अटल बिहारी वाजपेयीः चार राज्यों से जीते थे लोक सभा चुनाव, कुछ ऐसा रहा राजनीतिक सफरनामा

By मुकेश मिश्रा | Updated: August 16, 2018 18:31 IST2018-08-16T18:31:03+5:302018-08-16T18:31:03+5:30

अटल बिहारी वाजपेयी देश के एकमात्र ऐसे राजनेता हैं, जो चार राज्यों के छह लोकसभा क्षेत्रों की नुमाइंदगी कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश के लखनऊ और बलरामपुर, गुजरात के गांधीनगर, मध्यप्रदेश के ग्वालियर और विदिशा और दिल्ली की नई दिल्ली संसदीय सीट से चुनाव जीतने वाले वाजपेयी एकलौते नेता हैं।

Atal Bihari Vajpayee life history political career and interesting facts | अटल बिहारी वाजपेयीः चार राज्यों से जीते थे लोक सभा चुनाव, कुछ ऐसा रहा राजनीतिक सफरनामा

अटल बिहारी वाजपेयीः चार राज्यों से जीते थे लोक सभा चुनाव, कुछ ऐसा रहा राजनीतिक सफरनामा

नई दिल्ली, 16 अगस्तः पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का दिल्ली के एम्स में गुरुवार को निधन हो गया। जीतने और हारने को लेकर कई कीर्तिमान देश के विभिन्न राजनेताओं के नाम पर दर्ज हैं, लेकिन वाजपेयी के नाम पर दो अटल कीर्तिमान दर्ज हैं।

वाजपेयी देश के एकमात्र ऐसे राजनेता हैं, जो चार राज्यों के छह लोकसभा क्षेत्रों की नुमाइंदगी कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश के लखनऊ और बलरामपुर, गुजरात के गांधीनगर, मध्यप्रदेश के ग्वालियर और विदिशा और दिल्ली की नई दिल्ली संसदीय सीट से चुनाव जीतने वाले वाजपेयी इकलौते नेता हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्‍म 25 दिसंबर 1924 को हुआ। वाजपेयी 1942 में राजनीति में उस समय आए, जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वो और उनके भाई 23 दिनों के लिए जेल गए। 1951 में आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी का गठन हुआ तो श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं के साथ अटल बिहारी वाजपेयी की अहम भूमिका रही।

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साल 1952 में अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार लखनऊ लोकसभा सीट से लड़ा, पर सफलता नहीं मिली। ये उत्तर प्रदेश की एक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में उतरे थे जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। अटल बिहारी वाजपेयी को पहली बार सफलता 1957 में लगी। 1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। लखनऊ में वो चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत जब्त हो गई लेकिन बलरामपुर संसदीय सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। 

वाजपेयी तीसरे लोकसभा चुनाव में 1962 में लखनऊ सीट से उतरे, लेकिन उन्हें जीत नहीं मिल सकी। इसके बाद वे राज्यसभा सदस्य चुने गए. इसके बाद 1967 में फिर लोकसभा चुनाव लड़े और लेकिन जीत नहीं सके। इसके बाद 1967 में ही उपचुनाव हुआ, जहां से वे जीतकर संसद बने.

इसके बाद 1968 में वाजपेयी राष्‍ट्रीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्‍यक्ष बने। उस समय पार्टी के साथ नानाजी देशमुख, बलराज मधोक तथा लालकृष्‍ण आडवाणी जैसे नेता थे. 1971 में पांचवें लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश के ग्वालियर संसदीय सीट से उतरे और जीतकर संसद पहुंचे। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में 1977 और फिर 1980 के मध्यावधि चुनाव में उन्होंने नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

1984 में अटल बिहारी ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर से लोकसभा चुनाव का पर्चा दाखिल कर दिया और उनके खिलाफ अचानक कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को खड़ा कर दिया। जबकि माधवराव गुना संसदीय क्षेत्र से चुनकर आते थे। सिंधिया से वाजपेयी पौने दो लाख वोटों से हार गए।

