लखनऊ: कुछ समय पहले बिहार में उम्रकैद की सजा काट रहे बाहुबली आनंद मोहन सूबे की सरकार की पहल पर रिहाई हुई थी। इसे लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं ने बिहार की राजनीति में बड़ा विवाद किया था।
परंतु आनंद मोहन के लिए बिहार की सत्ता में साझेदार जेडीयू और आरजेडी दोनों पार्टियों ने भाजपा नेताओं के विरोध को तवज्जो नहीं दी थी और ठाकुर मतदाताओं का हितैषी साबित करने के लिए आनंद मोहन ही रिहाई का रास्ता तैयार कर दिया गया था।
अब आनंद मोहन ही तर्ज पर ही यूपी में कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा काट रहे बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी की रिहाई का आदेश जारी किया गया है। चार बार विधायक रहे बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी पूर्वांचल के बड़े ब्राह्मण नेता है।
इस वोट बैंक का हितैषी बनाने के लिए ही उनकी रिहाई का फैसला किया गया है। कहा जा रहा है कि जेल से बाहर आकर अमरमणि त्रिपाठी पूर्वांचल में भाजपा के हितैषी बनाकर अपने बेटे को फिर से विधायक बनाने की राजनीति करें।
पूर्वांचल की सियासत को करेंगे प्रभावित
बाहुबली नेता अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई पर भले ही विरोध के स्वर अभी ज्यादा सुनाई नहीं पड़ रहे हैं, लेकिन इसकी शुरुआत हो गई है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने अमरमणि की रिहाई को अनुचित बताया है।
कवयित्री मधुमती की बहन निधि भी अमरमणि की रिहाई का विरोध कर रही है। अब कहा जा रहा है कि जल्दी ही यह मामला तूल पकड़ेगा। इसकी वजह है, पूर्वांचल में ब्राह्मण और राजपूत के बीच लंबे समय से चली आ रही वर्चस्व की लड़ाई।
यूपी में सभी को पता है कि पूर्वांचल की सियासत में ब्राह्मणों का नेतृत्व हरिशंकर तिवारी कर रहे थे तो ठाकुरों के बीच वीरेंद्र प्रताप शाही की पकड़ बनाए थे।
योगी आदित्यनाथ और तिवारी गोरखपुर की राजनीति में एक-दूसरे के विरोधी रहे। हरिशंकर तिवारी के निधन के बाद राजनीति के उस दौर का दंड हो चुका है।
हरिशंकर तिवारी के दोनों बेटे भीष्म शंकर तिवारी और विनय शंकर तिवारी राजनीति में लेकिन वह ब्राह्मणों का नेतृत्व में सक्षम साबित नहीं हुए। ऐसे में अब पूर्वांचल की ब्राह्मण पॉलिटिक्स के लिए अमरमणि के लिए यह गोल्डन चांस है।
अब देखना यह है कि 66 साल के हो चुके अमरमणि जो महाराजगंज जिले की नौतनवां सीट से चार बार विधायक रहे हैं, अपनी राजनीति को कैसे आगे बढ़ते हैं।
अमरमणि को जानने वालों का कहना है कि सियासत की तासीर ही ऐसी है कि नेता कभी खत्म नहीं होता। और अमरमणि में जो जुझारू पर है, वह उन्हें शांत बैठने नहीं देगा, ऐसे में वह पूर्वांचल की सियासत को अपने तरीके से चलाएं। और अपने खिलाफ बुलंद होने वाली आवाजों का मुकाबला करेंगे।
इसके साथ ही वह अपने बेटे अमनमणि त्रिपाठी का राजनीतिक कैरियर बनाने में जुटेंगे। अमनमणि भी वर्ष 2017 में नौतनवा सीट से निर्दलीय विधायक चुने गए थे पर बीते विधानसभा का चुनाव वे हार गए।
अब उन्हे फिर से विधायक बनाना अमरमणि का सपना है। कहा यह भी जा रहा है कि बीते दस वर्षों के दौरान पूर्वांचल में ओबीसी के इर्द-गिर्द सिमट गई की सियासत जिसमे संजय निषाद और ओम प्रकाश राजभर जैसे ओबीसी नेता उभरे हैं। अब इन नेताओं से अमरमणि त्रिपाठी से टक्कर मिलेगी।