अद्भुत वाक्पटुता, मिलनसार व कौशल के कारण भाजपा में स्टार प्रचारक थीं सुषमा स्वराज
By भाषा | Published: August 7, 2019 08:04 PM2019-08-07T20:04:17+5:302019-08-07T20:04:17+5:30
उस दौर में सुषमा एक ऐसी प्रतिभा सम्पन्न शख्सियत के रूप में उभरीं, जो दिल्ली से कर्नाटक तक, उत्तर से दक्षिण एवं पूरब से पश्चिम तक स्थान-स्थान जाकर लोगों से सहज ही सम्पर्क बना लेती थीं और इस तरह से पार्टी की स्टार प्रचार रहीं।
अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जब 90 के दशक में भाजपा को सत्ता में लाने की कवायद में जुटे थे, तब अपनी अद्भुत वाक्पटुता और आम लोगों से सहज घुलमिल जाने के कौशल की बदौलत सुषमा स्वराज पार्टी में सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक के रूप में उभर कर सामने आईं।
उस दौर में सुषमा एक ऐसी प्रतिभा सम्पन्न शख्सियत के रूप में उभरीं, जो दिल्ली से कर्नाटक तक, उत्तर से दक्षिण एवं पूरब से पश्चिम तक स्थान-स्थान जाकर लोगों से सहज ही सम्पर्क बना लेती थीं और इस तरह से पार्टी की स्टार प्रचार रहीं।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने उनसे जुड़ी अपनी यादें साझा करते हुए कहा कि 90 के दशक के अंत और 2000 के प्रारंभ में चुनाव प्रचार में उनकी सबसे अधिक मांग रहती थी। खास तौर पर हिन्दी पट्टी के इलाके में पार्टी के शीर्ष नेताओं में सुषमा स्वराज को उनकी संतुलित..आक्रामक और बेहद सधी भाषा में विषयों को रखने तथा ‘भारतीय नारी’ के रूप में उनकी छवि के कारण लोग सबसे अधिक सुनना पसंद करते थे।
आडवाणी के साथ खड़ी नजर आने वाली सुषमा लोगों के बीच अपने व्यापक प्रभाव के कारण राजनीति में आगे बढ़ती चली गई और इसका ही परिणाम था कि वह चार बार लोकसभा के लिये चुनी गईं । वह दक्षिण दिल्ली से दो बार निचले सदन के लिये चुनी गईं।
साल 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 13 दिनों की सरकार और 1998 में दोबारा सरकार बनने पर वह सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनीं। सुषमा स्वराज का सबसे प्रसिद्ध चुनावी मुकाबला 1999 में सामने आया जब वह बेल्लारी से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ भाजपा की उम्मीदवार बनीं।
कुछ महीनों के लिये वह दिल्ली की मुख्यमंत्री भी रहीं और पार्टी ने उन्हें चुनाव में दिल्ली में भाजपा को दोबारा सत्ता में वापसी कराने का दायित्व सौंपा था। हालांकि, कम समय मिलने के कारण वह ऐसा चमत्कार नहीं कर सकीं।
साल 1999 में सोनिया गांधी के खिलाफ चुनावी मुकाबले में भाजपा ने सुषमा स्वराज को ‘‘भारतीय नारी’’ के प्रतीक और सोनिया गांधी को ‘‘विदेशी बहू’’ के रूप में पेश किया था। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव जीतने में सफल रहीं लेकिन सुषमा स्वराज बेल्लारी सीट पर खासा प्रभाव छोड़ने में सफल रहीं।
सुषमा स्वराज को 3.58 लाख वोट मिले जबकि सोनिया गांधी को 4.14 लाख वोट प्राप्त हुए थे। भाजपा के सत्ता में आने के बाद उनका कद बढ़ता गया। भाजपा के सत्ता से बाहर होने पर वाजपेयी ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया।
इसके बाद 2009 में सुषमा स्वराज को लोकसभा में पार्टी का नेता बनाया गया। हिन्दुत्व से जुड़ाव के कारण वह आरएसएस की भी पसंद थीं और शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने 2014 के लोकसभा चुनावों के लिये एक समय भाजपा नीत राजग की तरफ से उनका नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर सुझाया था।
बहरहाल, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का कद एवं प्रभाव बढ़ने और फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी को भाजपा के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने के बाद सुषमा के भविष्य को लेकर सवाल भी उठे थे।
हालांकि, पार्टी की सरकार बनने के बाद विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने अपना स्थान बनाया। स्वास्थ्य कारणों से वह सक्रिय राजनीति से अलग हो गईं लेकिन एक प्रखर वक्ता और कुशल प्रशासक के रूप में उन्होंने ऐसी छाप छोड़ी जिसे भाजपा में लम्बे समय तक याद किया जायेगा।