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किसानों के प्रदर्शन में ‘‘दखल’’ नहीं देंगे, बिना किसी अवरोध के इसकी अनुमति होनी चाहिए : न्यायालय

By भाषा | Updated: December 17, 2020 22:52 IST

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नयी दिल्ली, 17 दिसंबर दिल्ली की सीमा पर किसानों के आंदोलन पर उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि किसानों के प्रदर्शन को ‘‘बिना किसी अवरोध’’ के जारी रखने की अनुमति होनी चाहिए और अदालत इसमें ‘‘दखल’’ नहीं देगी क्योंकि विरोध का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।

न्यायालय ने किसानों के अहिंसक विरोध प्रदर्शन के हक को स्वीकारते हुए सुझाव दिया कि केन्द्र फिलहाल इन तीन विवादास्पद कानूनों पर अमल स्थगित कर दे क्योंकि वह इस गतिरोध को दूर करने के इरादे से कृषि विशेषज्ञों की एक ‘निष्पक्ष और स्वतंत्र’ समिति गठित करने पर विचार कर रहा है।

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि वह इन सुझावों पर निर्देश लेने के बाद इस बारे में अवगत कराएंगे।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने कहा कि उसका यह भी मानना है कि विरोध प्रदर्शन करने के किसानों के अधिकार को दूसरों के निर्बाध रूप से आने-जाने और आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त करने के मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए।

न्यायालय ने कहा कि विरोध प्रदर्शन के अधिकार का मतलब पूरे शहर को अवरुद्ध कर देना नहीं हो सकता है।

पीठ ने कहा कि इस संबंध में समिति गठित करने के बारे में विरोध कर रहीं किसान यूनियनों सहित सभी पक्षों को सुनने के बाद ही कोई आदेश पारित किया जाएगा।

इसने कहा कि केन्द्र द्वारा इन कानूनों के अमल को स्थगित रखने से किसानों के साथ बातचीत में मदद मिलेगी।

हालांकि, अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इस सुझाव का विरोध किया और कहा कि अगर इन कानूनों का अमल स्थगित रखा गया तो किसान बातचीत के लिए आगे नहीं आएंगे।

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह केन्द्र से इन कानूनों पर अमल रोकने के लिए नहीं कह रही है बल्कि यह सुझाव दे रही है कि फिलहाल इन पर अमल स्थगित रखा जाए ताकि किसान सरकार के साथ बातचीत कर सकें।

पीठ ने कहा, ‘‘हम किसानों की स्थिति को लेकर चिंतित हैं। हम भी भारतीय हैं लेकिन हम ये चीजें जो शक्ल ले रही हैं, उसे लेकर चिंतित हैं।’’

इसने कहा, ‘‘वे (विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान) भीड़ नहीं हैं।’’

न्यायालय ने कहा कि वह विरोध कर रही किसान यूनियनों पर नोटिस की तामील करने के आदेश पारित करेगा और उन्हें शीतकालीन अवकाश के दौरान अवकाशकालीन पीठ के पास जाने की छूट प्रदान करेगा।

वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से इस मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की कि वह किसानों के विरोध प्रदर्शन के अधिकार को मानती है लेकिन इस अधिकार को निर्बाध रूप से आने जाने और आवश्यक वस्तुएं तथा अन्य चीजें प्राप्त करने के दूसरों के मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए।

पीठ ने कहा कि लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शन करने वालों से दूसरों के मौलिक अधिकारों के संरक्षण का अधिकार पुलिस और प्रशासन को दिया गया है।

पीठ ने कहा, ‘‘अगर किसानों को इतनी ज्यादा संख्या में शहर में आने की अनुमति दी गयी तो इस बात की गारंटी कौन लेगा कि वे हिंसा का रास्ता नहीं अपनायेंगे? न्यायालय इसकी गारंटी नहीं ले सकता। न्यायालय के पास ऐसी किसी भी हिंसा को रोकने की कोई सुविधा नहीं है। यह पुलिस और दूसरे प्राधिकारियों का काम है कि वे दूसरों के अधिकारों की रक्षा करें।’’

इसने कहा कि विरोध प्रदर्शन के अधिकार का मतलब पूरे शहर को अवरुद्ध करना नहीं हो सकता।

न्यायालय ने कहा कि पुलिस और प्रशासन का विरोध कर रहे किसानों को किसी भी तरह की हिंसा में शामिल होने के लिए उकसाना नहीं चाहिए।

शीर्ष अदालत ने 1988 में बोट क्लब पर किसानों के विरोध प्रदर्शन का भी जिक्र किया और कहा कि उस समय किसान संगठनों के आन्दोलन से पूरा शहर ठहर गया था।

न्यायालय ने कहा कि भारतीय किसान यूनियन (भानु), अकेला किसान संगठन जो उसके सामने है, से कहा कि सरकार के साथ बातचीत किए बगैर वे लगातार विरोध जारी नहीं रख सकते हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘आप सरकार से बात किए बगैर सालों साल विरोध में धरना नहीं दे सकते। हम पहले ही कह चुके हैं कि हम विरोध प्रकट करने के आपके अधिकार को मानते हैं लेकिन विरोध का कोई मकसद होना चाहिए। आपको सरकार से बात करने की आवश्यकता है।’’

इसने कहा कि इस समिति में पी साइनाथ जैसे विशेषज्ञों और सरकार तथा किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा जो इन कानूनों को लेकर व्याप्त गतिरोध का हल खोजेंगे।

पीठ ने कहा, ‘‘हम मानते हैं कि किसानों को विरोध प्रदर्शन का अधिकार है लेकिन यह अहिंसक होना चाहिए।’’

न्यायालय ने कहा कि विरोध प्रदर्शन का मकसद तभी हासिल किया जा सकेगा जब किसान और सरकार बातचीत करें और ‘‘हम इसका अवसर प्रदान करना चाहते हैं।’’

इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने स्पष्ट किया, ‘‘हम कानून की वैधता पर आज फैसला नहीं करेंगे। हम सिर्फ विरोध प्रदर्शन और निर्बाध आवागमन के मुद्दे पर ही फैसला करेंगे।’’

न्यायालय दिल्ली की सीमाओं पर लंबे समय से किसानों के आन्दोलन की वजह से आवागमन में हो रही दिक्कतों को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। इन याचिकाओं में दिल्ली की सीमाओं से किसानों को हटाने का अनुरोध किया गया है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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