कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले से भाजपा में पंजाब में सिखों की नाराजगी खत्म होने, पश्चिमी उप्र में जाटों के मान जाने की जगी उम्मीद

By भाषा | Updated: November 19, 2021 17:43 IST2021-11-19T17:43:36+5:302021-11-19T17:43:36+5:30

With the decision to withdraw agricultural laws, BJP hopes to end the resentment of Sikhs in Punjab, Jats in western UP | कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले से भाजपा में पंजाब में सिखों की नाराजगी खत्म होने, पश्चिमी उप्र में जाटों के मान जाने की जगी उम्मीद

कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले से भाजपा में पंजाब में सिखों की नाराजगी खत्म होने, पश्चिमी उप्र में जाटों के मान जाने की जगी उम्मीद

नयी दिल्ली, 19 नवंबर पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव से पहले तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा से सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को लगता है कि इससे उसकी चुनावी संभावनाएं मजबूत होंगी और उसके प्रचार अभियान को एक नयी ऊर्जा मिलेगी ।

ज्ञात हो कि पिछले साल सितंबर महीने में केंद्र सरकार विपक्षी दलों के भारी विरोध के बावजूद कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार कानून और आवश्यक वस्तु संशोधन कानून, 2020 लेकर आई थी।

इसके बाद से ही देश के विभिन्न हिस्सों, खासकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इन कानूनों का भारी विरोध आरंभ हो गया और इन राज्यों के किसान दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर आकर डंट गए। इन तीनों राज्यों में किसानों की नाराजगी और लगभग साल भर से चल रहा आंदोलन भाजपा के लिए मुसीबत का सबब बन गए थे।

बहरहाल, तीनों कानूनों को निरस्त करने से भाजपा नेताओं में अब उम्मीद जगी है कि वह इस फैसले से पंजाब में सिखों की नाराजगी खत्म कर जहां एक नयी शुरुआत करेगी वहीं वहीं जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वह अपना जनाधार वापस पाने मे सफल होगी।

भाजपा नेताओं ने कहा कि यह निर्णय सिखों का दिल जीतने के लिए पार्टी के प्रामाणिक प्रयासों को दर्शाता है। ज्ञात हो कि कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन में हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों के साथ बड़ी संख्या में पंजाब के सिख भी शामिल थे।

सीमायी राज्य पंजाब में भाजपा इस बार अकेले दम मैदान में उतरने की तैयार में है। हालांकि उसकी कोशिश पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पार्टी के साथ गठबंधन की भी है। कांग्रेस से अलग होने के बाद सिंह ने अपनी नयी पार्टी का गठन किया है। किसानों के मुद्दों पर उन्होंने पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की थी। सुरक्षा से संबंधित विषयों पर भी वह लगातार बोलते रहे हैं और खालिस्तान समर्थकों और पाकिस्तान की ओर से असंतोष को हवा देने के प्रयासों को भी रेखांकित करते रहे हैं।

यहां यह बात भी अहम है कि प्रधानमंत्री ने कृषि कानूनों की घोषणा के लिए गुरु नानक देव की जयंती को चुना। उन्होंने अपने राष्ट्र के नाम संबोधन की शुरुआत भी गुरु नानक जयंती के अवसर पर लोगों को बधाई देने से की और इस बात पर भी प्रसन्नता व्यक्त की कि डेढ़ साल के अंतराल के बाद करतारपुर साहिब कॉरिडोर अब फिर से खुल गया है।

पंजाब में लंबे समय तक भाजपा का शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन था लेकिन इन तीनों ही कृषि कानूनों के मुद्दे पर उसने अलग रास्ता अख्तियार कर लिया और बाद में राज्य में बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने का एलान किया।

अब चूंकि तीनों कृषि कानून इतिहास बन जाएंगे, भाजपा को उम्मीद है कि वह अपने संभावित सहयोगी सिंह के साथ खोई जमीन वापस पा सकती है।

अगले साल की शुरुआत में जिन पांच राज्यों में विधानसभा होने हैं, उनमें भाजपा के लिए सबसे अहम उत्तर प्रदेश है। पिछले चुनाव में भाजपा ने राज्य की 403 में से 312 सीटों पर जीत हासिल की थी और राज्य में सरकार बनाई।

राज्य में फिर से सत्ता में लौटने की भाजपा की कोशिशों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश कृषि कानूनों के प्रभाव के चलते बाधक बनता दिख रहा था। जाटों में भाजपा के खिलाफ बढ़ती नाराजगी के मद्देनजर समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल ने हाथ मिला लिया। ऐसे में भाजपा के लिए इस क्षेत्र में स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण बनती दिख रही थी।

इस क्षेत्र के गन्ना किसानों में उत्पाद का उचित मूल्य ना मिलने को लेकर भी नाराजगी थी।

साथ ही लखीमपुर खीरी की घटना ने भाजपा की मुश्किलों को और बढ़ा दिया था। लखीमपुर खीरी में आठ लोगों की गाड़ियों से रौंदकर निर्मम हत्या कर दी गई थी। इस मामले में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ के पुत्र आरोपी हैं और वह फिलहाल इस मामले में गिरफ्तार हैं।

कृषि कानूनों को निरस्त करने का फैसला पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों को एक बार फिर भाजपा के पक्ष में कर सकता है। वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा और 2017 के राज्य विधानसभा के चुनावों में यहां के मतदाताओं ने भाजपा का भरपूर समर्थन किया था। अगर ऐसा होता है तो विपक्षी दलों की जाटों, अल्पसंख्यकों और अन्य छोटे दलों को साथ लाकर सामाजिक समीकरण साधने के प्रयासों को भी झटका लग सकता है।

हालांकि, राष्ट्रीय लोक दल के एक नेता ने दावा किया कि कृषि कानूनों को निरस्त करने के फैसले से विपक्ष को साहस मिलेगा और भाजपा के खिलाफ एकजुट होने का संदेश देगा क्योंकि इस फैसले से यह संदेश भी गया है कि लोकप्रिय प्रदर्शनों से सरकार को झुकाया भी जा सकता है।

पंजाब और उत्तर प्रदेश के अलावा अगले साल की शुरुआत में गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर में विधानसभा के चुनाव होने हैं।

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार की सुबह राष्ट्र को संबोधित करते हुए कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार कानून और आवश्यक वस्तु संशोधन कानून, 2020 को निरस्त करने की घोषणा की।

उन्होंने कहा कि इन कानूनों को निरस्त करने की संवैधानिक प्रक्रिया संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पूरी कर ली जाएगी।

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