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कश्मीर जिला परिषद चुनावः पाकिस्तानी बहू मैदान में, दो साल पहले भी दो पाकिस्तानी बहुएं बनी थीं पंच और सरपंच

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: December 3, 2020 14:52 IST

पाक कब्जे वाजे कश्मीर के मुजफ्फराबाद की सोमैया लतीफ सीमांत जिले कुपवाड़ा के द्रगमुला निर्वाचन क्षेत्र से सात दिसम्बर को चौथे चरण में जिला परिषद के चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने जा रही हैं।

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ठळक मुद्दे2018 में हुए पंचायत चुनावों में कश्मीर में दो पाकिस्तानी बहुएं पंच और सरपंच चुनी गई थीं।2018 में 35 वर्षीय आरिफा एलओसी के साथ सटी लोलाब घाटी के अंतर्गत खुमरियाल की सरपंच बनी थीं।

जम्मूः इसे बदलाव की बयार कहा जाए या कुछ और पर सच्चाई यही है कि एक बार फिर एक पाकिस्तानी बहू कश्मीर के चुनाव मैदान में है।

पहले भी वर्ष 2018 में हुए पंचायत चुनावों में कश्मीर में दो पाकिस्तानी बहुएं पंच और सरपंच चुनी गई थीं। हालांकि तब पुंछ में एक पाकिस्तानी बहू को पंचायत चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था। पाक कब्जे वाजे कश्मीर के मुजफ्फराबाद की सोमैया लतीफ सीमांत जिले कुपवाड़ा के द्रगमुला निर्वाचन क्षेत्र से सात दिसम्बर को चौथे चरण में जिला परिषद के चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने जा रही हैं।

राजनीतिक पंडितों के बकौल, इस महिला का जम्हूरियत में विश्वास जताना पाकिस्तान में बैठे उन आतंक के आकाओं के चेहरे पर तमाचा है, जो घाटी में जम्हूरियत को दबाने के लिए आतंकवाद का पाठ पढ़ाते रहते हैं। जानकारी के अनुसार मुजफ्फराबाद की सोमैया लतीफ पुनर्वास नीति के तहत अपने पति के साथ कश्मीर आई थीं, जोकि आतंकवाद में शामिल होने के लिए सीमा पार पाकिस्तान हथियारों की ट्रेनिंग लेने गया था। इस पुनर्वास नीति के तहत सरकार ने उन युवाओं को वापस आकर मुख्यधारा में शामिल होने का मौका दिया, जो एलओसी पार कर आतंकवाद में शामिल होने गए थे। 

इस नीति के तहत कई युवा पाकिस्तान से वापस लौटे। इनमें से कइयों ने वहीं शादी भी कर ली थी और वह अपनी बीवियों के साथ आए। सोमैया का पति भी उनमें से एक था, जिसने आम जिंदगी व्यतीत करने का फैसला लिया। अब सोमैया ने जम्हूरियत का चुनाव कर डीडीसी चुनावों में भाग लेने की ठानी है। इससे पहले वर्ष 2018 के नवम्बर महीने में सीमा पार से लौटे दो आतंकियों की पाकिस्तानी पत्नियां कश्मीर में बतौर पंच और सरपंच चुनी गईं थीं। जबकि तब पुंछ के मंडी इलाके में एक पाकिस्तानी बहू को प्रशासन ने पंचायत चुनाव लड़ने से ही रोक दिया था।

2018 के नवम्बर महीने में 35 वर्षीय आरिफा एलओसी के साथ सटी लोलाब घाटी के अंतर्गत खुमरियाल की सरपंच बनी थीं। उसका पति गुलाम मोहम्मद मीर वर्ष 2001 में आतंकी बनने के लिए एलओसी पार उस कश्मीर चला गया था। वहां एक जिहादी फैक्टरी में कुछ दिन रहने के बाद उसे अपनी गलती का अहसास हो गया और उसने आतंकवाद को त्यागकर मुजफ्फराबाद में एक नयी जिंदगी शुरू की। उसने वहां एक दुकान पर काम करना शुरू कर दिया और इसी दौरान उसने वहां आरिफा के साथ निकाह कर लिया।

अब यह सच है कि आरिफा और दिलशादा अब एलओसी पार से लौटे दो पुराने आतंकियों की पत्नियां नहीं रह गई हैं, अब वे अपनी-अपनी पंचायत की सरपंच हैं। आरिफा और दिलशादा उत्तरी कश्मीर के जिला कुपवाड़ा में प्रिंगरू और खुमरियाल में निर्विरोध सरपंच चुनी गई थीं।

पर पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर की रहने वाली नौशीन खुशकिस्मत नहीं थी जिसे पुंछ प्रशासन ने इसलिए सरपंच का चुनाव लड़ने से रोक दिया था क्योंकि वह एक उस आतंकी की पाकिस्तानी पत्नी थी जो कई सालों तक पाकिस्तान में रहा था और कुछ अरसापहले नेपाल के रास्ते से अपने चार बच्चों के साथ लौटा था।

टॅग्स :जम्मू कश्मीरपाकिस्तानचुनाव आयोगगृह मंत्रालयभारतीय सेना
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