"उत्तराखंड हिंदुत्व ईरान की परीक्षण प्रयोगशाला है", कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम ने राज्य द्वारा यूसीसी विधेयक को मंजूरी दिए जाने के बाद कसा तंज
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: February 8, 2024 11:21 AM2024-02-08T11:21:23+5:302024-02-08T11:27:21+5:30
उत्तराखंड विधानसभा द्वारा समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक को मंजूरी दिए जाने के एक दिन बाद कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम ने गुरुवार को कहा कि राज्य "हिंदुत्व ईरान के लिए परीक्षण प्रयोगशाला" है।
नई दिल्ली: उत्तराखंड विधानसभा द्वारा समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक को मंजूरी दिए जाने के एक दिन बाद कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम ने गुरुवार को कहा कि राज्य "हिंदुत्व ईरान के लिए परीक्षण प्रयोगशाला" है।
शिवगंगा से लोकसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी.चिदंबरम के बेटे कार्ति ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर किये एक पोस्ट में कहा, ''उत्तराखंड हिंदुत्व ईरान के लिए परीक्षण प्रयोगशाला है।''
Uttarakhand is the test lab for Hindutva Iran.
— Karti P Chidambaram (@KartiPC) February 8, 2024
उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार पर कार्ति का यह हमला सूबे की विधानसभा द्वारा बुधवार को आयोजित किये एक विशेष सत्र में बहुमत के साथ यूसीसी विधेयक पारित कर दिया है। विधानसभा द्वारा यूसीसी विधेयक पास होने के बाद उत्तराखंड इस कानून को मंजूरी देने वाला पहला राज्य बन गया। हालांकि गोवा यूसीसी (पुर्तगाली नागरिक संहिता) द्वारा शासित है और 1961 में इसकी मुक्ति के बाद इस कोड को बरकरार रखा गया है लेकिन विधानसभा ने उसके लिए अलग से कोई कानून पारित नहीं किया है।
उत्तराखंड सरकार के पारित विधेयक से सूबे के सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, भूमि, संपत्ति और विरासत पर सामान्य कानून एक समान लागू होंगे, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। हालांकि, धामी सरकार ने इस कानून के दायरे से राज्य के अनुसूचित जनजातियों को बाहर रखा है।
वहीं कांग्रेस नेताओं का बयान उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विरोध में आया है, जो विधेयक को पहले विधानसभा की चयन समिति के समक्ष के पास भेजने की मांग कर रहे थे। इसके अलावा, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी यूसीसी के खिलाफ अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया।
हैदराबाद के सांसद ने धामी सरकार के इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि उत्तराखंड यूसीसी विधेयक कुछ और नहीं बल्कि सभी के लिए लागू एक हिंदू कोड है।
उन्होंने कहा, "उत्तराखंड यूसीसी बिल सभी के लिए लागू एक हिंदू कोड के अलावा और कुछ नहीं है। सबसे पहले, हिंदू अविभाजित परिवार को नहीं छुआ गया है। आखिर क्यों? यदि आप उत्तराधिकार के लिए एक समान कानून चाहते हैं, तो फिर हिंदुओं को इससे बाहर क्यों रखा गया है? क्या कोई कानून बनाया जा सकता है? यदि यह आपके राज्य के अधिकांश लोगों पर लागू नहीं होता है तो एक समान?"
इसके अलावा ओवैसी ने कहा, "द्विविवाह, हलाला, लिव-इन रिलेशनशिप चर्चा का विषय बन गए हैं लेकिन कोई यह नहीं पूछ रहा है कि हिंदू अविभाजित परिवार को बाहर क्यों रखा गया है। कोई नहीं पूछ रहा है कि ऐसा करने की जरूरत क्यों थी। आदिवासियों को इससे बाहर क्यों रखा गया है? यदि एक समुदाय को छूट दी गई है तो क्या यह कानून एक समान सारे राज्य में लागू हो सकता है।"
मालूम हो कि उत्तराखंड सरकार द्वारा पारित किये गये यूसीसी विधेयक में विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, लिव-इन रिलेशनशिप और संबंधित मामलों से संबंधित कानून शामिल हैं। समान नागरिक संहिता विधेयक में लिव-इन रिलेशनशिप के लिए कानून के तहत पंजीकृत होना अनिवार्य बनाया गया है।
विधेयक लागू होने के बाद, "लिव-इन रिलेशनशिप" जैसे "रिश्ते" में प्रवेश करने की तारीख से एक महीने के भीतर कानून के तहत जोड़े को पंजीकृत होना होगा। इसके अलावा लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए वयस्कों को अपने माता-पिता से सहमति भी लेनी होगी।
यह विधेयक बाल विवाह पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है और तलाक के लिए एक समान प्रक्रिया शुरू करता है। यह संहिता सभी धर्मों की महिलाओं को उनकी पैतृक संपत्ति में समान अधिकार प्रदान करती है।
यूसीसी विधेयक के अनुसार, सभी समुदायों में शादी की उम्र महिलाओं के लिए 18 वर्ष और पुरुषों के लिए 21 वर्ष होगी। सभी धर्मों में विवाह पंजीकरण अनिवार्य है और बिना पंजीकरण के विवाह अमान्य होंगे।
शादी के एक साल बाद तलाक की कोई याचिका दायर करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। विवाह के लिए समारोहों पर प्रकाश डालते हुए यूसीसी में कहा गया है कि विवाह एक पुरुष और एक महिला के बीच धार्मिक मान्यताओं, प्रथाओं, प्रथागत संस्कारों और समारोहों के अनुसार किया जा सकता है या अनुबंधित किया जा सकता है।
हालांकि यह यूसीसी विधेयक भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के साथ शामिल अनुच्छेद 366 के खंड (25) के तहत किसी भी अनुसूचित जनजाति के सदस्यों और उन व्यक्तियों और व्यक्तियों के समूह पर लागू नहीं होगा जिनके प्रथागत अधिकार भारत के संविधान के भाग XXI के तहत संरक्षित हैं।