नयी दिल्ली, 15 अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को केंद्र से कहा कि वह उसे एक तर्कसंगत समयसीमा बताए जिसके अंदर वह शीर्ष अदालत के कॉलेजियम द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए की गयी सिफारिशों पर कार्रवाई कर सकता है। सरकार ने कहा कि वह मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (एमओपी) में तय समयसीमा का पालन करेगी।
सरकार ने नामों को मंजूरी देने में देरी के लिए सिफारिशें समय पर नहीं भेजने के मामले में उच्च न्यायालयों को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि इनमें से कई ने मौजूदा रिक्त पदों के संदर्भ में पिछले पांच साल में नाम नहीं भेजे हैं।
शीर्ष अदालत ने संकेत दिया कि कॉलेजियम ने 10 नामों की सिफारिश की थी जो सरकार के पास डेढ़ साल से लंबित हैं और इन नामों को कब तक मंजूरी मिलने की उम्मीद की जा सकती है?
अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार इन 10 नामों पर तीन महीने के अंदर फैसला करेगी।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल तथा न्यायमूर्ति सूर्यकांत की विशेष पीठ ने वेणुगोपाल से कहा, ‘‘उच्च न्यायालयों का विषय आप हम पर छोड़िए। भारत के उच्चतम न्यायालय के तौर पर हम उच्च न्यायालयों को देख लेंगे और उनसे रिक्तियों से छह महीने पहले सिफारिश करने को कहेंगे। आप हमें तय तर्कसंगत समयसीमा क्यों नहीं बता सकते जिसमें आप कॉलेजियम द्वारा भेजे गये नामों पर कार्रवाई कर सकते हैं।’’
वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार एमओपी में तय समयसीमा का सख्ती से पालन करेगी। एमओपी में उच्च न्यायालय के कॉलेजियम, उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम और सरकार के लिए समयसीमा का उल्लेख होता है।
उन्होंने कहा, ‘‘एमओपी में प्रधानमंत्री के लिए कोई समयसीमा नहीं होती और प्रधानमंत्री कार्यालय से फाइल को मंजूरी मिलने के बाद उसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा जाता है।’’
जब पीठ ने पूछा कि क्या एमओपी में समयसीमा दी गयी है तो वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘हां, 1998 के एमओपी में विभिन्न शाखाओं के लिए समयसीमा निर्धारित हैं। एनजेएसी (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) के फैसले के बाद बनाई गयी एमओपी अब भी उच्चतम न्यायालय में लंबित है।’’
वेणुगोपाल ने शुरू में कहा कि उच्चतम न्यायालय में 34 न्यायाधीशों के पद स्वीकृत हैं और पांच पद खाली हैं लेकिन सरकार को कोई सिफारिश नहीं मिली है।
उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों में 1080 न्यायाधीशों के पद स्वीकृत हैं और 416 पद खाली हैं लेकिन सरकार को अभी तक 220 नामों के लिए विभिन्न उच्च न्यायालयों के कॉलेजियम से सिफारिशें प्राप्त नहीं हुई हैं।
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