लाइव न्यूज़ :

समान नागरिक संहिता महज उम्मीद बनकर न रह जाए, भारतीय समाज अब समरूप हो रहा है : अदालत

By भाषा | Updated: July 9, 2021 20:09 IST

Open in App

नयी दिल्ली, नौ जुलाई समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पेश किए जाने का समर्थन करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि अलग-अलग ‘पर्सनल लॉ’ के कारण भारतीय युवाओं को विवाह और तलाक के संबंध में समस्याओं से जूझने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता।

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने सात जुलाई के अपने आदेश में कहा कि आधुनिक भारतीय समाज ‘‘धीरे-धीरे समरूप होता जा रहा है, धर्म, समुदाय और जाति के पारंपरिक अवरोध अब खत्म हो रहे हैं’’ और इस प्रकार समान नागरिक संहिता अब उम्मीद भर नहीं रहनी चाहिए। आदेश में कहा गया, ‘‘भारत के विभिन्न समुदायों, जनजातियों, जातियों या धर्मों के युवाओं को जो अपने विवाह को संपन्न करते हैं, उन्हें विभिन्न पर्सनल लॉ, विशेषकर विवाह और तलाक के संबंध में टकराव के कारण उत्पन्न होने वाले मुद्दों से जूझने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।’’

वर्ष 1985 के ऐतिहासिक शाह बानो मामले समेत यूसीसी की आवश्यकता पर उच्चतम न्यायालय के कई फैसलों का जिक्र करते हुए, उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘ संविधान के अनुच्छेद 44 में उम्मीद जतायी गयी है कि राज्य अपने नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता को हकीकत में बदलेगा। यह महज एक उम्मीद बनकर नहीं रहनी चाहिए।’’

शाह बानो मामले में, शीर्ष अदालत ने कहा था कि समान नागरिक संहिता परस्पर विरोधी विचारधारा वाले कानूनों के प्रति असमान निष्ठा को हटाकर राष्ट्रीय एकता के उद्देश्य को पाने में मदद करेगी। यह भी कहा गया था कि सरकार पर देश के नागरिकों को समान नागरिक संहिता के लक्ष्य तक पहुंचाने का कर्तव्य है। उच्च न्यायालय ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा समय-समय पर यूसीसी की जरूरत को रेखांकित किया गया है, हालांकि, ‘‘यह स्पष्ट नहीं है कि इस संबंध में अब तक क्या कदम उठाए गए हैं।’’

अदालत ने निर्देश दिया कि आदेश की एक प्रति कानून और न्याय मंत्रालय के सचिव को उचित समझी जाने वाली आवश्यक कार्रवाई के लिए भेजी जाए। अदालत इस पर सुनवाई कर रही थी कि क्या मीणा समुदाय के पक्षकारों के बीच विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (एचएमए) के दायरे से बाहर रखा गया है। जब पति ने तलाक मांगा तो पत्नी ने तर्क दिया कि एचएमए उन पर लागू नहीं होता क्योंकि मीणा समुदाय राजस्थान में एक अधिसूचित अनुसूचित जनजाति है।

अदालत ने महिला के रुख को खारिज कर दिया और कहा कि वर्तमान मामले ‘सब के लिए समान’ ‘इस तरह की एक संहिता की आवश्यकता को उजागर करते हैं, जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि जैसे पहलुओं के संबंध में समान सिद्धांतों को लागू करने में सक्षम बनाएंगे।

अदालत ने कहा कि मुकदमे की शुरुआत के बाद से, दोनों पक्षों ने बताया कि उनकी शादी हिंदू रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार हुई थी और वे हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। अदालत ने कहा कि हालांकि हिंदू की कोई परिभाषा नहीं है, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने माना है कि अगर जनजातियों के सदस्यों का हिंदूकरण किया जाता है, तो उन पर एचएमए लागू होगा।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Open in App

संबंधित खबरें

क्रिकेटसबसे आगे विराट कोहली, 20 बार प्लेयर ऑफ़ द सीरीज पुरस्कार, देखिए लिस्ट में किसे पीछे छोड़ा

ज़रा हटकेShocking Video: तंदूरी रोटी बनाते समय थूक रहा था अहमद, वीडियो वायरल होने पर अरेस्ट

क्राइम अलर्ट4 महिला सहित 9 अरेस्ट, घर में सेक्स रैकेट, 24400 की नकदी, आपतिजनक सामग्री ओर तीन मोटर साइकिल बरामद

क्रिकेटYashasvi Jaiswal maiden century: टेस्ट, टी20 और वनडे में शतक लगाने वाले छठे भारतीय, 111 गेंद में 100 रन

क्रिकेटVIRAT KOHLI IND vs SA 3rd ODI: 3 मैच, 258 गेंद, 305 रन, 12 छक्के और 24 चौके, रांची, रायपुर और विशाखापत्तनम में किंग विराट कोहली का बल्ला

भारत अधिक खबरें

भारतकथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और शिप्रा जयपुर में बने जीवनसाथी, देखें वीडियो

भारत2024 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव, 2025 तक नेता प्रतिपक्ष नियुक्त नहीं?, उद्धव ठाकरे ने कहा-प्रचंड बहुमत होने के बावजूद क्यों डर रही है सरकार?

भारतजीवन रक्षक प्रणाली पर ‘इंडिया’ गठबंधन?, उमर अब्दुल्ला बोले-‘आईसीयू’ में जाने का खतरा, भाजपा की 24 घंटे चलने वाली चुनावी मशीन से मुकाबला करने में फेल

भारतजमीनी कार्यकर्ताओं को सम्मानित, सीएम नीतीश कुमार ने सदस्यता अभियान की शुरुआत की

भारतसिरसा जिलाः गांवों और शहरों में पर्याप्त एवं सुरक्षित पेयजल, जानिए खासियत