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वर्ष-21: सांसों के लिए बदहवास होती रही दिल्ली; नहीं बदले जमीनी हालात

By भाषा | Updated: December 31, 2021 17:38 IST

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(गौरव सैनी)

नयी दिल्ली, 31 दिसंबर राष्ट्रीय राजधानी में वर्ष 2021 को ऐसे साल के रूप में याद किया जाएगा जहां पर पर्यावरण के लिहाज से कई आदेश आए लेकिन जमीन पर उसका कम असर देखने को मिला। इस साल वर्ष 2019 के स्तर से अधिक वायु प्रदूषण रहा और यहां की जीवन रेखा मानी जाने वाली यमुना सीवेज और औद्योगिक कचरे की वजह से अपनी पारिस्थितिकी को बचाने के लिए संघर्ष करती नजर आई।

सर्दियों की शुरुआत में पराली जलाने, दिवाली पर पटाखे जलाने और प्रतिकूल मौसमी परिस्थितियों की वजह से एक बार फिर दिल्ली गैस चेंबर में तब्दील हुई। दिवाली के बाद दिल्ली-एनसीआर के आसमान में धुएं और प्रदूषकों की मोटी परत जमी रही और कई दिनों तक यहां के लोगों को सूर्य के दर्शन नहीं हुए। हरित थिंक टैंक सेंटर ऑफ साइंस और इनवायरमेंट ने शहर के लिए इसे अबतक का सबसे लंबा धुंध काल करार दिया।

यहां तक कि दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस में महत्वकांक्षी प्रायोगिक परियोजना के तहत लगाया गया 24 मीटर ऊंचा स्मॉग टावर भी हवा को सांस लेने लायक नहीं बना सका। अधिकारियों ने बताया कि स्मॉग टावर‘‘ केवल एक सीमा तक ही प्रदूषण को कम कर सकता है और किसी को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि हवा को साफ करने वाली बड़ी मशीनें घातक वायु गुणवत्ता से राहत दे सकती हैं।’’

पर्यावरणविद और वैज्ञानिकों का भी कहना है कि कोई साबित रिकॉर्ड या आंकड़े नहीं है जो साबित करते हुए हों कि स्मॉग टावर प्रभावी हैं।

केंद्र के वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) द्वारा कई निर्देश जारी करने, जिनमें जीवाणु युक्त घोल छिड़क कर पराली के निस्तारण की विधि शामिल है, के बावजूद पंजाब और हरियाणा में वर्ष 2017,2018 और 2019 के मुकाबले पराली जलाने की घटनाएं अधिक रही। सात नवंबर को दिल्ली के प्रदूषण में पराली का योगदान 48 प्रतिशत तक पहुंच गया जो गत तीन साल में सबसे अधिक है।

दिल्ली ने देखा कि उच्चतम न्यायालय और सीएक्यूएम ने वायु प्रदूषण के संकट को नियंत्रित करने के लिए स्कूलों को बंद करने, निर्माण और ध्वस्तिकरण की गतिविधियों पर रोक लगाने और राष्ट्ररीय राजधानी के 300 किलोमीटर के दायरे में छह कोयला आधारित तापबिजली घरों और उद्योगों को अस्थायी रूप से करीब एक महीने तक बंद करने जैसे उपाय किए।

वायु गुणवत्ता पैनल ने ट्रकों के आने पर रोक लगाई, सीएक्यूएम ने इस साल वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए 47 निर्देश और सात परामर्श जारी किए जबकि दिल्ली सरकार ने वायु प्रदूषण को रोकने के लिए ‘‘रेड लाइट ऑन, गाड़ी ऑफ’सहित कई जागरूकता अभियान चलाए, लेकिन इनके प्रभाव को लेकर कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।

मानसून के अधिक समय तक सक्रिय रहने की वजह से अक्टूबर महीने में वायु गुणवत्ता गत चार साल में बेहतर रही जबकि नवंबर में वर्ष 2015 के बाद सबसे खराब रही। वहीं वर्ष 2015 के बाद दिसंबर महीने में सबसे लंबे समय तक वायु गुणवत्ता ‘‘ गंभीर’’श्रेणी में रही।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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