BJP के सहयोगी के रूप में सत्ता में आने के लिए अजित ने जो कदम उठाया वह निश्चित रूप से एक तरह का विद्रोह था। इसके लिए उन्होंने एक तरह से अपने परिवार, वंशवाद और अपने चाचा के साथ के अपने संबंधों पर पर्दा डाल दिया था।
यह पहली बार नहीं हुआ जब एनसीपी पार्टी में इस तरह की घटना घटी है। आपको बता दें कि 2012 में एनसीपी पार्टी के विधायकों ने अपनी विधायक दल की बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव में विधायकों ने अजित पवार से महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री के रूप में दिए गए इस्तीफा को वापस लेने का आग्रह किया गया था। मुश्किल से एक महीने बाद, अपने चाचा शरद पवार के हस्तक्षेप के बाद, अजित ने एक बार फिर से डिप्टी सीएम के रूप में शपथ ली थी।
बुधवार को भी कुछ इसी तरह की घटना देखने को मिली जब राकांपा के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने नवगठित महा विकास अघाड़ी के विधायकों के सामने शरद पवार से एक भावनात्मक अपील की। इस अपील में उन्होंने शरद पवार से अजित को पार्टी में वापसी की अनुमति देने का अनुरोध किया।
हालाँकि, मराठा राजनीति के मज़बूत नेता शरद ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के पीए मिलिंद नार्वेकर को पास बुलाकर भुजबल को व्यक्तिगत संदेश भेजकर यह निर्देश दिया कि भुजबल अपना भाषण ज्यादा लंबा नहीं करें।
लगभग हर पार्टी की बैठक में शरद किसी भी मामले पर इसी तरह से सूक्ष्म संकेत देते हैं। इस बार भी भुजबल को संदेश भेजकर उन्होंने जो संकेत दिया इसका मतलब यह हो सकता है कि अजित राकांपा में वापस आ सकते हैं, लेकिन चीजें पहले के जैसी समान्य होने की संभावना नहीं है और संभव है कि अजित एक लंबे समय तक पुनर्वास प्रक्रिया में रह सकते हैं।
अजित ने बीजेपी के सहयोग से एक स्वतंत्र राजनीतिक करियर स्थापित करने की कोशिश की। इसके लिए उन्होंने परिवार, वंशवाद और अपने चाचा की राजनीतिक विरासत से अलग हटकर कुछ बड़ा करने का प्रयास किया था।
बाकी यह भी सही है कि अजित ने शरद पवार द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति के समान ही अवतार लिया है। शरद पवार जिन्होंने 70 के दशक में अपनी सरकार बनाने के लिए अपने गुरु वसंतदादा पाटिल के खिलाफ बगावत कर दी थी। दोनों के बीच समानता यह है कि दोनों सरकार की अंत लगभग एक तरह से हुई। हलांकि, भतीजे के पास अपने चाचा का दुलार है, लेकिन इसके बावजूद राकांपा के विधायकों को अपने पक्ष में अजित कामयाब नहीं हो पाए।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि अजित द्वारा इस विद्रोह के बावजूद, शरद पवार के अलावा पार्टी के किसी भी दूसरे नेता ने अजित पर बयानों से हमला नहीं किया।
पार्टी ने अजित पर दबाव बनाए रखने के लिए और वापस बुलाने के लिए वरिष्ठ नेताओं की फौज तैनात कर दी। इसके बाद अजित को पता चल गया था कि उनके चाचा के सामने उनकी एक नहीं चलेगी और यही वजह था कि उन्होंने अपने कार्यालय का प्रभार नहीं लेने का फैसला किया। यही नहीं सोमवार को तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस द्वारा बुलाए गए एक आधिकारिक सरकारी बैठक से भी दूर रहे।
मंगलवार को, भुजबल और सुनील तटकरे जैसे वरिष्ठ राकांपा नेताओं ने अजित को मनाने के लिए उनके आवास पर उनसे विस्तृत विचार-विमर्श किया। यही नहीं शरद पवार कबीले के सदस्य सदानंद सुले -सुप्रिया सुले के पति ने भी अजित से मुलाकात की।
अजित के एक करीबी सहयोगी ने कहा, "प्रतिभा ताई (शरद पवार की पत्नी) सहित सभी परिवार के सदस्यों ने उनसे पुनर्विचार करने के लिए कहा है।" इस तरह अजित को वापस बुलाने के लिए परिवार की तरफ से भी उनपर भावनात्मक दवाब बनाने का प्रयास किया गया।
राकांपा के पाले में लौटने के एनसीपी विधायकों के फैसले ने अजित को नाराज कर दिया। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद फ्लोर टेस्ट से लेकर भाजपा से दूरी बनाने को लेकर भी अजित ने अपने फैसले पर पुनर्विचार किया।
हालांकि, महागठबंधन की बैठक के दौरान, भुजबल ने कहा, “हमें मजबूत नेताओं की आवश्यकता होगी। मैं राकांपा नेताओं जयंत पाटिल और प्रफुल्ल पटेल से निवेदन करता हूं कि वे जायें और अजित दादा को राकांपा में वापस लाएं। मैं शरद पवार साहब से अनुरोध करता हूं कि वे हमें ऐसा करने की अनुमति दें। ”
पवार ने अपने भाषण में अजित का कोई संदर्भ नहीं लेने का फैसला किया। हालांकि, पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अतीत के विपरीत, अजित के लिए शरद पवार के साथ पहले जैसा अच्छा संबंध बना पाना आसान नहीं होगा।