उत्तर प्रदेशः वीआईपी नंबर की चाह?, मनचाहा नंबर चाहने वाले हजारों वाहन मालिकों के करोड़ों रुपए फंसे, अफसरों से परिवहन मंत्री दयाशंकर ने की बात
By राजेंद्र कुमार | Updated: June 7, 2025 20:31 IST2025-06-07T20:30:45+5:302025-06-07T20:31:55+5:30
परिवहन मंत्री दया शंकर सिंह ने हस्तक्षेप कर विभागीय अफसरों को तय समय के भीतर सभी का जमा पैसा उनके खाते में भेजने का आदेश दिया है.

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लखनऊः उत्तर प्रदेश में करीब 32 लाख वाहनों की बिक्री होती है. इन वाहनों में कार, मोटरसाइकिल और स्कूटर शामिल हैं. ऐसे वाहनों को खरीदने वाले तमाम लोग वीआईपी नंबर की चाह रखते हैं. इसके चलते सैंकड़ों लोग परिवाहन विभाग में एक हजार से लेकर पांच हजार रुपए जमानत राशि के रुप में जमा कर वीआईपी नंबर पाने के लिए हर सप्ताह होने वाली आनलाइन नीलामी में शामिल होते हैं. इस नीलामी में सबसे ऊंची बोली वाले वाहन मालिक को उसका मनचाहा नंबर मिल जाता है, लेकिन जो लोग नंबर नहीं पा पाते हैं, उनकी जमा की गई जमानत राशि पाने में उन्हें वर्षों लग रहे हैं.
यूपी कारों की बिक्री
वर्ष 2022-23 में 3.49 लाख
वर्ष 2023-24 में 3.96 लाख,
वर्ष 2024-25 में 4.43 लाख
यूपी में दोपहिया वाहनों की बिक्री
2022-23 में 22.04 लाख
2023-24 में 24.52 लाख
2024-25 में 26.81 लाख
वीआईपी नंबर की न्यूनतम कीमत
वर्ग जमानत राशि
अति महत्वपूर्ण 5000
अति आकर्षक 2500
महत्वपूर्ण 2000
आकर्षक 1000
इसका नतीजा यह हो रहा है कि वीआईपी नंबर की चाहते रखने वालों के करोड़ों रुपए परिवहन विभाग में फंसे हुए हैं. अब यह लोग अपना धन पाने के लिए परिवहन विभाग और कोषागार का चक्कर लगा रहे हैं. फिलहाल अब इस मामले में सूबे के परिवहन मंत्री दया शंकर सिंह ने हस्तक्षेप कर विभागीय अफसरों को तय समय के भीतर सभी का जमा पैसा उनके खाते में भेजने का आदेश दिया है.
इसलिए धन वापसी हुई बंद
राज्य के परिवहन आयुक्त ब्रजेश नारायण सिंह के अनुसार, प्रदेश में वीआईपी नंबर पाने की चाह रखने वाले अपना मनचाहा नंबर पाने के लिए आवेदन कर एक हजार रुपए से लेकर पांच हजार रुपए जमा करते हैं. आमतौर पर एक नंबर पाने के लिए दो या उससे अधिक लोग प्रतिभाग करते हैं. सभी लोग अपने मनचाहे नंबर के सापेक्ष पंजीकरण शुल्क जमा करने के बाद बोली लगाते हैं.
जिसकी बोली सबसे अधिक होती है उससे ऊंची बोली की धनराशि जमा कराकर उसे नंबर दिया जाता है और बाकी को पंजीकरण की धनराशि बैंक खाते में वापस लौटाई जा रही है. एक वर्ष पहले तक यह व्यवस्था राज्य में सुचारु रुप से चल रही रही. परंतु बीते साल 27 मई 2024 को भारतीय रिजर्व बैंक आफ इंडिया की ओर से जारी हुई गाइडलाइन में यह कहा गया वाहन नंबर पाने की धनराशि आरटीओ दफ्तर के अलग खाते में क्यों रखी जा रही और जब धनराशि वापस करना है तो उसे ट्रेजरी में क्यों भेजा जा रहा.
इसे आरबीआई के ही कोर बैंकिंग प्लेटफार्म ई-कुबेर में जमा कराया जाए. यह कार्य 15 जुलाई 2024 से शुरू हो गया और नंबर पाने वालों का धन ई-कुबेर में पहुंचने लगा. इस व्यवस्था के चलते अब जिन्हें नंबर नहीं मिल पा रहा, उन्हें धन वापस नहीं मिल रहा. धनराशि की वापसी बंद होने से हजारों लोगों का करोड़ों रुपए फंसा है. सूबे में वीआईपी नंबर चाहने वाले जिन लोगों को उनका मनचाहा नंबर नहीं मिला, उनके द्वारा जमा ही गई राशि उन्हे कब मिलेगी आरबीआई की तरफ से यह बताया नहीं जा रहा है.
मंत्री पहल से पैसा वापसी का निकला रास्ता
यह जानकारी सूबे के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह को हुई तो उन्होने विभागीय अफसरों से इस मामले को समझा. उन्हे बताया गया कि विभाग वाहन नंबर की नई सीरीज शुरू होने की सूचना हर वर्ष देता है और फैंसी यानी मनचाहा नंबर के लिए ऑनलाइन आवेदन लेता है. इस व्यवस्था के तहत हर सप्ताह पहले चार दिन तक वाहन का पंजीकरण और तीन दिन वीआईपी नंबर की बोली लगती और दूसरे चरण में सात दिन तक ई-ऑक्शन चलता है. 21 दिन बाद अधिक बोली लगाने वाले को नंबर आवंटित होता है, जबकि नंबर न मिलने वालों को धनराशि वापस मिलती है, इधर दस माह से धन वापस नहीं हो रहा.
यह जानकारी प्राप्त होने के बाद परिवहन मंत्री ने इस मामले में परिवहन आयुक्त ब्रजेश नारायण सिंह ने आरबीआई को पत्र भेजकर उनसे इस समस्या को हल करने का अनुरोध करने को कहा. ताकि ऐसी व्यवस्था शुरू हो, जिसमें आसानी से भुगतान हो सके. इसके बाद दयाशंकर सिंह ने खुद भी आरबीआई के अफसरों से इस संबंध में बात कर उनसे इस समस्या का हल निकालने को कहा.
मंत्री की इस पहल पर आरबीआई के अधिकारी हरकत में आए और सूबे की अपर आयुक्त आईटी सुनीता वर्मा के साथ बैठक कर वीआईपी नंबर चाहने वालों की जमा धनराशि को उनके खाते में भेजे जाने की प्रक्रिया तय हुई. सुनीता वर्मा के अनुसार अब एसबीआई और एनआईसी मिलकर नया खाता तैयार कर रहे हैँ, ताकि धन वापसी की प्रक्रिया आसान हो जाए. जल्द परीक्षण पूरा होते ही लोगों को पैसा वापस मिलना शुरू होगा.