दहेह हत्या की बुराई बढ़ रही है, कानून की व्याख्या इस पर रोक सुनिश्चित करने के लिए की जानी चाहिए: न्यायालय

By भाषा | Updated: May 28, 2021 23:15 IST2021-05-28T23:15:48+5:302021-05-28T23:15:48+5:30

The evil of murder is increasing, the law should be interpreted to ensure a moratorium on it: Courts | दहेह हत्या की बुराई बढ़ रही है, कानून की व्याख्या इस पर रोक सुनिश्चित करने के लिए की जानी चाहिए: न्यायालय

दहेह हत्या की बुराई बढ़ रही है, कानून की व्याख्या इस पर रोक सुनिश्चित करने के लिए की जानी चाहिए: न्यायालय

नयी दिल्ली, 28 मई उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि ‘‘दहेज हत्या की बुराई’’ दिन-ब-दिन बढ़ रही है। शीर्ष अदालत ने ऐसे मामलों से निपटने के लिए विभिन्न निर्देश देते हुए कहा कि ‘‘दुलहन को जलाने और दहेज की मांग की सामाजिक बुराई’’ पर रोक लगाने के लिए इसको लेकर दंडात्मक प्रावधानों की व्याख्या विधायी मंशा को ध्यान में रखते हुए की जानी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने कहा कि दहेज हत्या पर दंडात्मक प्रावधान मौत को हत्या या आत्महत्या या दुर्घटनावश मौत के रूप में वर्गीकृत करने में ‘‘पिजनहोल अपरोच’’ नहीं अपनाता है और एक सख्त व्याख्या उस उद्देश्य को विफल करेगीए जिसके लिए यह कानून बनाया गया था।

शीर्ष अदालत ने इस तरह के मामलों की सुनवाई करते समय न्यायाधीशों, अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष को सावधान रहने को लेकर आगाह करते हुए कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि निचली अदालतें अक्सर किसी आरोपी के बयान को ‘‘बहुत ही सरसरी तौर पर’’ और विशेष रूप से आरोपी से उसके बचाव के बारे में पूछताछ किए बिना" दर्ज करती हैं और तथा कभी-कभी पति के परिवार के सदस्यों को भी इसमें शामिल कर लिया जाता है, भले ही अपराध में उनकी कोई सक्रिय भूमिका न हो।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा, ‘‘भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी लंबे समय से चली आ रही सामाजिक बुराई को दूर करने के लिए संसद द्वारा की गई कई विधायी पहलों में से एक है। दहेज उत्पीड़न की घृणित प्रकृति, जिसमें पति और उसके रिश्तेदारों की लालची मांगों के चलते विवाहिताओं से क्रूरता किया जा रहा है, पर ध्यान नहीं दिया गया है।’’

प्रधान न्यायाधीश द्वारा लिखे गए 28-पृष्ठ के फैसले में कहा गया है कि दहेज हत्या पर प्रावधान की व्याख्या दुलहन को जलाने और दहेज की मांग की सामाजिक बुराई को रोकने के लिए विधायी मंशा को ध्यान में रखते हुए की जानी चाहिए और यह धारा मौत को हत्या या आत्महत्या या दुर्घटनावश मौत के तौर वर्गीकृत करने में ‘‘पिजनहोल अपरोच’’ नहीं अपनाती है। न्यायालय ने यह निर्देश गुरमीत सिंह और अन्य की अपील पर दिया, जो उन्होंने दहेज हत्या और आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराधों के लिए निचली अदालतों द्वारा दोषी ठहराए जाने और सात साल की जेल की सजा के खिलाफ की थी।

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