जम्मू-कश्मीर: अमेरिकी अखबार 'न्यूयॉर्क टाइम्स' का दावा, सेना की कार्रवाई से घाटी में आंतकियों की कमर टूटी

By भारती द्विवेदी | Updated: August 3, 2018 09:26 IST2018-08-03T08:49:54+5:302018-08-03T09:26:10+5:30

न्यूयार्क टाइम्स दावा किया गया है कि पिछले दो-तीन सालों में कश्मीर में आतंकियों कमोजर हुए हैं। वहां पर कोई भी आंतकी दो-तीन साल से ज्यादा नहीं रह पाता है। क्योंकि सेना उनका सफाया कर देती है।

terrorist modi government Indian army foreign media militancy in kashmir | जम्मू-कश्मीर: अमेरिकी अखबार 'न्यूयॉर्क टाइम्स' का दावा, सेना की कार्रवाई से घाटी में आंतकियों की कमर टूटी

जम्मू-कश्मीर: अमेरिकी अखबार 'न्यूयॉर्क टाइम्स' का दावा, सेना की कार्रवाई से घाटी में आंतकियों की कमर टूटी

नई दिल्ली, 3 अगस्त: जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना आंतकियों को मुंहतोड़ जवाब दे रही है। ऑपरेशन ऑल आउट-2 से बौखलाए आतंकी हर दिन अपनी कायराना हरकत को अंजाम देने बाज नहीं आ रहे हैं। लेकिन सेना की तरफ से हो कार्रवाई ने उनकी कमर तोड़कर रख दी है। सेना द्वारा हो रही कार्रवाई से आतंकियों में बौखलाहट है और वो कमजोर पड़ रहे हैं। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक आतंकी घाटी में कमजोर पड़ रहे हैं।

न्यूयार्क टाइम्स दावा किया गया है कि पिछले तीन-चार सालों में कश्मीर में आतंकियों कमोजर हुए हैं। वहां पर कोई भी आंतकी दो-तीन साल से ज्यादा नहीं रह पाता है। क्योंकि सेना उनका सफाया कर देती है। रिपोर्ट की माने तो पिछले चार साल में 200 से ज्यादा आतंकी मार हैं। फिलहाल घाटी में 250 से ज्यादा आतंकी नहीं बचे हैं। स्थानीय लोग पहले से ज्यादा अब सुरक्षा बलों को सपोर्ट कर रहे हैं। लोगों से मिल रही मदद की वजह से जवानों को अब ये पता लगाना आसान हो गया है कि कौन आतंकी है, कौन उसका दोस्त हैं और आंतकी कहां छिपे हैं।

कश्मीर में जब नब्बे के दशक में आतंकवाद अपना पैर पसरा रहा है था, उस समय घाटी में आतंकियों की संख्या हजार से ज्यादा थी। धीरे-धीरे करके उनकी संख्या लगातार बढ़ती ही रही। हालांकि पिछले कुछ सालों में अमेरिका के दबाव के कारण पाकिस्तान को अपने ज्यादातर आतंकी कैंपों को बंद करना पड़ा है। साथ ही सीमा पर भारतीय सेना की चौकसी की वजह से आतंकियों को पहले की तरह अब सीमा पार से पैसे और हथियारों की मदद भी नहीं मिल पा रही है। इन सारी वजहों से अब घाटी में आतंकियों की पकड़ ढीली होते जा रही है। जो कि जम्मू-कश्मीर के लिए एक बेहद सकारात्मक बात है। 

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