मुक्काबाज Film Review: बरेली के टाइसन के बहाने सिस्‍टम की ऐसी-तैसी

By खबरीलाल जनार्दन | Published: January 12, 2018 09:21 PM2018-01-12T21:21:16+5:302018-01-13T02:46:16+5:30

'बहुत हुआ सम्मान, तुम्हारी ऐसी कि तैसी, गलियाएंगे सीना तान तुम्हारी ऐसी की तैसी'। ये गाने के बोल नहीं मुक्काबाज का फलसफा है।

Mukkabaaz movie review Anurag Kashyap strong comment onn system | मुक्काबाज Film Review: बरेली के टाइसन के बहाने सिस्‍टम की ऐसी-तैसी

मुक्काबाज Film Review: बरेली के टाइसन के बहाने सिस्‍टम की ऐसी-तैसी

अनुराग कश्यप जिसके लिए जाने जाते हैं, वही लेकर आए हैं। लेकिन अबकी कलेवर बदल गया है, वह संस्कारी छाता ओढ़े आए हैं। कारणों का विश्लेषण बाद में जरूर होगा, पहले 'मुक्काबाज'। 'मुक्काबाज' के तीन आयाम हैं। पहला, देश के मौजूदा हालात पर मजबूत कटाक्ष। 'बहुत हुआ सम्मान, तुम्हारी ऐसी कि तैसी, गलियाएंगे सीना तान, तुम्हारी ऐसी की तैसी', ये गाने के बोल नहीं मुक्काबाज का फलसफा है। दूसरा आयाम उत्तर प्रदेश में मुक्केबाजी पर तगड़ा विमर्श। जिला स्तरीय टीम में चयन के लिए खिलाड़ी को पेशाब पीने के लिए मजबूर हो जाना। और तीसरा, सच्ची कहानी, अनुराग कश्यप के निर्देशन के बावजूद बिना गाली गलौज वाली पारिवारिक फिल्म। मुख्य हीरो के 'भरपूर प्रेम सहित' वाली चिट्ठी के बाद भी कोई 'केवल वयस्कों लिए' वाला दृश्य नहीं है।

मुक्काबाज की‌ फिलॉस्फी

अनुराग कश्यप पूरी ठसक के सा‌थ सच दिखाने के हिमायती हैं। लेकिन सिस्टम को यह स्वीकार नहीं। उड़ता पंजाब के वक्त उन्हें फिल्म फर्टिनिटी से लेकर सेंसर बोर्ड के खिलाफ खड़ा होना पड़ा था। इसलिए इसबार अनुराग ने शातिराना अंदाज में फिल्म बनाई है। इस फिल्म में ये सबकुछ दिखाते हैं। अपने किरदारों से बार-बार बोलवाते हैं-

1. गोमांस की आशंका पर शख्स को इतना पीटा गया कि वह हमेशा के लिए कोमा में चला गया। (रवि किशन का किरदार)

2. भारत माता की जय बोलकर किसी को पीटना।

3. फेडरेशन के पैसों से अधिकरियों के घरों के तल्ले ऊंचा होना।

4. बाहुबली और गुंडा नेताओं का खेल विभाग पर प्रभुत्व।

5. सरकारी बाबुओं का ऑफ‌िस के सहयोगियों की दाल-भाजी खरीदवाने में इस्तेमाल।

7. जात-पात के आधार पर यूपी में भारी नस्लवाद।

6. महिलाओं को पैरों की जूती समझने वाली मानिकसता के लोग।

8. निजी रंज‌िश के चलते यूपी में अच्छे खिलाड़ियों को नजरअंदाज किया जाना।

ये सब दिखाते हैं। फिल्म में इस पर लंबी जिरह होती है। फिल्म का नाम मुक्काबाज क्यों रखा गया? सही शब्द तो मुक्केबाज होता है। इसका जवाब भी इसी दर्शन में छिपा है। कोच रवि किशन युवा विनीत सिंह के किरदार को बताते हैं, 'हम भी बहुत अच्छा लड़ते थे। हर बार उनके उकसाने पर मुक्का तान लेते थे। नतीजतन भूमिहारों ने कभी रिंग में उतरने ही नहीं दिया। ताउम्र उन्हें मुक्का भांजते रहे। अब तुम तय करो कि मुक्काबाज बनना है या मुक्केबाज'। फिल्म की शुरुआत में उत्तर प्रदेश कई बॉक्सिंग एसोसिएशनों, बॉक्सर बीजेंद्र सिंह को स्पेशल थैंक्स के क्रे‌डिट को भी फिल्म पूरा चरितार्थ करती है। इस क्षेत्र के भ्रष्टाचार और खेल की बारीकी दोनों को बखूबी उकेरती है।

