अगरतला/नयी दिल्ली, सात नवंबर त्रिपुरा में उच्चतम न्यायालय के वकीलों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों समेत 102 लोगों पर पुलिस की कार्रवाई पर हो-हल्ला मचने के बाद राज्य की पुलिस ने लोगों से कहा है कि वे सोशल मीडिया के अपुष्ट पोस्ट पर विश्वास न करें।
पुलिस ने चेतावनी दी है कि अगर वे इस तरह के पोस्ट लाइक करते हैं या रीट्वीट करते हैं तो यह ‘अफवाह फैलाने की श्रेणी’ में आएगा। त्रिपुरा पुलिस ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर कहा कि वे हालिया सांप्रदायिक मामलों की जांच पूरी तरह ‘निष्पक्ष तरीके से और कानून के तहत’ कर रहे हैं।
राज्य पुलिस की कार्रवाई पर विपक्षी दलों, मानवाधिकार संगठनों और एडटिर्स गिल्ड ने सवाल उठाए हैं। पुलिस ने कहा कि ‘कुछ पोस्ट और लोगों के खिलाफ विभिन्न अपराधों के लिए मामले दर्ज’ किए गए हैं। इससे पहले दिन में विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने कथित तौर पर ‘सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने के लिए’ दर्ज मामले वापस लेने की मांग की है।
त्रिपुरा प्रदेश कांग्रेस प्रमुख बिरजीत सिन्हा ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘ पानी सागर की मस्जिद पर विहिप कार्यकर्ताओं ने हमला किया और उन्होंने अल्पसंख्यक समुदायों के घरों में तोड़फोड़ की…पहले उन्हें गिरफ्तार किया जाना चाहिए। मैं नहीं मानता कि राज्य के दौरे पर आए वकीलों का इरादा बुरा था। उन्होंने कोई सांप्रदायिक विद्वेष नहीं फैलाया। सरकार को तत्काल उन लोगों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने चाहिए।’’
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (सीजीआई) ने त्रिपुरा पुलिस द्वारा पत्रकारों सहित 102 लोगों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (निषेध) कानून के तहत मामला दर्ज किए जाने की रविवार को आलोचना की और कहा कि सरकार साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं पर खबरें प्रकाशित/प्रसारित करने से रोकने के लिए कठोर कानून का उपयोग नहीं कर सकती है।
गिल्ड ने एक बयान में कहा कि पत्रकारों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई से वह ‘‘बहुत सकते में है’’ और यह बहुसंख्यकों की हिंसा को नियंत्रित करने में असफल रही त्रिपुरा सरकार द्वारा अपनी असफलता छुपाने का प्रयास है।
त्रिपुरा पुलिस ने शनिवार को 102 सोशल मीडिया खाताधारकों के खिलाफ गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए), आपराधिक साजिश और जालसाजी के तहत मामला दर्ज किया था। ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब को इन लोगों के खाते बंद करने और इनकी जानकारी देने के लिए नोटिस भेजा है।''
त्रिपुरा पुलिस ने राज्य में मुसलमानों को निशाना बनाकर हुई हिंसा के संबंध में सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर कथित रूप से साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने को लेकर उच्चतम न्यायालय के चार वकीलों के खिलाफ कठोर कानून और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है।
गिल्ड ने कहा, ‘‘राज्य में हालिया साम्प्रदायिक हिंसा के संबंध में खबरें प्रकाशित/प्रसारित करने को लेकर यूएपीए के तहत पत्रकारों सहित 102 लोगों के खिलाफ त्रिपुरा पुलिस द्वारा मामला दर्ज किए जाने से एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया बहुत सकते में है।’’
गिल्ड ने कहा कि पत्रकारों में से एक श्याम मीरा सिंह ने आरोप लगाया है कि ‘त्रिपुरा जल रहा है’ सिर्फ इतना ही ट्वीट करने पर उनके खिलाफ यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है।
