पटना: केन्द्रीय मंत्री एवं जदयू के वरिष्ठ नेता ललन सिंह के द्वारा अल्पसंख्यकों को लेकर यह कहे जाने पर कि आप लोग जदयू को वोट नहीं देते हैं, जबकि सरकार आपके लिए काम करती रहती है। इसको लेकर प्रदेश का सियासी पारा चढ़ गया है। जदयू इस मुद्दे पर ललन सिंह के बयान से पल्ला झाड़ते दिखी, वहीं इस मुद्दे राजद इस मुझे पर आक्रामक हो गई। दरअसल, केंद्रीय मंत्री ने रविवार को मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कॉलेज परिसर में आयोजित जदयू कार्यकर्ता सम्मेलन में शामिल होने पहुंचे थे।
ललन सिंह ने मंच से बोलते हुए सीधे तौर पर कह दिया कि अल्पसंख्यक समाज के लोग जदयू को वोट नहीं देते है। जबकि उनके 19 वर्षों के कार्यकाल में अल्पसंख्यकों के लिए जितना विकास हुआ है, वह आजादी के बाद बिहार के इतिहास में किसी ने नहीं किया।
उन्होंने कहा कि बिहार में लालू राबड़ी जी के राज में अल्पसंख्यक की क्या स्थिति थी? मदरसा शिक्षकों को महज 3-4 हजार सैलरी मिलती थी। लेकिन, नीतीश राज में सातवें वेतन आयोग तक का लाभ मिल रहा है। लेकिन, अल्पसंख्यक समाज जदयू को वोट नहीं करता, गलतफहमी मत पालिए, हम मुगालते में नहीं है कि पहले नहीं देते थे, अब देते है। अल्पसंख्यक समाज के लोग कभी वोट नहीं करते है। लेकिन, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सबके बारे में सोचते हैं।
ललन सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं कि जिसको जहां वोट देना है देने दीजिए। हम सरकार में है सबके लिए काम करेंगे। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक समाज के लोग उन्हें वोट देते है जिन्होंने आजतक अल्पसंख्यक समाज के लिए कुछ नहीं किया।
वहीं ललन सिंह ने अति पिछड़ा वर्ग के लोगो को कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अति पिछड़ा वर्ग को जोड़ने का काम किया। आज कुछ लोग आपको जाति में बांट रहे है, सावधान रहिएगा। बता दें कि ललन सिंह से पहले कुछ ऐसी ही बात जदयू सांसद देवेश चंद्र ठाकुर ने कही थी।
उधर, ललन सिंह के इस बयान को जदयू नेता मोहम्मद जमाल ने खारिज करते हुए कहा कि ‘ऐसा कुछ नहीं है। सांसद देवेश चंद्र ठाकुर को सीतामढ़ी में और बेलागंज विधानसभा में हुए उपचुनाव में अल्पसंख्यकों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को वोट किया है। अल्पसंख्यक समुदाय भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को वोट करता है। कभी-कभी नेताओं का जुबान फिसल जाती है।
वहीं, मंत्री अशोक चौधरी ने कहा कि ललन सिंह ने जो बयान दिया है उसे तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ललन सिंह के कहने का मतलब था कि नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यकों के लिए जितना काम किया है, उस हिसाब से जदयू को वोट नहीं मिलता है।
इस बीच ललन सिंह के बयान पर राजद नेता अख्तरुल इस्लाम शाहीन ने तंज कसते हुए कहा कि ललन सिंह जदयू से ज्यादा आजकल भाजपा के लिए काम कर रहे हैं। उनकी भाषा बता रही है कि वे अब भाजपा के हो गए हैं। लोकसभा में भी उन्होंने भाजपा के साथ खड़ा होकर वक्फ बिल का समर्थन किया था।
उल्लेखनीय है कि 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए को जीत जरूर हासिल हुई थी, लेकिन जदयू को 28 सीटों का नुकसान हुआ था। इस चुनाव में लालू यादव की राजद 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई थी, जबकि एनडीए में शामिल भाजपा को 74 सीटें मिली थी।
वहीं नीतीश कुमार की पार्टी जदयू 43 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर खिसक गई थी। वहीं, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को भी 5 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इतना ही नहीं नीतीश कुमार की जदयू के वोट प्रतिशत में 1.44 फीसदी गिरावट हुई थी। जबकि राजद को 4.79 फीसदी वोट ज्यादा मिले थे। इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में राजद को सीटें भले ही कम मिली हों, लेकिन उसका वोट प्रतिशत जदयू से ज्यादा था।
लोकसभा चुनाव में एनडीए के अंदर जदयू-भाजपा को 12-12 सीटें मिली थीं। वहीं लोजपा-रामविलास को 5 सीटें और हम को एक सीट कामयाबी मिली थी। महागठबंधन में राजद को 4, कांग्रेस को 3 और भाकपा-माले को 2 सीटें मिली थीं। वोट प्रतिशत की बात करें तो राजद का सबसे ज्यादा 22.14 फीसदी था। इसके बाद भाजपा को 20.52 फीसदी वोट मिले थे।
जदयू को 18.52 फीसदी लोगों ने वोट किया था। यह आंकड़े साफ बता रहे हैं कि मुसलमान अगर जदयू को वोट देते तो राजद सबसे बड़ी पार्टी कैसे होती? दरअसल बिहार में जदयू का भाजपा के साथ गठबंधन है और हाल में झारखंड और महाराष्ट्र चुनाव में भाजपा ने जिस तरह हिंदुत्व के नाम वोट मांगे हैं, उससे साफ पता चलता है कि आगामी विधानसभा चुनाव में भी भाजपा इसी एजेंडे पर चुनाव में उतरेगी।
अब ऐसे में भाजपा की बड़ी सहयोगी जदयू भी मान चुकी है, एनडीए के इस एजेंडे के साथ उन्हें अल्पसंख्यकों का वोट मिलने ही कम ही संभावना है। ऐसे में जदयू अब अपने सहयोगी भाजपा के लाइन पर ही आगे बढ़ सकती है।