बता दें कि अटल बिहारी ने एक बार जिक्र भी किया था कि उन्होंने स्वयं संसद के गलियारे में माधवराव से पूछा था कि वे ग्वालियर से तो चुनाव नहीं लड़ेंगे। माधवराव ने उस समय मना कर दिया था, लेकिन कांग्रेस की रणनीति के तहत अचानक उनका पर्चा दाखिल करा दिया गया। इस तरह वाजपेयी के पास मौका ही नहीं बचा कि दूसरी जगह से नामांकन दाखिल कर पाते। ऐसे में उन्हें सिंधिया से हार का सामना करना पड़ा।

इसके बाद वाजपेयी 1991 के आम चुनाव में लखनऊ और मध्य प्रदेश की विदिशा सीट से चुनाव लड़े और दोनों ही जगह से जीते। बाद में उन्होंने विदिशा सीट छोड़ दी। हालांकि, 1996 में हवाला कांड में अपना नाम आने के कारण लालकृष्ण आडवाणी गांधीनगर से चुनाव नहीं लड़े। इस स्थिति में अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ सीट के साथ-साथ गांधीनगर से चुनाव लड़ा और दोनों ही जगहों से जीत हासिल की। इसके बाद से वाजपेयी ने लखनऊ को अपनी कर्मभूमि बना ली। 1998 और 1999 का लोकसभा चुनाव लखनऊ सीट से जीतकर सांसद बने।

दिलचस्प बात ये है कि 1962  में जब अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव हार गए तो उसके बाद वे राज्यसभा सदस्य के रूप में संसद पहुंचे। इसके बाद 1984 में जब हारे तो भी 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य के रूप में चुने गए।

आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की जीत हुई थी और वे मोरारजी भाई देसाई के नेतृत्‍व वाली सरकार में विदेश मामलों के मंत्री बने। विदेश मंत्री बनने के बाद वाजपेयी पहले ऐसे नेता थे जिन्‍होंने संयुक्‍त राष्‍ट्र महासंघ को हिन्‍दी भाषा में संबोधित किया।

इसके बाद जनता पार्टी अंतर्कलह के कारण बिखर गई और 1980 में वाजपेयी के साथ पुराने दोस्‍त भी जनता पार्टी छोड़ भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए। वाजपेयी बीजेपी के पहले राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बने और वे कांग्रेस सरकार के सबसे बड़े आलोचकों में शुमार किए जाने लगे।

1994 में कर्नाटक, 1995 में गुजरात और महाराष्‍ट्र में पार्टी जब चुनाव जीत गई उसके बाद पार्टी के तत्कालीन अध्‍यक्ष लालकृष्‍ण आडवाणी ने वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का उम्‍मीदवार घोषित कर दिया था। वाजपेयी 1996 से लेकर 2004 तक 3 बार प्रधानमंत्री बने। 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने। हालांकि उनकी सरकार 13 दिनों में संसद में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं करने के चलते गिर गई।

1998 के दोबारा लोकसभा चुनाव में पार्टी को ज्‍यादा सीटें मिलीं और कुछ अन्‍य पार्टियों के सहयोग से वाजपेयी ने एनडीए का गठन किया और वे फिर प्रधानमंत्री बने। यह सरकार 13 महीनों तक चली, लेकिन बीच में ही जयललिता की पार्टी ने सरकार का साथ छोड़ दिया जिसके चलते सरकार गिर गई। 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी फिर से सत्‍ता में आई और इस बार वाजपेयी ने अपना कार्यकाल पूरा किया।

English summary :
Atal Bihari Vajpayee was the only Indian Leader in Poltocal history who fought from 4 states at 6 different Lok Sabha seats and won. Atal Bihari Vajpayee was born on 25th December i.e. on Christmas. Here are some interesting facts from Atal Bihari Vajpayee fascinating political career.


Web Title: Atal Bihari Vajpayee life history political career and interesting facts

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