सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा दंगे के तीन दोषियों को जमानत देने से इनकार किया, कहा- 'यह गंभीर अपराध है'
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: August 15, 2023 11:40 AM2023-08-15T11:40:47+5:302023-08-15T11:44:39+5:30
सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2002 में गुजरात के गोधरा स्टेशन पर खड़ी साबरमती एक्सप्रेस के बोगियों को जलाने के मामले में आजीवन कारावास के तीन दोषियों को जमानत देने से इनकार कर दिया है।
नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2002 में गुजरात के गोधरा स्टेशन पर खड़ी साबरमती एक्सप्रेस के बोगियों को जलाने के मामले में आजीवन कारावास के तीन दोषियों को जमानत देने से इनकार कर दिया है। देश की सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को तीनों दोषियों शौकत यूसुफ इस्माइल मोहन, सिद्दीक अब्दुल्ला बादाम शेख और बिलाल अब्दुल्ला इस्माइल बादाम घांची को यह कहते हुए रिहाई की छूट देने से इनकार कर दिया कि दषियों का गुनाह माफ किये जाने के लायक नहीं है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि तीनों दोषियों को किसी भी तरह का रहम देने से इनकार करते हुए कहा वह घटना बेहद गंभीर थी। यह किसी अलग व्यक्ति की हत्या का मामला नहीं है।
समाचार वेबसाइट न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार सीजेआई चंद्रचूड़ ने इस मामले में 11 दोषियों की मिली मौत की सजा को कम करने के गुजरात हाईकोर्ट के साल 2017 के फैसले के खिलाफ दायर की गई अपील पर सुनवाई के लिए एक पीठ का गठन करते हुए कहा, "घटना बहुत ही गंभीर है और यह किसी अकेले व्यक्ति की हत्या का मामला नहीं है। इसलिए मैं अपील को उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करूंगा।”
वहीं दोषियों के जमानत पर आपत्ति जताते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दावा किया कि उनके खिलाफ आरोप सिर्फ पथराव के नहीं थे। कोर्ट से मेहता ने कहा, "एक आरोपी को मुख्य साजिशकर्ता होने का दोषी पाया गया, जिसने ट्रेन की बोगी जलाने के कृत्य में सक्रिय रूप से भाग लिया था।"
दोषियों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय हेज ने उनके 17 साल तक हिरासत में रहने पर अदालत से कहा कि दोनों के खिलाफ तो सिर्फ पथराव के आरोप थे जबकि एक पर यात्रियों के गहने लूटने का आरोप था। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 21 अप्रैल को उन आठ दोषियों को जमानत दे दी थी, जिन्हें 2002 के गोधरा ट्रेन नरसंहार मामले में शामिल होने के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने उन्हें जमानत देते समय उनके द्वारा जेल में बिताई गई सजा की अवधि (17-18 वर्ष) को ध्यान में रखा और इस तथ्य पर भी विचार किया कि उनकी अपीलों के निपटारे के लिए उठाए जाने की अभी कोई संभावना नहीं थी। हालांकि पीठ ने मामले में सॉलिसिटर जनरल मेहता की आपत्ति के बाद कथित भूमिका के कारण चार दोषियों को जमानत देने से इनकार कर दिया।
मालूम हो कि फरवरी 2002 में गोधरा स्टेशन पर खड़ी साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 बोगी में लगी आग के कारण महिलाओं और बच्चों सहित 59 लोगों की मौत हो गई थी, जो 27 फरवरी, 2002 को अयोध्या से लौट रहे थे। आरोप है कि हिंसक भीड़ ने गोधरा रेलवे स्टेशन पर ट्रेन पर पथराव किया, ट्रेन के डिब्बे के दरवाजे को बाहर से बंद कर दिया और उसमें आग लगा दी थी।