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मराठा आरक्षण पर 1 सितंबर को सुनवाई, महाराष्ट्र सरकार ने कोर्ट से कहा- 15 सितंबर तक भर्ती नहीं

By भाषा | Updated: July 28, 2020 06:49 IST

सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण पर सुनवाई के दौरान सोमवार को महाराष्ट्र सरकार ने साफ कर दिया है कि 15 सितंबर तक भर्ती प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ेगी।

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ठळक मुद्देमराठा आरक्षण पर अब 1 सितंबर को सुनवाई, संविधान पीठ को सौंपने संबंधी अर्जी पर 25अगस्त को विचार महाराष्ट्र सरकार ने ये भी साफ किया है कि 15 सितंबर तक भर्ती प्रक्रिया पर रोक जारी रहेगी

महाराष्ट्र सरकार ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि राज्य में 15 सितंबर तक जनस्वास्थ्य और मेडिकल शिक्षा एवं अनुसंधान विभागों के अलावा 12 फीसदी मराठा आरक्षण आधार पर रिक्त स्थानों की भर्ती प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ाई जायेगी।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की पीठ ने इसके साथ ही बंबई उच्च न्यायालय के आदेश और मराठा समुदाय के लिये शिक्षा और रोजगार में आरक्षण संबंधी महाराष्ट्र के कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई एक सितंबर के लिये स्थगित कर दीं।

संविधान पीठ को सौंपने को लेकर 25 अगस्त को होगा फैसला

पीठ ने कहा कि इस मामले को संविधान पीठ को सौंपने संबंधी अर्जी पर 25अगस्त को विचार किया जायेगा। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और पी एस पटवालिया के अनुसार चार मई, 2020 के सरकारी प्रस्ताव के अनुरूप 15 सितंबर, 2020 तक कोई नियमित नियुक्तियां नहीं की जायेंगी।

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा इस मामले की अंतिम सुनवाई की तत्काल सुनवाई की मुख्य वजह राज्य सरकार द्वारा सभी रिक्त पदों पर नियुक्तियों की प्रक्रिया जारी रखना था।

पीठ ने कहा, ‘चूंकि अब राज्य सरकार ने यह आश्वासन दिया है कि चार मई, 2020 के शासकीय आदेश के मुताबिक 15 सितंबर तक कोई भी नियमित नियुक्ति नहीं की जायेगी, इसलिए इस मामले को चार सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया जाये उस समय तक कोविड-19 महामारी से उत्पन्न स्थिति में सुधार हो सकता है। पीठ ने मेडिकल के पीजी पाठ्यक्रमों में प्रवेश के मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुये कहा कि वे अभी अंतिम चरण में हे।

पीठ ने स्पष्ट किया कि मेडिकल के स्नातक पाठ्यक्रमों मे आरक्षण के बगैर ही प्रवेश के मामले में सुनवाई की अगली तारीख पर विचार किया जायेगा। न्यायालय ने 15 जुलाई को कहा था कि शिक्षा और नौकरियों में मराठा समुदाय के लिये आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी महाराष्ट्र सरकार के कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 27 जुलाई से रोजाना वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये सुनवाई की जायेगी।

मराठा आरक्षण 2018 में किया गया था लागू

महाराष्ट्र में नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के मामलों में मराठा समुदाय के लिये आरक्षण की व्यवस्था के लिये राज्य में सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण कानून, 2018 लागू किया गया था।

बंबई उच्च न्यायालय ने पिछले साल 27 जून को अपने फैसले में इस कानून को सही ठहराते हुये कहा था कि 16 फीसदी का आरक्षण न्यायोचित नहीं है और इस कानून के तहत रोजगार के लिये 12 प्रतिशत तथा शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिये 13 फीसदी आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए।

उच्च न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील लंबित हैं। शीर्ष अदालत में सात जुलाई को इस मामले में पेश कुछ वकीलों ने कहा था कि इन याचिकाओं पर न्यायालय में सुनवाई की आवश्यकता है क्योंकि वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये हो सकता है कि इस पर उचित तरीके से न्याय नहीं हो सके।

पीठ ने उस समय भी कहा था कि फिलहाल न्यायालय में सुनवाई संभव नहीं होगी और वह अगले सप्ताह इस मामले में अंतरिम राहत के पहलू पर विचार करेगी। कोविड-19 महामारी संक्रमण की वजह से शीर्ष अदालत अभी वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से ही मुकदमों की सुनवाई कर रही है।

न्यायालय ने छह एमबीबीएस डॉक्टरों की एक अलग याचिका पर पिछले महीने महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा था। इस याचिका में यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि 12 प्रतिशत का मराठा आरक्षण मेडिकल के पीजी और डेन्टल पाठ्यक्रमों में शैक्षणिक सत्र 2020-21 में लागू नहीं होगा।

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