दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को नोटिस जारी किया है। सर्वोच्च अदालत ने यह नोटिस उद्धव ठाकरे की शिवसेना की उस याचिका पर जारी किया है, जिसमें शिवसेना यूबीटी ने आरोप लगाया कि स्पीकर राहुल नार्वेकर मुख्यमंत्री एकनाथ शिदे समेत 16 विधायकों के तत्कालीन शिवसेना से अलग होने के कारण उनकी विधानसभा से अयोग्य ठहराने की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय लेने में 'जानबूझकर देरी' कर रहे हैं।
समाचार इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार याचिकाकर्ता शिवसेना यूबीटी की भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच के सामने पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कोर्ट को बताया कि स्पीकर शिवसेना से बगावत करके अलग होने वाले विधायकों की अयोग्यता की कार्यवाही पर शांत बैठे हुए हैं।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच में शामिल जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा ने अधिवक्ता देवदत्त कामत की दलील सुनने के बाद महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर को नोटिस जारी किया और दो सप्ताह में नोटिस पर जवाब मांगा है।
शिवसेना यूबीटी की ओर से दायर की गई याचिका में स्पीकर पर आरोप लगाया गया है कि वो सीएम शिंदे समेत तत्कालीन शिवसेना से गये गए अन्य बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग वाली याचिकाओं पर फैसले में "जानबूझकर देरी" कर रहे हैं।
वकील देवदत्त कामत ने कोर्ट को बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते 11 मई को दिये अपने फैसले में शिवसेना में उपजे बगावत में हिस्सा लेने वाले विधायकों की विधानसभा सदस्यता पर उचित फैसला लेने के लिए स्पीकर राहुल नार्वेकर को स्पष्ट आदेश दिया था। कोर्ट ने स्पीकर से कहा था कि वो विधानसभा के पटल पर विधायकों की अयोग्यता से संबंधित लंबित पड़ी अयोग्यता याचिकाओं पर उचित समय के भीतर निर्णय लें।
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बावजूद स्पीकर मामले में सुनवाई नहीं कर रहे हैं और ये सीधे सुप्रीम कोर्ट के आदश की अवहेलना है। जबकि इस विवाद में निष्पक्ष तरीके से त्वरित फैसला लिया जाना बेहद आवश्यक है और चूंकि विधायकों की अयोग्यता के प्रश्न पर निर्णय लेने का दायित्व सीधे अध्यक्ष के पास है। इसलिए कोर्ट इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष को उचित आदश जारी करे।
इसके साथ ही याचिका में कहा गया है कि अध्यक्ष के समक्ष विधायकों की अयोग्यता के लिए दायर की गई याचिकाओं पर किसी भी तरह की अनुचित देरी दोषी सदस्यों द्वारा किए गए दलबदल के संवैधानिक पाप को बढ़ावा देती है और उसे कायम रखती है। यह खुलेआम असंवैधानिक कृत्य, जिसे संविधान की दसवीं अनुसूची में अयोग्यता माना गया है।
याचिका में यह तर्क भी पेश किया गया है कि अयोग्यता की कार्यवाही पर निर्णय लेने में स्पीकर की खामोशी गंभीर असंवैधानिक कृत्य के सामना है। इस कारण अयोग्य विधायक विधानसभा के सदस्य बने हुए हैं और महाराष्ट्र सरकार में मुख्यमंत्री और मंत्री जैसे जिम्मेदार पदों पर बैठे हैं।
स्पीकर का पद संवैधानिक पद पर होता है और उसके कार्यालय को अपनी राजनीतिक संबद्धता से ऊपर उठकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। हालांकि वर्तमान मामले में स्पीकर की निष्क्रियता से स्पष्ट है कि वह दसवीं अनुसूची के तहत अध्यक्ष के कार्यों का निष्पक्ष निर्वहन नहीं कर रहे हैं। इन बातों को ध्यान में रखते हुए अदालत से अपील है कि वह स्पीकर को अयोग्यता याचिकाओं पर समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने का निर्देश जारी करे।