (file photo)
नई दिल्लीः औरंगाबाद का नाम बदलने को लेकर कांग्रेस और शिवसेना के बीच शुरू हुई जंग अपने अंजाम तक पहुँचने से पहले ही दम तोड़ती नज़र आ रही है, जिससे औरंगाबाद का नाम बदलने की संभावना समाप्त होती दिख रही है।
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार दोनों ही दल इस मुद्दे को लेकर गंभीर नहीं हैं। सूत्रों ने बताया कि यह जुबानी जंग केवल अपने अपने वोट बैंक को बचाये रखने के लिये शुरू की गयी है, सरकार के वरिष्ठ मंत्री ने लोकमत से बात करते हुये कहा कि यह विवाद केवल अख़बार की सुर्ख़ियों के लिये है।
सूत्रों ने दावा किया कि कांग्रेस अपने मुस्लिम वोट बैंक को बचाये रखने के लिये इसका विरोध दर्ज़ करा रही है। इसके संकेत उस समय मिले जब अघाड़ी सरकार में कांग्रेस के मंत्री नितिन राउत ने कहा कि औरंगाबाद नाम ऐतिहासिक है।
इतिहास को आखिर बदलने की क्या ज़रूरत है। उनकी दलील थी कि नाम बदलने से समाज के एक वर्ग को चोट पहुँचेगी, नतीजा मुस्लिम और दलित मतदाता दूर चला जायेगा। ग़ौरतलब है कि असदुद्दीन ओवैसी पहले ही मुस्लिम मतदाताओं को तोड़ने में लगे हैं।
इस कारण कांग्रेस ऐसा कोई मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहती, जिससे ओवैसी अपने इरादों में पूरी तरह कामयाब हो सकें। दूसरी तरफ शिवसेना अपने पुराने गढ़ को दुरुस्त रखने के लिये हिन्दू कार्ड खेल कर औरंगाबाद का नाम बदलने का पासा फेंक कर भाजपा के मंसूबों को नाकाम करना चाहती है।
शिवसेना को डर है कि भाजपा उसके गढ़ में हिन्दू कार्ड फेंक कर सेना के जनाधार को तोड़ने की रणनीति बनायेगी। कांग्रेस और सेना अपने अपने वोट बैंक को बचाये रखने के लिये यह नाम बदलने की जुबानी जंग लड़ रहे हैं जिसका कोई नतीज़ा निकलने वाला नहीं है।