रोजाना बस 10 मिनट निकाल कर बन सकते हैं लखपति
By खबरीलाल जनार्दन | Published: April 29, 2018 08:38 PM2018-04-29T20:38:46+5:302018-04-29T20:38:46+5:30
रेखा अपना लिखित बजट बनाती है। उसमें वह छोटी से छोटी और हर बड़ी से बड़ी रकम का हिसाब रखती है।
रेखा और सुमित एक ही कंपनी में काम करते हैं, कंपनी में दोनों का पद सैलरी भी बराबर ही मिलती है। दोनों की आदतें लगभग एक सी है। दोनों ही अनर्गल खर्चों से बचते हैं। लेकिन रेखा के पैसे महीने के आखिर में बचते हैं। जबकि सुमित के पैसे कहां चले जाते हैं उसे ही पता नहीं चलता। ऐसा क्यों? आखिर रेखा ऐसा क्या करती है उसके पैसे क्यों बच जाते हैं और सुमित ऐसा क्या नहीं करता जिससे उसके पैसे नहीं बचते।
लिखित बजट बहुत जरूरी
असल में रेखा अपना लिखित बजट बनाती है। उसमें वह छोटी से छोटी और हर बड़ी से बड़ी रकम का हिसाब रखती है। इसमें वह अपनी आय, उसके निवेश, आमदनी, बचत और खर्चे के ऑर्डर में लिख देती है। वह जब महीने के आखिर में अपना बजट जांचती है तो कुछ रकम शेष रहती है। सुमित यह काम नहीं करता। वह भी अपने खर्चों का हिसाब करता है लेकिन उनका कूंजी तैयार नहीं करता।
असल में कई बार हम सोच रहे होते हैं कि हम कोई अनर्गल खर्च नहीं कर रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी हर रोज कुछ पैसे ऐसे खर्च हो जाते हैं जिनको ना खर्च करने से भी जिंदगी में कोई फर्क नहीं पड़ता। लिखकर बजट बनाने से आपको एहसास होगा कि आप कहां बचत कर सकते थे। अपने खर्चों का लिखित सबूत आपको मानसिक रुप से स्पष्ट संकेत दे सकता है।
आज की छोटी सी रकम आपको कल बड़ा फायदा दे सकती है
बजट लिखना, लेन-देन, भुगतान, खर्च का हिसाब लिखना बहुत अच्छी आदत है। इसके तहत वो 50 पैसे भी लिखें जो आपने एक कैचअप खरीदन के लिए खर्च किए हों। हो सकता है कि आपको ये फालतू लगे लेकिन बजट और हिसाब रखने से आपको पता लगेगा कि आपकी छोटी-छोटी बचत आपके कितने काम आ सकती है।
लिखने के बाद आप पाएंगे कि रेखा दिनभर में महज 50 रुपये सुमित की तुलना में बचा लेती है। यानी कि महीने में करीब 1500 की बचत। इस छोटी रकम को वो अच्छे म्यूचुअल फंड में डालती है। कुछ सालों के भीतर ही उसे इन्हीं पैसों के बदले ठीक-ठाक रिटर्न आने लगे हैं। इसलिए महीने के आखिर में रेखा के पास निवेश के लिए भी पैसे बचे रहते हैं। उसने अब इन्हीं पैसों से वो ऐसे म्यूचुअल फंड में निवेश कर रही है जिनसे 25 सालों बाद उसे 1 करोड़ रुपये तक के रिटर्न मिलेंगे।
और खास बात यह कि रोजाना का हिसाब-किताब करने में जो कुल वक्त लगता है वो है 10 मिनट। एक आम नौकरी करने वाले जैसे कि रेखा और सुमित को अपने दिनभर की लेन-देन लिखने में 10 मिनट से ज्यादा ही शायद वक्त लगता है।
महीने में दो बार देना होता है थोड़ा ज्यादा समय
अगर आप रोजाना 10 मिनट अपने बजट को दे रहे हैं तो उसके विश्लेषण के लिए आपको महीने में बस दो बार महीने की 10 और 25 तारीख को अपने वित्तीय खर्चों का पूरा विवरण देखना होता है। जैसे कि रेखा इसमें अपनी बैंकिंग अकाउंट, अपने क्रेडिट की जानकारी अपडेट करने आदि की जांच-पड़ताल कर लेती है।
इनमें सबसे खास बात यह होती है कि वह अच्छी तरह क्रेडिट कार्ड स्टेटमेंट जांच लेती है। इसमें कोई गलती नहीं करती। क्योंकि बहुत से लोगों के ढेर सारे पैसे क्रेडिट कार्ड के ब्याज भरते बीत रहे हैं। इस दौरान आप महीने सभी बिल भरते हैं लेकिन उसका रिकॉर्ड भी रखें। क्योंकि लेट फीस देना एकदम अपव्यय है।
सबसे अहम बात
अगर आप लिखित बजट मेंटने करना शुरू करते हैं तो उसी महीने से आपकी जिंदगी में बदलाव नजर आने लगेगा। शुरुआत में यह संभव है बहुत बड़े बदलाव के तौर पर न दिखे, पर कुछ ही महीने में आप अपनी जिंदगी इसका प्रभाव देखने लगेंगे।