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अस्वच्छ अस्थायी ‘शरणार्थी’ कालोनियों में मंडरा रहा है महामारी का खतरा

By भाषा | Updated: September 29, 2021 17:55 IST

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(त्रिदीप लहकार)

धलपुर (असम), 29 सितंबर असम सरकार के एक अतिक्रमण विरोधी (बेदखली) अभियान से हजारों लोगों को बेघर हुए एक सप्ताह से अधिक समय हो गया है और ये लोग या तो अस्थायी झोपड़ियों या फिर खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर है।

प्रदेश सरकार के इस अभियान के दौरान 12 वर्षीय एक लड़के समेत दो लोगों की मौत भी हुई थी।

दरांग जिले में अपने घरों और खेतों से बेदखल किए गए 7000 से ज्यादा लोग अब ब्रह्मपुत्र नदी के नानोइ नाले को पार कर मुश्किल हालात में रहने को मजबूर हैं। ये लोग नाले के पानी का उपयोग पीने और खाना बनाने के लिये कर रहे हैं और खुले में शौच करते हैं क्योंकि उनके गांवों में बने ‘स्वच्छ भारत’ शौचालयों पर अब पुलिसकर्मियों का पहरा है जो उस जमीन के किसी हिस्से पर उन्हें प्रवेश की इजाजत नहीं देते जहां से कुछ दिनों पहले ही उन्हें निकाला गया है।

स्थानीय लोक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने नाम न छापने की शर्तों पर कहा कि भीड़भाड़ की स्थिति, सुरक्षित पानी की कमी और खुले में शौच से क्षेत्र में महामारी फैल सकती है।

जिला प्रशासन ने हालांकि जोर देकर कहा कि वहां ट्यूबवेल और शौचालय उपलब्ध कराए गए हैं, इसके अलावा विस्थापित लोगों के लिए स्वास्थ्य शिविर स्थापित किए गए हैं। शिविर में रहने वालों का कहना है कि उन्हें राज्य की महत्वाकांक्षी गोरुखुटी कृषि परियोजना के लिए ‘शरणार्थी’ बनने के लिए मजबूर किया गया है।

आम लोगों और कुछ गैर सरकारी संगठनों की तरफ से रविवार को कुछ मदद और राहत पहुंचनी शुरू हुई है लेकिन मौके पर सरकारी एजेंसियां नजर नहीं आ रहीं।

विभिन्न बयानों के मुताबिक, 20 और 23 सितंबर को धालपुर-एक, दो और तीन गांवों में करीब 1200 से 1400 घरों को जमींदोज कर दिया गया जिससे वहां रह रहे करीब सात हजार लोग बेघर हो गए। जिन जगहों पर बुलडोजर चला उनमें बाजार, मस्जिद, कब्रिस्तान और मदरसे भी शामिल हैं।

राज्य सरकार का कहना है कि उसकी जमीनों से बेदखली अभियान पहले दिन शांतिपूर्ण ढंग से चला लेकिन दूसरे दिन स्थानीय लोगों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। इसके फलस्वरूप संघर्ष में पुलिस ने गोली चलाई जिसमें न केवल दो लोगों की मौत हो गई बल्कि पुलिसकर्मियों सहित 20 से अधिक लोग घायल हो गए।

हबीबुर रहमान ने यहां ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “मेरा घर गिरा दिया गया और मेरा 10 सदस्यीय विस्तारित परिवार - मां, पत्नी, मेरे तीन बच्चे, मेरी विधवा बहन और उसके तीन बच्चे - अब खुले में नाले के किनारे रह रहे हैं।”

रहमान का घर धालपुल-तीन गांव में था।

रहमान ने कहा, “हमें बेदखल किये जाने के अगले दिन बारिश के साथ एक तूफान आया था। वह हम सभी के लिए भयावह रात थी। मेरी सबसे छोटी बेटी बीमार हो गई थी।”

उन्होंने कहा, “हमें रविवार को कुछ युवकों से पानी की कुछ बोतलें और थोड़ा चावल मिला। हमें राहत सामग्री के तौर पर यही मिला है। तीन साल पहले स्वच्छ भारत मिशन के तहत मैंने शौचालय बनवाया था। लेकिन पुलिस अब हमें उसका इस्तेमाल नहीं करने दे रही…हमें फिर से शौच के लिये खेतों का रुख करना पड़ रहा है।”

‘पीटीआई-भाषा’ के एक संवाददाता ने सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनी नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड द्वारा अपनी कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के तहत 'स्वच्छ भारत मिशन' के लिए बनाए गए कई ऐसे सेप्टिक शौचालयों को देखा, जो टूटे हुए गांवों के मलबे के बीच खड़े थे।

इसके विपरीत नानोई के किनारे बसी अस्थायी झोंपड़ियों में बिस्तर, बर्तन, आलमारियां, कुर्सियां और कपड़े यहां-वहां बिखरे पड़े दिखे। चिलचिलाती धूप में बच्चे इधर-उधर घूमते दिखे वहीं उनकी माएं मक्खियों और मच्छरों को भगाने की कोशिश करती दिखीं जो मानसून के मौसम में यहां काफी नजर आ रहे हैं।

सफर अली का घर धालपुर-तीन गांव में था और उसे 23 सितंबर को गिरा दिया गया था। अली ने कहा, “हम भारत के नागरिक हैं और दशकों से यहां रह रहे थे। हमारे पास आधार कार्ड समेत सभी दस्तावेजी साक्ष्य हैं। फिर सरकार हमारे साथ ऐसा सलूक क्यों कर रही है? वे हमें मूलभूत मानवीय सहायता क्यों नहीं मुहैया करा सकतीं?”

एक अन्य विस्थापित किसान सिलाजुल हक ने कहा कि पुलिस और अर्धसैनिक बल अब हमारे टूटे घरों की निगरानी कर रहे हैं और वे हमें कुछ बचे हुए बर्तन और घरेलू सामान भी नहीं लेकर आने दे रहे हैं।

पीड़ितों के बयान के विपरीत स्थानीय लोकसभा सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव दिलीप सैकिया ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि प्रशासन से राहत मिलने के बावजूद “अतिक्रमणकारी झूठ बोल रहे हैं।”

इस बारे में दरांग के अतिरिक्त उपायुक्त पंकज डेका ने कहा कि प्रशासन मदद करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा, “हमनें लोक स्वास्थ्य आभियांत्रिकी (पीएचई) विभाग को ये सुविधाएं उपलब्ध कराने को कहा है। इन्हें स्थापित करने में समय लगता है। मुझे यह देखना होगा कि ये सुविधाएं लोगों तक पहुंच गई हैं या नहीं।”

ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (एएएमएसयू) भी स्थानीय लोगों की मदद करने का प्रयास कर रहा है। एएएमएसयू के दरांग जिला उपाध्यक्ष बहारुल इस्लाम ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि सरकार ने एक बोतल पानी तक मुहैया नहीं कराया। हम लोगों को राशन और अन्य जरूरी सामान उपलब्ध कराने का प्रयास कर रहे हैं। इस्लाम ने कहा कि रविवार को चिकित्सा दल पहुंचा है लेकिन और सहायता की जरूरत है।

विपक्षी दल एआईयूडीएफ ने भी मंगलवार को राहत सामग्री का वितरण किया।

महत्वाकांक्षी गोरुखुटी कृषि परियोजना के तहत आधुनिक खेती और वैज्ञानिक पशु पालन प्रथाओं को लागू करने के लिए लगभग 9.60 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इस परियोजना का अंततः सिपाझार क्षेत्र में 77,420 बीघा क्षेत्र में विस्तार किया जाएगा।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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