नयी दिल्ली, 10 अप्रैल उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र और महाराष्ट्र तथा गुजरात समेत चार राज्यों से उस याचिका पर तीन सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है जिसमें भिक्षावृत्ति को अपराध की श्रेणी में रखने वाले प्रावधानों को निरस्त किये जाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की एक पीठ ने अपने आदेश में कहा कि हालांकि इस वर्ष 10 फरवरी को याचिका पर एक नोटिस जारी किया गया था लेकिन अब तक इस मामले में केवल बिहार ने अपना जवाब दाखिल किया है।
पीठ ने शुक्रवार को पारित अपने आदेश में कहा, ‘‘हालांकि नोटिस 10 फरवरी, 2021 को जारी किया गया था, लेकिन केवल बिहार राज्य द्वारा जवाब दाखिल किया गया है - और अन्य प्रतिवादियों ने अभी तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया है। तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल किया जाए।’’
उच्चतम न्यायालय अब तीन सप्ताह बाद इस मामले में सुनवाई करेगा।
न्यायालय ने फरवरी में उस याचिका पर केन्द्र के साथ-साथ महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा और बिहार से जवाब मांगा था जिसमें दावा किया गया है कि भिक्षावृत्ति को अपराध बनाने संबंधी धाराएं संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
पीठ मेरठ निवासी विशाल पाठक द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अधिवक्ता एच के चतुर्वेदी द्वारा दायर याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय के अगस्त 2018 के उस फैसले का जिक्र किया गया है जिसमें कहा गया था राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगना अब अपराध नहीं होगा।
इसमें कहा गया है कि बम्बई भिक्षावृत्ति रोकथाम अधिनियम, 1959 के प्रावधान, जिनमें भीख मांगने को एक अपराध के रूप में माना गया है, संवैधानिक रूप से नहीं टिक सकते है।
याचिका में 2011 की जनगणना का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि भारत में भिखारियों की कुल संख्या 4,13,670 है और पिछली जनगणना से यह संख्या बढ़ी है।
इसमें कहा गया है कि सरकार को सभी के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने और सभी को संविधान में राज्य नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुसार बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने का अधिकार है।
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