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व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाला फैसला सशस्त्र बलों पर लागू न हो: केंद्र

By भाषा | Updated: January 13, 2021 22:15 IST

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नयी दिल्ली, 13 जनवरी केन्द्र ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया कि व्यभिचार या परस्त्रीगमन को भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध के दायरे से बाहर करने संबंधी शीर्ष अदालत का 2018 का फैसला सशस्त्र बल पर लागू नहीं किया जाये।

न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने केन्द्र के इस आवेदन पर मूल जनहित याचिकाकर्ता जोसेफ शाइन और अन्य को नोटिस जारी करने के साथ ही इसे पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित करने के लिये यह मामला प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे के पास भेज दिया क्योंकि वही स्थिति स्पष्ट कर सकती है।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘नोटिस जारी किया जाये। चूंकि, संविधान पीठ के निर्णय पर स्पष्टीकरण मांगा गया है, यह उचित होगा कि प्रधान न्यायाधीश इस मामले को पांच न्यायाधीशों की पीठ समक्ष सूचीबद्ध करने के बारे में आदेश दें। रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाता है कि मामले को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष उचित आदेश के लिये पेश किया जाये।’’

वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि सशस्त्र बलों से संबंधित नियमों के तहत व्यभिचार अशोभनीय आचरण के लिये कोर्ट मार्शल का एक आधार है और इसलिए सशस्त्र बलों को संविधान पीठ के 2018 के फैसले के दायरे से बाहर किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सशस्त्र बलों में इस फैसले के लागू होने के बारे में शीर्ष अदालत से स्पष्टीकरण की आवश्यकता है।

व्यभिचार या परस्त्रीगमन के मुद्दे पर 2018 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति के अपने फैसले में भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित करते हुये इसे निरस्त कर दिया था। पीठ ने कहा था कि परस्त्रीगमन अपराध नहीं है और यह असंवैधानिक है क्योंकि यह प्रावधान महिलाओं की व्यैक्तिक स्थिति पर चोट पहुंचाता है क्योंकि यह उन्हें ‘पतियों की जागीर’ के रूप में मानता है।

हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि वैवाहिक विवादों में तलाक के लिये व्यभिचार एक आधार बना रहेगा।

केन्द्र ने जोसेफ शाइन की निस्तारित की जा चुकी याचिका में दायर अपने अंतरिम आवेदन में न्यायालय से स्पष्टीकरण देने का अनुरोध किया है। केन्द्र ने यह निर्देश देने का अनुरोध किया है कि यह फैसला सशस्त्र बलों को शासित करने वाले विशेष कानूनों और नियमों पर लागू नहीं होगा। सशस्त्र बलों में अनुशासन सुनिश्चित करने के कार्मिकों के विवाहेतर संबंधों में शामिल होने पर कार्रवाई की जाती है।

आवेदन में कहा गया है कि जब जवान और अधिकारी अग्रिम निर्जन इलाकों में तैनात होते हैं तो उनके परिवारों की देखभाल बेस शिविर में दूसरे अधिकारी करते हैं और इन कानूनों तथा नियमों में अनुशासन बनाये रखने के लिये इस तरह की गतिविधि में संलिप्त होने पर कार्रवाई का प्रावधान है।

आवेदन में कहा गया है कि सशस्त्र बल में कार्यरत कार्मिकों को अपने सहयोगी की पत्नी के साथ विवाहेतर संबंधों में संलिप्त होने पर असह्य आचरण के आधार पर सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के अनुसार, ‘‘यदि कोई पुरुष यह जानते हुये भी कि महिला किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी है और उस व्यक्ति की सहमति या मिलीभगत के बगैर ही महिला के साथ यौनाचार करता है तो वह परस्त्रीगमन के अपराध का दोषी होगा। यह बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आयेगा।’’

व्यभिचार एक दंडनीय अपराध था और इसके लिये कानून में पांच साल की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान था।

शीर्ष अदालत ने इस प्रावधान को निरस्त करते हुये कहा था कि धारा 497 मनमानी और पुरातन कानून है, जिससे महिलाओं के समता और समान अवसरों के अधिकारों का हनन होता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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