माता-पिता की देखभाल के लिए ड्यूटी का कोई विभाजन नहीं हो सकता, सभी पुत्रों को देखभाल करनी चाहिएः हाईकोर्ट

By भाषा | Updated: September 24, 2019 18:30 IST2019-09-24T18:30:50+5:302019-09-24T18:30:50+5:30

मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने एक व्यक्ति की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। याचिका में वरिष्ठ नागरिक देखभाल न्यायाधिकरण के एक आदेश को चुनौती दी गयी थी जिसमें उसे अपने माता-पिता को प्रति माह 2,000 रुपये देने को कहा गया था।

There can be no division of duty to take care of parents, all sons should take care: High Court | माता-पिता की देखभाल के लिए ड्यूटी का कोई विभाजन नहीं हो सकता, सभी पुत्रों को देखभाल करनी चाहिएः हाईकोर्ट

पीठ ने अपील को खारिज करते हुए कहा कि 2,000 रुपये बहुत कम रकम है और इसलिए इसमें किसी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। 

Highlightsयाचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में दोनों न्यायाधिकरणों के आदेश के साथ ही एकल न्यायाधीश के फैसले को भी चुनौती दी थी। एकल न्यायाधीश ने दोनों न्यायाधिकरणों के फैसलों को बरकरार रखा था।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि अभिभावकों की देखभाल उनके सभी बच्चों द्वारा की जानी चाहिए और उनके बीच ‘‘ ड्यूटी का कोई विभाजन नहीं’’ हो सकता है।

मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने एक व्यक्ति की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। याचिका में वरिष्ठ नागरिक देखभाल न्यायाधिकरण के एक आदेश को चुनौती दी गयी थी जिसमें उसे अपने माता-पिता को प्रति माह 2,000 रुपये देने को कहा गया था।

पीठ ने कहा, ‘‘माता-पिता की देखभाल के लिए ड्यूटी का कोई विभाजन नहीं हो सकता। सभी पुत्रों/ बच्चों को अपने माता-पिता की देखभाल करनी चाहिए।’’ याचिकाकर्ता ने दावा किया कि देखभाल न्यायाधिकरण और अपीली न्यायाधिकरण ने उसकी कथित खराब वित्तीय स्थिति पर गौर किए बिना राशि तय की। याचिका में दोनों आदेशों को चुनौती दी गयी थी।

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में दोनों न्यायाधिकरणों के आदेश के साथ ही एकल न्यायाधीश के फैसले को भी चुनौती दी थी। एकल न्यायाधीश ने दोनों न्यायाधिकरणों के फैसलों को बरकरार रखा था। पीठ ने अपील को खारिज करते हुए कहा कि 2,000 रुपये बहुत कम रकम है और इसलिए इसमें किसी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। 

Web Title: There can be no division of duty to take care of parents, all sons should take care: High Court

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