चंडीगढ़, 9 जून: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि जीवनसाथी से ‘‘जबरन यौन संबंध बनाना ’’ और ‘‘अप्राकृतिक तरीके अपनाना’’ तलाक का आधार हैं। उच्च न्यायालय ने हाल में बठिंडा निवासी एक महिला की उस याचिका को स्वीकार कर लिया जिसमें उसने लगभग चार साल पुरानी अपनी शादी को खत्म करने का आग्रह किया था।
इससे पहले निचली अदालत ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया था। निचली अदालत ने कहा था कि यह साबित करना महिला का काम है कि उसके पति ने उसकी इच्छा के विपरीत उससे अप्राकृतिक मैथुन किया। अदालत ने कहा था कि महिला ने किसी चिकित्सा साक्ष्य या किसी खास उदाहरण का उल्लेख नहीं किया है।
न्यायमूर्ति एम एम एस बेदी और न्यायमूर्ति हरिपाल वर्मा की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा , ‘‘हमें लगता है कि याचिकाकर्ता के दावे को गलत तरीके से खारिज किया गया है। ’’
इसमें कहा गया, ‘‘गुदा मैथुन, जबरन यौन संबंध बनाने और अप्राकृतिक तरीके अपनाने जैसे कृत् , जो जीवनसाथी पर किए जाएं और जिनका परिणाम इस हद तक असहनीय पीड़ा के रूप में निकले कि कोई व्यक्ति अलग होने के लिए मजबूर हो जाए , निश्चित तौर पर अलग होने या तलाक का आधार होंगे। ’’
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महिला ने आरोप लगाया था कि अपनी कामवासना को पूरा करने के लिए उसका पति उसे अक्सर पीटता था और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता था। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि महिला द्वारा लगाए गए आरोप गंभीर प्रकृति के हैं।
अदालत ने कहा कि ये आरोप किसी प्रामाणिक साक्ष्य से साबित नहीं किए जा सकते क्योंकि इस तरह के कृत्य किसी अन्य व्यक्ति द्वारा नहीं देखे जाते या हमेशा चिकित्सा साक्ष्य से प्रमाणित नहीं किए जा सकते।
इसने कहा , ‘‘इस बारे में कोई संदेह नहीं है कि इस तरह के आरोप लगाना बहुत आसान और साबित करना बहुत कठिन है। ’’ उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी भी अदालत को इस तरह के आरोप स्वीकार करने से पहले हमेशा सतर्क रहना चाहिए , लेकिन साथ में मामले की परिस्थितियों को भी देखा जाना चाहिए।
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इसने कहा कि रिकॉर्ड में उपलब्ध परिस्थितियां संकेत देती हैं कि याचिकाकर्ता ने असहनीय परिस्थितियों में वैवाहिक घर छोड़ा। अदालत ने कहा , ‘‘ वर्तमान मामले में स्थापित क्रूरता मानसिक होने के साथ ही शारीरिक भी है। ’’ इसने कहा कि तलाक के आदेश के जरिए शादी खत्म की जाती है।