बेंगलुरु: मानसिक स्वास्थ्य को लेकर फैले कलंक को तोड़ने की जरूरत है। मन स्वस्थ होने पर ही शरीर स्वस्थ होता है। हम चांद पर पहुंच गए हैं लेकिन मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। 21वीं सदी में भी मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों में कलंक की भावना है।
न्यूरो क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ शुभंका काला ने लोकमत प्रतिनिधि से खुलकर बात की और कहा कि किसी भी बीमारी को लेकर समाज में व्याप्त कलंक का एक कारण उस समस्या के बारे में लोगों के बीच जानकारी का अभाव माना जाता है। लोगों को मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति जागरूक करने की जरूरत है। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग मानसिक समस्याओं को लेकर भ्रमित रहते हैं।
उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के बाद से लोगों में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जिज्ञासा जरूर बढ़ी है। चिंता और तनाव जैसी समस्याओं से शुरू होकर यह अवसाद जैसी गंभीर स्थिति का रूप ले सकती है। मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े सामाजिक कलंक के कारण लंबे समय से इस समस्या को नजरअंदाज किया जाता रहा है। लोग मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करने से कतराते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से लोगों व समाज का उनके प्रति नजरिया बदल जायेगा। मानसिक स्वास्थ्य और बीमारियों से जूझ रहा व्यक्ति कई अन्य नकारात्मक गुणों का शिकार हो समाज से अलग-थलग सा हो जाता है।
इस गंभीर और तेजी से बढ़ती समस्या के बारे में जमीनी स्तर पर लोगों को कैसे समझाया जाए, इस बारे में मेरे सवाल का जवाब देते हुये डॉ. काला ने कहा कि लोग अवसाद और आत्महत्या जैसे गंभीर मामलों को नजरअंदाज कर देते हैं और वैकल्पिक तरीकों से उन्हें ठीक करने की कोशिश करते हैं। पिछले वर्षों में सरकार ने इस दिशा में ध्यान दिया है, लेकिन शुरुआत हमें अपने व्यवहार में बदलाव लाकर करनी होगी। मानसिक स्वास्थ्य को हमारी बातचीत का हिस्सा बनाएं। लोगों से पूछें कि वे कैसा महसूस कर रहे हैं। क्या वे खुश हैं? इस बारे में दोस्तों और परिवार से चर्चा करनी चाहिए, अगर किसी को कोई समस्या हो तो संबंधित मनोचिकित्सक के पास ले जाने में संकोच न करें। मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों को अपने प्रियजनों के सहयोग और स्नेह की आवश्यकता होती है। उन्हें ऐसा महसूस न कराएं कि वे किसी भी तरह से अलग हैं या उनके साथ अलग तरह से व्यवहार किया जाना चाहिए, उन पर लेबल लगाने से बचें।
अंत में डा. काला ने कहा, "हमारे शरीर के मस्तिष्क में कई गुण होते हैं, इसलिए उसका स्वस्थ रहना भी उतना ही जरूरी है. जिंदगी चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, हमारे लिए खुश रहना भी उतना ही जरूरी है. हमें सकारात्मकता की जरूरत है जिसे हमें अपने आस-पास के वातावरण में बनाए रखना चाहिए। आइए हम सब मिलकर मानसिक बीमारी के कलंक से आगे बढ़ने का संकल्प लें।"