मुक्काबाज की पटक‌था

मुक्काबाज की कहानी दो हिस्सों में है। फिल्म शुरू होती है। एक युवा श्रवण कुमार ‌सिंह (विनीत सिंह) जो नौकरी पाने के लिए नहीं, बल्कि असल मुक्केबाजी करना चाहता है, प्रदेश के सबसे दबंग बॉक्सिंग माफिया भागवान दास मिश्रा से दुश्मनी मोल ले लेता है। वह उनके रवैये से नाराज होता है। भगवान दास बरेली के सबसे प्रतिभाशाली बॉक्सरों से आटा पिसवाते हैं। शरीर मालिश कराते हैं। फिल्म के शुरुआत में ही श्रवण दोहरी गलती करता है। वह भगवान दास मिश्रा की गूंगी भतीजी सुनैना मिश्रा (जोया हुसैन) से प्यार कर बैठता है।

भगवान दास ठानते हैं कि तुम्हें पूरे प्रदेश में कहीं खेलने नहीं देंगे। श्रवण ठानता है कि वह मुक्काबाज बनकर रहेगा। इसके लिए वह एक बार भगवान दास मिश्रा का पेशाब भी पी लेता है। ले‌किन अगले ही पल वह भगवान की भतीजी का रिश्ता आ जाता है। श्रवण रिश्ता तोड़वाता है। भगवान इस बार उसे जेल करा देते हैं। दूसरी सुनैना उसे एक साल का मौका देती है। श्रवण कहता है सुनैना की खातिर मुक्केबाजी छोड़नी पड़ी तो छोड़ देगा। लेकिन तभी हरिजन कोच संजय सिंह (रवि किशन) प्रकट होते हैं। वह विनीत को वापस तैयार करते हैं और रिंग तक पहुंचाते हैं। अखबार में फोटो छपती है, बरेली का टाइसन। श्रवण को रेलवे में अस्‍थाई नौकरी लग जाती है। उधर सुनैना के पिता गोपाल, भगवान के डर को दरकिनार करके श्रवण से उसकी शादी करा देते हैं। यहां इंटरवल होता है। और लगता है फिल्म खत्म हो गई। क्या बचा दिखाने को?

दूसरे हिस्से में फिल्म एक खिलाड़ी की जद्दोजहद दिखाती है। जो सुबह रेलवे की नौकरी पर जाता है। वहां बैठे कुंठित अफसर का शिकार होता है। शाम को भागकर प्रैक्टिस करने जाता है। और घर लौट कर गूंगी पत्नी से बात करने के लिए भाषा ना सीख पाने की वजह से खिसियाता है। कुछ देर के लिए भगवान दास मिश्रा स्क्रीन से गायब हो जाते हैं। लगता है उन्होंने हथ‌ियार डाल दिए हैं। तभी फावड़ा लेकर अवतरित होते हैं। अपने बड़े भाई साहब का पैर तोड़ देते हैं। भतीजी को अगवा कर उसे ड्रग्स की सुइयां लगवाने लगते हैं। संजय कुमार (रवि किशन) के घर में बड़े की मांस रखवाकर इतना पिटवाते हैं कि वे कोमा में चले जाते हैं। श्रवण के घर का बिजली पानी बंद करा देते हैं। श्रवण को सुनैना के हवाले से तलाक के कागज भिजवा देते हैं।

यहां से फिल्म यथार्थ से नाटकीयता ओर बढ़ती है। श्रवण सड़क-सड़क अपनी पत्नी की गुमशुदगी के पोस्टर चिपकाता फिरता है। अपने मां-बाप पर चिड़चिड़ाता है। भगवान दास की गाड़ी के आगे आकर चिल्लाता है। पर अत्यंत परेशान होने के बाद भी वह अपनी बॉक्सिंग की प्रैक्टिस बंद नहीं करता। यहां से फिल्म क्लाइमेक्स के ओर बढ़ती है। रिंग में बॉक्‍सिंग के रीयल शॉट देखने को मिलते हैं। मुक्काबाज, मुक्केबाज बन पाएगा कि नहीं। यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी। क्योंकि क्लाइमेक्स चौंकाता है। भगवान दास मिश्रा हारते भी नहीं और श्रवण जीत जाता है।

