Supreme Court: "हां, वो आतंकी है, लेकिन कानून इतना असंवेदनशील नहीं हो सकता", सर्वोच्च अदालत ने 96 साल के आतंकी दोषी की रिहाई के पक्ष में कहा

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: April 9, 2024 08:41 AM2024-04-09T08:41:29+5:302024-04-09T09:08:06+5:30

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान में 1993 के ट्रेन विस्फोट मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 96 साल के बीमार आतंकवादी दोषी की रिहाई के पक्ष में कहा कि वो लगातार कारावास काट रहा है, जो मौत के समान है।

Supreme Court: "Yes, he is a terrorist, but the law cannot be so insensitive", court said in favor of release of 96 year old terrorist convict | Supreme Court: "हां, वो आतंकी है, लेकिन कानून इतना असंवेदनशील नहीं हो सकता", सर्वोच्च अदालत ने 96 साल के आतंकी दोषी की रिहाई के पक्ष में कहा

फाइल फोटो

Highlightsसुप्रीम कोर्ट ने 96 साल के आतंकी की स्थाई पैरोल के लिए दिखाई हमदर्दी आतंकी हबीब अहमद खान ने उम्र और अपने खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट से मांगी रहमकोर्ट ने कहा कि वो बेहद तकलीफ में है, कानून ऐसा मामलों में "इतना असंवेदनशील नहीं हो सकता" है

नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने बीते सोमवार को राजस्थान में 1993 के ट्रेन विस्फोट मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 96 साल के बीमार आतंकवादी दोषी की रिहाई के पक्ष में कहा कि दोषी इस अवस्था में जेल में लगातार कारावास काट रहा है, जो मौत के समान है।

जानकारी के अनुसार दोषी हबीब अहमद खान पैरोल पर था और उसने 96 साल की उम्र और अपनी खराब स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर सुप्रीम कोर्ट से स्थायी पैरोल की मांग के संबंध में अपील की थी। 

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार हबीब अहमद खान 27 सालों तल लगातार जेल में बंद रहे, जिसके बाद उन्हें तीन बार पैरोल दी गई। इस याचिका के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने मामले में राजस्थान सरकार से "मानवाधिकार के नजरिए" से विचार करने को कहा और कहा कि दोषी की उम्रकैद से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।

सु्प्रीम कोर्ट में दोनों जजों की बेंच ने कहा, “जरा उसकी मेडिकल रिपोर्ट देखिए, अब वह कहां जाएगा? यह सबसे ख़राब है। हां, मानते हैं कि उसे आतंकवादी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था लेकिन उसे मृत्युदंड भी तो नहीं दिया गया था। उसके लिए निरंतर कारावास मृत्युदंड के ही समान है।”

पीठ के अनुसार 96 साल की उम्र में आतंकी वारदात के दोषी हबीब अहमद खान तो अब सिर्फ अपने जिंदगी के दिन गिन रहे हैं और कानून ऐसा मामलों में "इतना असंवेदनशील नहीं हो सकता" है।

इसके साथ दोनों जजों की पीठ ने राजस्थान सरकार से पूछा है कि क्या दोषी हबीब अहमद खान को सजा से छूट या स्थायी पैरोल दी जा सकती है। कोर्ट ने मामले को दो हफ्ते बाद के लिए सूचीबद्ध किया है।

म्लूम हो कि हबीब अहमद खान को 1993 में ट्रेन विस्फोटों की श्रृंखला के सिलसिले में 1994 में गिरफ्तार किया गया था। उन्हें 2004 में चार अन्य लोगों के साथ आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के तहत दोषी ठहराया गया था। साल 2016 में शीर्ष अदालत ने 96 साल के खान की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था।

वहीं राजस्थान हाईकोर्ट ने अगस्त 2018 में खान की उम्र को देखते हुए पहली बार 20 दिनों के लिए पैरोल दी थी। उसके बाद हाईकोर्ट ने 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान 20 दिनों की और फिर फरवरी 2021 में उन्हें तीसरी बार पैरोल दी थी। 

Web Title: Supreme Court: "Yes, he is a terrorist, but the law cannot be so insensitive", court said in favor of release of 96 year old terrorist convict

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