कश्मीर में निर्दोष लोगों की हत्याओं की निंदा करने का वक्त: सेना अधिकारी

By भाषा | Published: October 21, 2021 05:04 PM2021-10-21T17:04:12+5:302021-10-21T17:04:12+5:30

Time to condemn killings of innocent people in Kashmir: Army Officer | कश्मीर में निर्दोष लोगों की हत्याओं की निंदा करने का वक्त: सेना अधिकारी

कश्मीर में निर्दोष लोगों की हत्याओं की निंदा करने का वक्त: सेना अधिकारी

श्रीनगर, 21 अक्टूबर आतंकवादियों द्वारा लक्षित हत्याओं के बीच, सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि कश्मीर में कुछ वर्गों के लिए ‘चुनिंदा मनोभ्रंश’ पर काबू पाने और नागरिकों की हत्या की निंदा करने का समय आ गया है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को बचाया जा सके और लोगों के दुख का अंत हो सके।

रक्षा खुफिया एजेंसी के महानिदेशक और एकीकृत रक्षा स्टाफ के उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल के जे एस ढिल्लों ने कहा कि निर्दोष नागरिकों पर इस तरह के हमले करके अपराधी समाज की जड़ों को निशाना बना रहे हैं और ऐसे लोग कभी भी कश्मीर के दोस्त नहीं हो सकते।

लेफ्टिनेंट जनरल ढिल्लों ने बुधवार को यहां एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘पिछले तीन दशक में, कश्मीरी समाज को नुकसान हुआ है और कश्मीर की जड़ों पर चोट पहुंचाई गई है। हमारे पास अपनी भावनाओं का अधिकार है, लेकिन आतंकवादियों द्वारा जब कभी हत्या होती है तो चयनित उन्मत्ता की स्थिति होती है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘कोई भी इसके (निर्दोषों की हत्या) खिलाफ नहीं बोल रहा है, कुछ इस प्रकार कि पुरुष या महिला ने हर चीज के बारे में बोलने का अधिकार खो दिया है। दुनिया बाद में पूछेगी कि जब आप निर्दोष हत्याओं पर चुप थे, तो अब आपको क्यों सुना जाना चाहिए।’’ उन्होंने लोगों से चुनिंदा मामलों में ही प्रतिक्रिया व्यक्त करने के सिंड्रोम से उबरने का आग्रह किया।

लेफ्टिनेंट जनरल ढिल्लों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कश्मीर की 66 प्रतिशत आबादी 32 वर्ष से कम उम्र की है और उन्हें ‘संघर्ष काल के बच्चों’ के तौर पर संदर्भित किया जा सकता है एवं उनके मनोविज्ञान को समझने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि युवा आबादी के मनोविज्ञान और माताओं के दर्द को समझने की जरूरत है।

ले. जनरल ढिल्लों ने कहा, ‘‘2011 की जनगणना के अनुसार, कश्मीर की 62 प्रतिशत आबादी 32 वर्ष से कम आयु की है और आज यह लगभग 66 प्रतिशत हो गयी होगी, जिसका अर्थ है कि 66 प्रतिशत आबादी इन तीन दशकों (आतंकवाद) के दौरान पैदा हुई थी और इस प्रकार ये संघर्ष काल के बच्चे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘वे बंदूक संस्कृति, हमलों, कर्फ्यू और कार्रवाई के दौरान पैदा हुए और बड़े हुए। वे अपने मन-मस्तिष्क पर एक निशान के साथ बड़े हुए हैं। वे कट्टरता और दुष्प्रचार के साये में बढ़े हैं... यह एक समस्या है और हमें उनके मनोवैज्ञानिक को समझने की जरुरत है।’’

लेफ्टिनेंट जनरल ने कहा, ‘‘हमें यह समझने की जरूरत है कि हमारी जड़ों पर हमला किया जा रहा है - चाहे वह शिक्षा हो, व्यवसाय हो, आजीविका हो - और ऐसा करने वाले हमारे दोस्त नहीं हो सकते। इसे एक आम कश्मीरी को समझना होगा।’’ उन्होंने 1990 के दौरान उत्तरी कश्मीर में एक कप्तान के रूप में कार्य किया और नियंत्रण रेखा के साथ-साथ भीतरी इलाकों में सुरक्षा को देखते हुए पंद्रहवीं कोर का नेतृत्व भी किया।

उन्होंने जनवरी 1990 में उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में एक कप्तान के रूप में तैनाती की एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि जब घाटी में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद भड़क उठा तो इससे प्रभावित लोगों और इसमें शामिल लोगों का प्रतिशत दोनों एकल अंकों में था, लेकिन 80 से 90 फीसदी आबादी ऐसी घटनाओं पर चुप रही।

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Web Title: Time to condemn killings of innocent people in Kashmir: Army Officer

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