मुक्काबाज के डायलॉग

मुक्काबाज बरेली आधारित फिल्म है। अनुराग कश्यप रेनूकूट में पैदा हुए और शुरुआती पढ़ाई भी वहीं से की है। ये दोनों जगहें यूपी की एक सी संस्कृति से आती हैं। ऐसे में मुमकिन है कि आपको संवाद के स्तर के ठेठ यूपीयाना शब्द सुनने को मिले। कुछ नमूने देखिए-

1. स्कूटर लमरेटा।
2. चापा तोहू, का ताक थऊ। (आप भी शुरू हो जाइए, ताकिए मत)
3. ये देश लौंडियाबाजी के चक्कर में आगे नहीं बढ़ पाया।
4. अरे भइया इनको मैदान कराने ले जा रहे हैं। (यूपी में मैदान करने जाने का मतलब होता है शौच के लिए जाना)
5. कोहबर का गोइठा बनाते रहना (शादी में कोहबर एक कमरे में बनाया जाता है। इसमें गोबर से बने देवी-देवताओं की पूजा होती है)
6. भरपूर प्रेम सहित तुम्हारा....
7. जानते हो तीन ईंटा पहली बार कैसे तोड़े, एक नाम रखे भगवान, दूसरे का दास, तीसरे का मिश्रा। 
8. जीभ चाटने के लिए बना है। अगर वह चाट भी ना पाए तो बेहतर हो कि मुंह में रहे।
9. आज तक हमरी खानदान में कौनो औरत की मर्जी चली है।
10. आधी ताकत वीर्य के साथ निकल जाती है। बॉक्सर को गेम के टाइम शादी थोड़े करनी चाहिए।
11. हम तुमसे बहुत अनाप-सनाप प्यार करते हैं।

अनुराग ने यूपी के कस्बों और ग्रामीण इलाकों के हर मूड में बोले जाने वालों संवादों को उसी अंदाज में प्रस्तुत किया है। अनुराग खुद लिखते हैं। विनीत सिंह भी वाराणसी से हैं। कहानी पर अनुराग के साथ काम करने वाले रंजन चंदेल और प्रसून मिश्रा भी यूपी की अच्छी समझ रखते हैं।

मुक्काबाज की सिनेमेटोग्राफी

फिल्म की शुरुआत गाय के बाड़ों से होती है। हीरो-हीरोइन एक दूसरे को चिट्ठी देते हैं। चिट्ठी के आखिरी में वो एक छोटा-सा दिल बनाकर नीली डॉट पेन से उसे रंगे होते हैं। आटा लेने चक्की पर जाते हैं तो वहां गेंहू चक्की में डाला जा रहा होता है। बाजार से आलू-लौकी खरीने के दृश्य। टूटे हुए शौचालय के दरवाजे में लोगों का जाना। हीरोइन का हीरो को देखने के लिए एक छत से दूसरी छत भागते हुए जाना। बारात में आर्केस्ट्रा पर गाने वाले लड़के के कपड़े। बॉक्सिंग रींग में फिल्माए गए असल मैच का वीडियो होने का भ्रम कराते दृश्य। छोटे शहरों के लड़कों को प्यार होने के बाद उनका लड़कियों के पीछा करने और उनके देखने के अंदाजों के दृश्य।

अनुराग कश्यप की फिल्मों के लोकशन और उनके फिल्माने के ढंग को सिनेमेटोग्राफर राजीव रवी बाकयदे समझ गए हैं। राजीव, नो स्मोकिंग के वक्त से ही अनुराग के सा‌थ हैं। अनुराग की सारी फिल्मों में कैमरे के पीछे वही होते हैं। इस बार यह जोड़ी यूपी के छोटे शहर को एकदम से पर्दे पर खींच लाई है। 

मुक्काबाज में अभिनय

मुक्काबाज में गिन के चार प्रमुख किरदार हैं। इसमें तीन मझे हुए अभिनेता हैं चौथी पहली फिल्म कर रही अभिनेत्री।

