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क्या है सेंगोल? जिसे नए संसद भवन में रखा जाएगा, जानें इसका इतिहास

By अंजली चौहान | Updated: May 25, 2023 17:52 IST

भारतीय संसद का नया भवन 28 मई, 2023 को राष्ट्र को समर्पित किया जाएगा। सरकार ने कहा कि नया भवन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नए भारत के निर्माण के दृष्टिकोण का एक वसीयतनामा है। जो हमारी विरासत और परंपराओं के साथ आधुनिकता को जोड़ती है।

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ठळक मुद्देअंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में 1947 में इसका इस्तेमाल किया गया थाभारतीय इतिहास से जुड़ा है 'सेंगोल'भारतीय इतिहास से 'सेंगोल' का रिश्ता काफी पुराना है और यह चोल वंश से संबंधित है

नई दिल्ली: भारत में नए संसद भवन का 28 मई को उद्घाटन होने जा रहा है। इस बीच, कई विपक्षी दलों ने इस आधार पर उद्घाटन का बहिष्कार करने का फैसला किया है कि भारत के राष्ट्रपति को आमंत्रित नहीं किया गया है।

वहीं, गृह मंत्री अमित शाह ने नए संसद भवन में भारत के इतिहास से जुड़े सेंगोल को रखने का फैसला किया है। सेंगोल का भारत के इतिहास में अहम स्थान है। 

मगर भारतीय इतिहास में सेंगोल का क्या महत्व है और यह कहां से आया इसके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। ऐसे में आइए हम आपको बताते हैं कि सेंगोल का क्या सही इतिहास है...

- अगस्त 1947 में सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को दिया गया रस्मी राजदंड (सेंगोल) इलाहाबाद संग्रहालय की नेहरू दीर्घा में रखा गया था और इसे संसद के नये भवन में स्थापित करने के लिए दिल्ली लाया गया है।

- सेंगोल को भारत की आजादी के समय सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। 

- चांदी से निर्मित और सोने की परत वाले इस ऐतिहासिक राजदंड को 28 मई को लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के पास स्थापित किया जाएगा। उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नये संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित किया जाएगा। 

- केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि राजदंड अंग्रेजों से भारत को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक है, ठीक वैसे ही जैसे तमिलनाडु में चोल वंश के दौरान मूल रूप से इसका इस्तेमाल एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता हस्तांतरण के लिए किया जाता था।

- गृह मंत्री ने बाद में एक वेबसाइट भी लॉन्च की, जिसमें लघु वृत्तचित्रों के साथ-साथ राजदंड के महत्व से संबंधित पृष्ठभूमि की जानकारी है। संवाददाता सम्मेलन में राजदंड और सत्ता हस्तांतरण के संबंध में उस समय की मीडिया खबरों पर आधारित एक छोटी सी फिल्म भी दिखाई गई।

- केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा, ‘‘हमारी सरकार का मानना है कि इस पवित्र 'सेंगोल' को संग्रहालय में रखना अनुचित है। 'सेंगोल' की स्थापना के लिए संसद भवन से अधिक मुनासिब, पवित्र और उपयुक्त कोई अन्य स्थान नहीं हो सकता है।"

-भारतीय इतिहास से 'सेंगोल' का रिश्ता काफी पुराना है और यह चोल वंश से संबंधित है। 

-जिस दिन नया संसद भवन राष्ट्र को समर्पित किया जाएगा, उसी दिन मोदी बहुत विनम्रता के साथ, तमिलनाडु के एक अधीनम से ‘सेंगोल’ को ग्रहण करेंगे और बहुत सम्मान के साथ, इसे लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के पास रखेंगे।

- अधीनम के नेता ने 'सेंगोल' (पांच फीट लंबाई) बनाने के लिए जौहरी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को नियुक्त किया था। वुम्मिदी बंगारू ज्वैलर्स की आधिकारिक वेबसाइट में राजदंड के बारे में उल्लेख है और नेहरू की एक दुर्लभ तस्वीर भी है, जिसे ‘सेंगोल’ पर लघु फिल्म में भी दिखाया गया है। 

- मूल राजदंड सेंगोल के निर्माण में शामिल दो व्यक्तियों- वुम्मिदी एथिराजुलु (96) और वुम्मिदी सुधाकर (88) के नये संसद भवन के उद्घाटन समारोह में शामिल होने की उम्मीद है।

- राजदंड को इलाहाबाद संग्रहालय से दिल्ली लाया गया है। राजदंड सेंगोल को इलाहाबाद संग्रहालय की नेहरू गैलरी के हिस्से के रूप में जवाहरलाल नेहरू से जुड़ी कई अन्य ऐतिहासिक वस्तुओं के साथ रखा गया था।

- दक्षिण भारत में सेंगोल का खास महत्व है। इसे तमिल में सेंगोल कहा जाता है और इसका अर्थ होता है संपदा से संपन्न और ऐतिहासिक। 

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