महाराष्ट्र में कोरोना की अपेक्षा मातृ-शिशु मृत्यु ज्यादा, मौतों का आंकड़ा ग्यारह सौ के पार
By शिरीष खरे | Published: May 10, 2020 05:19 PM2020-05-10T17:19:14+5:302020-05-10T17:19:14+5:30
राज्य में अब तक कोरोना से 779 मरीज अपनी जान गंवा चुके हैं. लेकिन, राज्य में इस वर्ष 1 मार्च से 30 अप्रैल तक कुल 1,196 मातृ-शिशु दम तोड़ चुके हैं.
पुणे: देश भर में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. लेकिन, पूरा चिकित्सा-तंत्र कोरोना केंद्रित होने के कारण अन्य रोगों से पीड़ित रोगियों के लिए खासी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में मातृ-शिशु मृत्यु-दर को नियंत्रित करने के प्रयास भी शिथिल पड़ गए हैं.
यही वजह है कि महाराष्ट्र में पिछले दो महीने के दौरान मातृ-शिशुओं की मृत्यु का आंकड़ा ग्यारह सौ पार हो चुका है. राज्य में अब तक कोरोना से 779 मरीज अपनी जान गंवा चुके हैं. लेकिन, राज्य में इस वर्ष 1 मार्च से 30 अप्रैल तक कुल 1,196 मातृ-शिशु दम तोड़ चुके हैं.
यदि चिकित्सा-तंत्र के तहत सरकार द्वारा मातृ-शिशुओं की उचित देखभाल नहीं की गई तो आशंका है कि मई महीने में भी बड़ी संख्या में माओं और छोटे बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ सकती है.
राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, कोरोना संक्रमण काल के दौरान राज्य में मार्च से लेकर अप्रैल तक 228 माताओं और 968 शिशुओं की असमय मौत हो गई है.
बता दें कि केंद्र व राज्य सरकार द्वारा मातृ-शिशु मृत्यु रोकने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. इसमें जननी प्रसव सुरक्षा से लेकर नवजात शिशुओं की सुरक्षा के लिए विशेष योजनाएं संचालित की जा रही हैं.
किंतु, इन दिनों कोरोना संकट से निपटने के लिए मातृ-शिशु से जुड़ी चिकित्सा गतिविधियां प्रभावित हो गई हैं. वजह यह है कि पूरा पैरा मेडिकल स्टॉफ और आशा कार्यकर्ता कोरोना महामारी के बढ़ते खतरे को रोकने में व्यस्त हैं. ऐसी स्थिति में राज्य के विशेषकर गांव व आदिवासी अंचल में गर्ववती माताओं के स्वास्थ्य की उचित देखभाल नहीं हो पा रही है.
स्वास्थ्य विभाग के सह-संचालक डॉ. सतीश पवार से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने माना कि कोरोना संकट काल में अन्य बीमारियों से निपटना चुनौतीपूर्ण है.
वह कहते हैं, 'हमारी पूरी टीम कोरोना को रोकने के लिए लड़ रही है. निश्चित रूप से इसका बुरा प्रभाव माताओं की स्वास्थ्य से जुड़ी गतिविधियों पर पड़ा है. चिकित्सा के क्षेत्र में कार्य करने वाले बहुत सारे वाहन कोरोना के मरीजों को लाने में जुटे हैं.'
जाहिर है कि ऐसे में गर्ववती महिलाओं को उनकी जगह से अस्पताल तक लाने में वाहनों की कमी का सामना करना पड़ रहा है. वहीं, ग्रामीण अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के कर्मचारी भी कोरोना से जूझने में व्यस्त हैं.
हालांकि, पिछले महीने कोरोना संकट काल में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने महिला व शिशुओं की उचित देखभाल के लिए एक विशेष समिति गठित की है. लेकिन, हकीकत यह है कि अभी तक इस समिति की एक भी बैठक नहीं हुई है.
बता दें कि राज्य के सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों के 17 हजार पद रिक्त हैं. वहीं, पिछली राज्य सरकार अपने बजट की बहुत कम राशि प्राथमिक स्वास्थ्य तंत्र पर खर्च करती आई है.
यही वजह है कि राज्य में मातृ व शिशु मृत्यु को लेकर गत वर्षों में कई बार न्यायालयों द्वारा राज्य सरकार को फटकार लगाई जा चुकी है. ऐसे में कोरोना से बचाव के नाम पर अन्य सभी रोगों की रोगधाम कार्यक्रम प्रभावित होने से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं.