नयी दिल्ली, एक दिसंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि अस्थायी विकलांगता दिव्यांगजन अधिकार कानून 2016 के तहत आरक्षण का लाभ उठाने के लिए एक अयोग्यता नहीं है। अदालत ने एक उम्मीदवार के दाखिले को रद्द करने के फैसले को खारिज कर दिया जो दृष्टिहीनता से पीड़ित है, लेकिन उसमें सुधार की संभावना है।
न्यायमूर्ति प्रतीक जालान ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर में दाखिले का अनुरोध करने वाले एक उम्मीदवार की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि दिव्यांगजन अधिकार (पीडब्ल्यूडी) कानून दिव्यांगों (पीडब्ल्यूडी) के लाभ के लिए सामाजिक कानून है और इसमें प्रथमदृष्टया अस्थायी और स्थायी दिव्यांगता में भेद नहीं है।
न्यायमूर्ति ने कहा कि दाखिला प्राधिकार का निर्णय एक ‘‘अनुचित प्रतिबंधात्मक व्याख्या’’ है जो कानून के उद्देश्य के अनुरूप नहीं है।
अदालत ने 29 नवंबर को पारित अपने आदेश में कहा ‘‘यह ध्यान दिया जा सकता है कि (पीडब्ल्यूडी) कानून में ‘पीडब्ल्यूडी’, ‘पीडब्ल्यूबीडी’ (बेंचमार्क दिव्यांगता वाले व्यक्ति) और ‘निर्दिष्ट अक्षमता’ की परिभाषा अस्थायी और स्थायी दिव्यांगता के बीच अंतर नहीं करती है।
वर्तमान मामले में ‘केराटोकोनस’ (दृष्टिहीनता) से पीड़ित याचिकाकर्ता, ने दिव्यांगता प्रमाण पत्र के आधार पर पीडब्ल्यूडी श्रेणी में दाखिले के लिए आवेदन किया था, जिसमें दर्ज किया गया था कि उसकी दोनों आंखों से संबंधित 40 प्रतिशत अस्थायी दिव्यांगता है। प्रमाण पत्र में कहा गया कि याचिकाकर्ता की स्थिति में ‘‘सुधार की संभावना’’ है। इस वजह से उसकी उम्मीदवारी को अंततः खारिज कर दिया गया था।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ‘‘निर्विवाद रूप से एक पीडब्ल्यूबीडी’’ है और ‘‘कानून की अनुसूची भी निर्दिष्ट अक्षमताओं की गणना करते समय, दृष्टिहीनता के संदर्भ में स्थायी और अस्थायी के बीच भेद नहीं करती है।
अपने फैसले का बचाव करते हुए संस्थान ने दलील दी थी कि कानून के तहत निर्दिष्ट दिव्यांगता की सीमा का आकलन करने के लिए दिशा-निर्देशों के खंड 19.2 के लिए प्रमाणित होने को लेकर विकलांगता का स्थायी होना आवश्यक है और चूंकि याचिकाकर्ता की स्थिति में सुधार होने की संभावना है इसलिए वह आरक्षण के लाभ के हकदार नहीं है।
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