नयी दिल्ली, 13 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि जिला न्यायपालिका को किसी मामले में अपनी समझ के अनुसार निर्णय करने की आजादी होनी चाहिए और अपीलीय अदालत को निचली अदालत के फैसले पर प्रतिकूल टिप्पणी करते समय संयम बरतना चाहिए।
न्यायमूर्ति एस. के. कौल और न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक आदेश को निरस्त करते हुए यह कहा। उच्च न्यायालय ने एक पुलिस अधिकारी की 2001 में हुई हत्या के मामले में निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए मामले के दोनों आरोपियों को दोषी ठहराया था और उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई थी।
पीठ ने आरोपी की अपील पर अपने 20 पन्नों के फैसले में कहा, ‘‘कई बार, अदालतों की अपनी बाध्यताएं होती हैं। हमने पाया कि अलग-अलग अदालतों द्वारा अलग-अलग फैसले दिये जाते हैं, निचली अदालत और अपीलीय अदालत के अलग-अलग फैसले होते हैं। यदि संस्थागत बाध्यताओं के चलते इस तरह के फैसले दिये जाते हैं तो वे शुभ संकेत नहीं देते हैं।’’
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि जिला न्यायपालिका से बुनियादी अदालत की भूमिका निभाने की उम्मीद की जाती है और इसलिए उसे मामले में अपनी समझ के साथ फैसला करने की आजादी होनी चाहिए।
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