पुलिस महानिरीक्षक (कानून-व्यवस्था) अरिंदम नाथ ने हालांकि कहा है कि कुल 102 लोगों के खिलाफ शिकायतें दर्ज की गई हैं और उच्चतम न्यायालय के चार वकीलों और तीन अन्य को नोटिस भेजा गया है। पुलिस यह स्पष्ट करना चाहती है कि प्राथमिकी दर्ज होने का मतलब यह नहीं है कि ‘‘ वे दोषी हैं।’’ नाथ ने कहा, ‘‘ अगर उन लोगों ने कुछ भी गलत नहीं कहा और उनका इरादा सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने या साजिश रचने का नहीं था तो उन्हें पुलिस के सामने पेश होना चाहिए और स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि पुलिस के संज्ञान में यह बात सामने आई है कि कुछ लोगों ने फर्जी सोशल मीडिया आईडी का इस्तेमाल कर सांप्रदायिक नफरत फैलाने की कोशिश की और पुलिस ने उन्हें पहचानने और कानून के तहत मामला दर्ज करने की सही पहल की।
नाथ ने कहा, ‘‘ हमने ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब को उनके अकाउंट बंद करने और उन लोगों के बारे में जानकारी देने के लिए नोटिस भेजा है।’’
उच्चतम न्यायालय के वकील एहतेशाम हाशमी, लॉयर्स फॉर डेमोक्रेसी के संयोजक वकील अमित श्रीवास्तव, एनसीएचआरओ के राष्ट्रीय सचिव अंसार इंदौरी और पीयूसीएल सदस्य मुकेश कुमार को नोटिस भेजे गए हैं।
वकीलों को दिए गए नोटिस में पुलिस ने उनसे अपने सोशल मीडिया पोस्ट डिलीट करने और 10 नवंबर तक जांचकर्ताओं के समक्ष पेश होने को कहा है।
त्रिपुरा मानवाधिकार संगठन (टीएचआरओ) ने उच्चतम न्यायालय के वकीलों को नोटिस भेजने की निंदा की और इसे लोकतांत्रिक अधिकारों की आवाज को चुप कराने वाला कदम करार दिया। संगठन ने सरकार के कदम को बेहद निंदनीय करार दिया।
वहीं, विपक्षी माकपा ने कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले के बाद एक समूह के लोगों ने राज्य के अलग-अलग हिस्सों में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश की।
पार्टी ने एक बयान में कहा, ‘‘ जब कुछ वकील तथ्य जुटाने के लिए राज्य आए तो उनके खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया। यह असहिष्णुता का एक उदाहरण है। अगर उनकी कोई गतिविधि अवैध भी होती तो उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सामान्य कानून काफी थे लेकिन (यूएपीए) जैसे कड़े कानून के तहत मामला दर्ज करना असहिष्णुता का उदाहरण है।’’
राज्य सरकार ने 29 अक्टूबर को आरोप लगाया था कि बाहर से आए निहित स्वार्थ वाले एक समूह ने 26 अक्टूबर की घटना के बाद सोशल मीडिया पर जलती हुई एक मस्जिद की फर्जी तस्वीरें अपलोड करके त्रिपुरा में अशांति पैदा करने और प्रशासन की छवि खराब करने के लिए साजिश रची।
भाजपा प्रवक्ता नबेंदु भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान हुई हिंसा के बाद त्रिपुरा में निहित स्वार्थ के साथ एक समूह सांप्रदायिक अशांति फैलाने के लिए सक्रिय था और इस परिस्थिति में पुलिस मूकदर्शक नहीं रह सकती इसलिए उसने जांच शुरू कर दी। मुझे यकीन है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन नहीं किया गया।’’
गौरतलब है कि पड़ोसी बांग्लादेश में साम्प्रदायिक हिंसा के विरोध में विश्व हिंदू परिषद द्वारा निकाली गयी रैली के दौरान 26 अक्टूबर को चमटीला में कथित तौर पर एक मस्जिद में तोड़फोड़ की गयी और दो दुकानों में आग लगा दी गई थी। वहीं निकट के रोवा बाजार में भी उन तीन घरों और कुछ दुकानों को भी क्षति पहुंचाई गई थी, जिसका स्वामित्व कथित तौर पर मुस्लिम समुदाय से संबंध रखने वाले व्यक्ति के पास है।
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