अदालतों और सार्वजनिक कार्यालयों में 'राजा' जैसी उपाधियों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, राजस्थान हाईकोर्ट ने बताया समानता के अधिकार का उल्लंघन
By विशाल कुमार | Published: March 3, 2022 03:00 PM2022-03-03T15:00:49+5:302022-03-03T15:05:24+5:30
राजस्थान हाईकोर्ट ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 18 और 363-ए का अनुसरण किया और देखा कि किसी विदेशी राज्य द्वारा भारत के नागरिक को प्रदान की गई किसी भी उपाधि को स्वीकार नहीं किया जा सकता है और न ही इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
जयपुर:राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर पीठ ने माना है कि 'राजा', 'नवाब' और 'राजकुमार' जैसे अभिवादन और उपाधियों का उपयोग भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 18 और 363-ए के तहत संवैधानिक न्यायालय, अन्य सभी न्यायालयों, न्यायाधिकरणों, राज्य के सार्वजनिक कार्यालयों आदि में प्रतिबंधित है।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने आदेश दिया कि उक्त प्रतिबंध सार्वजनिक संस्थाओं के साथ-साथ सार्वजनिक दस्तावेजों और सार्वजनिक कार्यालयों में भी लागू होगा।
दरअसल, एक याचिका में याचिकाकर्ता का उल्लेख राजा लक्ष्मण सिंह के रूप में किया गया था जिसके बाद अदालत ने इस मामले को संज्ञान लिया था।
न्यायालय ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 18 और 363-ए का अनुसरण किया और देखा कि किसी विदेशी राज्य द्वारा भारत के नागरिक को प्रदान की गई किसी भी उपाधि को स्वीकार नहीं किया जा सकता है और न ही इसका इस्तेमाल किया जा सकता है और सैन्य या शैक्षणिक विशिष्टताओं के अलावा ऐसी कोई उपाधि राज्य के अलावा अन्य द्वारा प्रदान नहीं की जा सकती है।
न्यायालय ने यह भी देखा कि अनुच्छेद 363-ए के संदर्भ में यह समानता के सिद्धांत और अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।
अदालत ने रजिस्ट्रीट को इसे उचित तौर पर लागू करवाने और प्रसारित करवाने के लिए राज्य के सभी संबंधित कार्यालयों को भेजने का आदेश दिया।