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परिसरों में कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में काम कर रहे हैं विश्वविद्यालय एवं संस्थान

By भाषा | Updated: July 20, 2021 20:22 IST

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(गुंजन शर्मा)

नयी दिल्ली, 20 जुलाई देशभर के विश्वविद्यालय एवं संस्थान ‘‘हरित विद्युत उत्पादकों’’ से बिजली खरीदने से लेकर परिसर में परिवहन के लिए केवल सौर संचालित वाहनों को अनुमति देने और अपशिष्ट शोधन संयंत्र स्थापित करने समेत कई कदम उठाकर अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने की कोशिश कर रहे हैं।

पेरिस जलवायु समझौते की पांचवीं वर्षगांठ के अवसर पर, 12 प्रमुख विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों के कुलपतियों ने अपने परिसरों में कार्बन तटस्थता लक्ष्य हासिल करने का खाका तैयार करने के लिए ‘‘नॉट जीरो, नेट जीरो’’ (शून्य नहीं, शुद्ध शून्य) नामक स्वैच्छिक संकल्प लिया था। तब से 250 से अधिक विश्वविद्यालय और संस्थान इस पहल में शामिल हो चुके है।

इस दिशा में नेतृत्व करते हुए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली, अपने कार्बन उत्सर्जन को 50 प्रतिशत से अधिक कम करने वाला केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित पहला प्रौद्योगिकी संस्थान बन गया है।

आईआईटी दिल्ली के निदेशक वी रामगोपाल राव ने कहा, ‘‘मुक्त पहुंच के माध्यम से हरित ऊर्जा प्राप्त करना एक महत्वपूर्ण पहल है जिसे हमने हाल के दिनों में स्वच्छ जलवायु के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए शुरू किया है। ऐसे कई सक्रिय कदमों के माध्यम से, हम निकट भविष्य में हरित बिजली खरीद पोर्टफोलियो का विस्तार करने की योजनाओं को पूरा करने में अच्छी प्रगति कर रहे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘विद्युत अधिनियम 2003 में खुली पहल के प्रावधानों ने आईआईटी दिल्ली जैसे बिजली के बड़े उपभोक्ताओं के लिए द्विपक्षीय अनुबंधों या ऊर्जा विनिमय के माध्यम से अपनी पसंद के जनरेटर (बिजली उत्पादकों) से बिजली खरीदना संभव बना दिया है। हमने हरित ऊर्जा के स्रोत की पहचान करने के लिए एक कारोबारी के रूप में पीटीसी इंडिया लिमिटेड को शामिल करके इन प्रावधानों का उपयोग अपने लाभ के लिए किया है। हरित विद्युत उत्पादकों से दो मेगावाट बिजली खरीदना सालाना लगभग 14,000 टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन समाप्त करने के बराबर है।’’

टीईआरआरई (पर्यावरण के लिए प्रौद्योगिकी, शिक्षा, अनुसंधान और पुनर्वास) नीति केंद्र के अध्यक्ष राजेंद्र शेंडे ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने अपनी नवीनतम 'उत्सर्जन अंतर रिपोर्ट' में कहा है कि 2015 के पेरिस जलवायु समझौते के तहत किये गए वादों को पूरा करने के लिये देशों ने पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं और इसलिए यह जरूरी है कि देश आगामी 30 से 40 साल में ‘‘शुद्ध शून्य उत्सर्जन’’ का लक्ष्य हासिल करें।

उन्होंने कहा, "विश्वविद्यालय परिसरों में 'नॉट जीरो नेट जीरो' शुरू करने से ज्यादा प्रभावी कोई कदम नहीं है।"

कार्बन उत्सर्जन कम करने की कोशिशों के तहत आईआईटी मंडी में एक सक्रिय हरित समिति का गठन किया गया है, जो परिसर में सभी हरित गतिविधियों का प्रबंधन करती है।

आईआईटी मंडी में हरित समिति के अध्यक्ष और असोसिएट प्रोफेसर सीएस यादव ने कहा, “हम जानते हैं कि पूर्ण कार्बन तटस्थता का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल है। लेकिन नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों को अपनाने और उन पर निर्भरता बढ़ाने के प्रयास जारी हैं और अन्य गतिविधियों के जरिये कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिये भी कोशिश की जा रही है।”

आईआईटी मद्रास के परिसर में एक पूरी तरह से स्वचालित केंद्रीकृत चार एमएलडी-क्षमता वाला अवजल शोधन संयंत्र (एसबीआर तकनीक + यूएफ + ओजोनेशन) है, जो अवजल का 100 प्रतिशत शोधन करता है।

आईआईटी मद्रास के निदेशक भास्कर राममूर्ति ने कहा, "हमने छतों पर अधिकतम संभव सौर पैनल स्थापित किए हैं। हमारे परिसर में लगभग 45,000 पेड़ हैं, लेकिन हमने यह गणना नहीं की है कि वे कितना कार्बन अवशोषित करते हैं और वे ग्रिड से हमारी बिजली की खपत और ईंधन के हमारे उपयोग की कितनी क्षतिपूर्ति करते हैं। हालांकि परिसर में ईंधन का बहुत कम इस्तेमाल होता है, क्योंकि छात्र ईंधन से संचालित वाहन इस्तेमाल नहीं करते। परिसर में हमारे छात्र ई-रिक्शा और इलेक्ट्रिक बसों का इस्तेमाल करते हैं।’’

आईआईटी गुवाहाटी ने एकल उपयोग वाली प्लास्टिक को परिसर में प्रतिबंधित कर दिया है और परिसर में रहने वाले लोग परिवहन के लिये साइकिल का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं।

संस्थान के एक प्रवक्ता ने कहा, “हरित बैटरी चालित शून्य उत्सर्जन वाली साझा उपयोग की टैक्सियां परिसर में परिवहन के लिये मंगाए जाने पर उपलब्ध रहती हैं। परिसर अपनी बिजली संबंधी जरूरतों का एक तिहाई सौर ऊर्जा से पूरा करता है और इस तरह हरित ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ा रहा है। कार्यालयों में कम ऊर्जा खपत वाले एलईडी बल्ब लगाए गए हैं।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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