Supreme Court: ऐसी क्या आफत, धर्म परिवर्तन कर आरक्षण का लाभ लेंगे?, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-‘संविधान के साथ धोखाधड़ी’, अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र नहीं दे सकते...

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: November 27, 2024 15:20 IST2024-11-27T15:19:36+5:302024-11-27T15:20:36+5:30

Supreme Court: कोई व्यक्ति किसी अन्य धर्म को तभी अपनाता है, जब वह वास्तव में उसके सिद्धांतों, धर्म और आध्यात्मिक विचारों से प्रेरित होता है।

Supreme Court Conversion religion reservation benefits Court said Fraud with Constitution Scheduled Caste certificate cannot be given | Supreme Court: ऐसी क्या आफत, धर्म परिवर्तन कर आरक्षण का लाभ लेंगे?, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-‘संविधान के साथ धोखाधड़ी’, अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र नहीं दे सकते...

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Highlightsमहिला ने बाद में आरक्षण के तहत रोजगार का लाभ प्राप्त करने के लिए हिंदू होने का दावा किया था।न्यायमूर्ति महादेवन ने पीठ के लिए 21 पृष्ठ का फैसला लिखा। आरक्षण का लाभ प्राप्त करना है तो इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बिना किसी वास्तविक आस्था के केवल आरक्षण का लाभ पाने के लिए किया गया धर्म परिवर्तन ‘‘संविधान के साथ धोखाधड़ी’’ है। न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति आर. महादेवन ने सी. सेल्वरानी की याचिका पर 26 नवंबर को यह फैसला सुनाया तथा मद्रास उच्च न्यायालय के 24 जनवरी के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें ईसाई धर्म अपना चुकी एक महिला को अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया गया था। महिला ने बाद में आरक्षण के तहत रोजगार का लाभ प्राप्त करने के लिए हिंदू होने का दावा किया था।

न्यायमूर्ति महादेवन ने पीठ के लिए 21 पृष्ठ का फैसला लिखा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कोई व्यक्ति किसी अन्य धर्म को तभी अपनाता है, जब वह वास्तव में उसके सिद्धांतों, धर्म और आध्यात्मिक विचारों से प्रेरित होता है। उन्होंने कहा, ‘‘अगर धर्म परिवर्तन का मुख्य मकसद दूसरे धर्म में वास्तविक आस्था होने के बजाय आरक्षण का लाभ प्राप्त करना है तो इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।

क्योंकि ऐसी गलत मंशा रखने वाले लोगों को आरक्षण का लाभ देने से आरक्षण नीति के सामाजिक लोकाचार को ही क्षति पहुंचेगी।’’ पीठ के समक्ष प्रस्तुत साक्ष्य से स्पष्टतया पता चलता है कि अपीलकर्ता ईसाई धर्म को मानती थी तथा नियमित रूप से गिरजाघर में जाकर सक्रिय रूप से इस धर्म का पालन करती थी।

पीठ ने कहा, ‘‘इसके बावजूद वह हिंदू होने का दावा करती है और नौकरी के लिए अनुसूचित जाति समुदाय का प्रमाण-पत्र मांगती है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘इस तरह का दोहरा दावा अस्वीकार्य है और वह ईसाई धर्म अपनाने के बावजूद एक हिंदू के रूप में अपनी पहचान बनाए नहीं रख सकती हैं।’’

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि महिला ईसाई धर्म में आस्था रखती है और महज नौकरी में आरक्षण का लाभ उठाने के उद्देश्य से वह हिंदुत्व का अब तक पालन करने का दावा करती है। ऐसे में महिला को अनुसूचित जाति का दर्जा प्रदान करना ‘‘आरक्षण के मूल उद्देश्य के खिलाफ होगा और संविधान के साथ धोखाधड़ी होगी’’।

शीर्ष अदालत ने रेखांकित किया कि केवल आरक्षण का लाभ पाने के लिए अपनाए गए धर्म में वास्तविक आस्था के बिना धर्म परिवर्तन करना आरक्षण नीति के मौलिक सामाजिक उद्देश्यों को कमजोर करता है और महिला का कार्य हाशिये पर पड़े समुदायों के उत्थान के उद्देश्य से आरक्षण नीतियों की भावना के विपरीत है।

हिंदू पिता और ईसाई माता की संतान सेल्वरानी को जन्म के कुछ समय बाद ही ईसाई धर्म की दीक्षा दी गई थी, लेकिन बाद में उन्होंने हिंदू होने का दावा किया और 2015 में पुडुचेरी में उच्च श्रेणी लिपिक के पद पर आवेदन करने के लिए अनुसूचित जाति प्रमाण-पत्र मांगा। सेल्वरानी के पिता वल्लुवन जाति से थे, जो अनुसूचित जाति में शामिल है और उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था, जिसकी पुष्टि दस्तावेजी साक्ष्यों से हो चुकी है। फैसले में कहा गया कि अपीलकर्ता ने ईसाई धर्म का पालन करना जारी रखा, जैसा कि नियमित रूप से गिरजाघर जाने से पता चलता है।

इससे उनके हिंदू होने का दावा अस्वीकार्य हो जाता है। पीठ ने कहा कि ईसाई धर्म अपनाने वाले व्यक्ति अपनी जातिगत पहचान खो देते हैं और अनुसूचित जाति के लाभ का दावा करने के लिए उन्हें पुनः धर्मांतरण तथा अपनी मूल जाति द्वारा स्वीकार किए जाने का ठोस सबूत देना होगा। फैसले में कहा गया कि अपीलकर्ता के पुनः हिंदू धर्म में धर्मांतरण या वल्लुवन जाति द्वारा धर्म स्वीकार करने का कोई ठोस सबूत नहीं है।

Web Title: Supreme Court Conversion religion reservation benefits Court said Fraud with Constitution Scheduled Caste certificate cannot be given

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