विनीत कुमर सिंहः फिल्म के प्रमोशन के दौरान विनीत दावा कर रहे थे कि श्रवण किरदार निभाने के लिए उन्होंने 700 दिन मेहनत की है। फिल्म देखते वक्त उनकी बात सच लगती है। तुलना ठीक नहीं होती पर बॉक्सिंग दृश्यों में बड़ा साफ नजर आता है, अब तक की पेशेवर एक्टरों की बॉक्सिंग और विनीत की बॉक्सिंग। रही बात किरदार के उतार-चढ़ाव की भाव-भंग‌िमाओं व्यक्त करने की तो विनीत गैंग्स ऑफ वासेपुर में ही दिखा चुके हैं। कैसे धंधे पर उतारे जाने की टिप्पणी वाला बेटा बाप के मरने के बाद माफिया बन जाता है। इसमें अपने इस पक्ष को वह और ऊपर उठाते हैं। शुरुआत में आशिक लौंडा, बीच में तनावग्रस्त पति, और लगातार रिंग में आते ही बॉक्सर दिखते हैं।

जिम्मी शेरगिलः रौबदार, धाकड़ किरदारों जिम्मी पर्दे पर ऐसे उभारते हैं, देख कर जलन हो जाए। साहेब बीबी गैंगस्टर में हमने उनकी साहिबी देखी है। मुक्काबाज में साहेब दबंग कोच भगवान मिश्रा के किरदार में हैं। अभिनय की अपनी पुरानी लाइनों को जिम्मी बिल्कुल भी पीछे नहीं जाने देते। ठेठ यूपीयाना टोन भी उन्होंने सीख ही डाली है। पहले बॉक्सर रहने के कारण उनकी मोतियाबिंद होने का भ्रम कराने वाली आंखें डराती हैं।

रवि किशनः इनके हिस्से दृश्य कम आए हैं। वाराणसी के हरिजन कोच की भूमिका में सुलझे हुए इंसान के तौर पर रवि जमे हैं। हालांकि यह डिपार्टमेंट नहीं है। उनका किरदार दृश्यम के अजय देवगन की याद दिलाता है। और रहने वाले वह जौनपुर (यूपी) के हैं तो भाषा की कोई परेशनी हुई नहीं। अपने हिस्से का काम उन्होंने सही से निभाया है।

जोया हुसैनः यह जोया की पहली फिल्म है। लंबी, छरहरी, खूबसूरत जोया के हिस्से गूंगी लड़की किरदार आया है। लेकिन इसको उन्होंने अपनी ताकत बना ली है। एंट्री सीन से उनके इशारे दिल छूते हैं। जिस तरह से वह समझाती हैं कि जैसे रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण को देखता है वैसे ही श्रवण मुझे देखता है। उनके यह समझाने के अंदाज को देखना दिलचस्प लगता है। कई मौकों पर वह ऐसे चहक कर फोन उठाती हैं लगता है अभी बोल देंगी। पर उनको सुनने के लिए हमें उनकी उनकी अगली फिल्म का इंतजार करना होगा।

सरप्राइज एलिमेंटः नवाजुद्दीन सिद्दकी को स्पेशल अपीयरेंस में आर्केस्ट्रा में गाने के सीन में रखा गया है। यह गैंग्स ऑफ वासेपुर के यशपाल शर्मा के किरदार का याद दिलाते हैं। 

मुक्काबाज में संगीत

इस मामले में इसबार अनुराग चूक गए हैं। आखिरी फिल्म रमन राघव में वह संगीत में चूके थे। मुक्काबाज में कुल आठ गाने हैं। एक गाने को 'तार-बिजली' (लोकगीत) अंदाज में फिल्माने की कोशिश भी की गई, पर वह जुबान पर नहीं चढ़ते। पैंतरा, ऐसी-तैसी जब दृश्यों के नेपथ्य में चल रहे होते हैं तो दृश्यों को मजबूत करते हैं लेकिन वह पूरे गाने का रूप नहीं ले पाते। गुलाल के पीयूष मिश्रा की सी कुछ कविताएं भी फिल्म में पढ़ी गईं लेकिन इनका प्रभाव वैसा नहीं हुआ।

मुक्काबाज****
निर्देशकः अनुराग कश्यप
कलाकारः विनीत कुमार ‌सिंह, जिम्मी शेरगिल, रवि किशन, जोया हुसैन
निर्माताः इरोज इंटरनेशनल व फैंटम

Web Title: Mukkabaaz movie review Anurag Kashyap strong comment onn system

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