29 वर्षीय आदित्य ठाकरे गुरुवार को आगामी महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए मुंबई की वर्ली विधानसभा से नामांकन दाखिल करने के साथ ही चुनाव लडऩे वाले ठाकरे परिवार के पहले सदस्य बन गए।
1966 में शिवसेना की स्थापना के बाद से ही न तो बाल ठाकरे ने और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य ने कोई चुनावी लड़ा। पूरा चुनावी अभियान अपने इर्द-गिर्द घूमने के बावजूद बाल ठाकरे इस बात को लेकर स्पष्ठ थे कि वह न तो कोई पद ग्रहण करेंगे और न ही कभी चुनाव लड़ेंगे।
ठाकरे परिवार में किसी ने नहीं लड़ा था चुनाव
उनके बेटे उद्धव (2012 में बाल ठाकरे की मृत्यु की पद शिवसेना प्रमुख बने) ने भी इस परंपरा को कायम रखते हुए कभी चुनाव नहीं लड़ा। हालांकि ये अटकलें जरूर थी कि अगर शिवसेना 2004 और 2009 के विधानसभा चुनाव जीतती तो वह मुख्यमंत्री बन सकते थे। वहीं ठाकरे के राजनीतिक रूप से महत्वाकांक्षी भतीजे राज ठाकरे, जिन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के नाम से अपनी एक अलग पार्टी बनाई, ने कभी चुनाव लड़ने में दिलचस्पी दिखाई।
अब सवाल ये उठता है कि लगभग पांच दशक पुरानी परंपरा को तोड़कर आदित्य ठाकरे ने चुनाव लड़ने का फैसला क्यों किया?
आखिर आदित्य ठाकरे ने क्यों बदली पांच दशक पुरानी परंपरा
इस बारे में पार्टी के जानकारों का कहना है कि इसकी दो वजहें हैं, पहली-आदित्य को एक ऐसे नेता के तौर पर स्थापित किया जा सकता है जो जनता द्वारा चुनकर आया है, इससे जनता के बीच अपील बढ़ती है। दूसरा ठाकरे परिवार का मानना है कि रिमोट कंट्रोल के रूप में किसी और को पद पर बिठाने से अच्छा है सत्ता अपने हाथों में रखी जाए क्योंकि कोई और पार्टी को धोखा देने में जरा भी नहीं हिचकेगा।
जानकारों का मानना है कि 2014 के बाद से राज्य की राजनीतिक स्थितियां तेजी से बदली हैं, और अब नेता पार्टी के प्रति निष्ठा की चिंता किए बने बेहतर भविष्य के लिए दूसरी पार्टी में जाने से जरा भी नहीं हिचकते। ऐसे में किसी और के हाथ में सत्ता देने पर पार्टी के लिए उस पर नियंत्रण कर पाना मुश्किल होगा, तो किसी और को सत्ता दी ही क्यों जाए?
इन विशेषज्ञों का कहना है कि यहां तक कि उद्धव ठाकरे का मानना है कि उनके पिता द्वारा आगे बढ़ाए गए नेताओं ने मौका मिलने पर उन्हें धोखा दिया। नारायण राणे और छगन भुजबल को बाल ठाकरे द्वारा प्रमुख शक्तियां दी गई थीं, लेकिन उन्होंने अपने निजी फायदे के लिए पार्टी छोड़ते देर नहीं लगाई। ऐसे में वह नहीं चाहते कि भविष्य में भी ऐसा कुछ हो।
आदित्य ठाकरे के मामले में पिता उद्धव ठाकरे और मां रश्मि ठाकरे, दोनों का मानना है कि उन्हें विधायी शक्तियां हासिल करनी चाहिए और आने वाले वर्षों में राज्य का मुख्यमंत्री बनना चाहिए। उनका मानना है कि आदित्य हाथ में सत्ता होने पर पार्टी पर बेहतर नियंत्रण कायम कर पाएंगे।