Supreme Court: सदन में रिश्वत लेकर वोट या भाषण दिया तो चलेगा केस, सांसदों एवं विधायकों को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के फैसले को पलटा

By सतीश कुमार सिंह | Published: March 4, 2024 11:01 AM2024-03-04T11:01:18+5:302024-03-04T11:43:27+5:30

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का मानना ​​है कि विधायकों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देती है।

Supreme Court Bribery isn't protected by parliamentary privileges, interpretation of 1998 verdict is contrary to Constitution's Articles 105, 194 SC | Supreme Court: सदन में रिश्वत लेकर वोट या भाषण दिया तो चलेगा केस, सांसदों एवं विधायकों को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के फैसले को पलटा

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Highlights 1998 के फैसले की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 105, 194 के विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम पीवी नरसिम्हा मामले के फैसले से असहमत और फैसले को पलट दिया है। लोकसभा चुनाव से पहले जनप्रतिनिधि के लिए बड़ा झटका है।

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुना दिया है। उच्चतम न्यायालय ने सदन में वोट डालने और भाषण देने के लिए रिश्वत लेने पर सांसदों एवं विधायकों को अभियोजन से छूट देने के 1998 के फैसले को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट का मानना ​​है कि विधायकों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देती है। न्यायालय ने कहा कि रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकारों द्वारा संरक्षित नहीं है, 1998 के फैसले की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 105, 194 के विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम पीवी नरसिम्हा मामले के फैसले से असहमत और फैसले को पलट दिया है। रिश्वतखोरी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को हमेशा के लिए खत्म कर देती है। लोकसभा चुनाव से पहले जनप्रतिनिधि के लिए बड़ा झटका है।

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि सांसदों और विधायकों को सदन में वोट डालने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने के मामले में अभियोजन से छूट नहीं होती। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) रिश्वत मामले में पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनाए गए 1998 के फैसले को सर्वसम्मति से पलट दिया।

पांच न्यायाशीधों की पीठ के फैसले के तहत सांसदों और विधायकों को सदन में वोट डालने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने के मामले में अभियोजन से छूट दी गई थी। प्रधान न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि रिश्वतखोरी के मामलों में संसदीय विशेषाधिकारों के तहत संरक्षण प्राप्त नहीं है और 1998 के फैसले की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के विपरीत है।

अनुच्छेद 105 और 194 संसद और विधानसभाओं में सांसदों और विधायकों की शक्तियों एवं विशेषाधिकारों से संबंधित हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पीठ के लिए फैसले का मुख्य भाग पढ़ते हुए कहा कि रिश्वतखोरी के मामलों में इन अनुच्छेदों के तहत छूट नहीं है क्योंकि यह सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को नष्ट करती है।

उच्चतम न्यायालय की सात न्यायाधीशों की पीठ ने 1998 के फैसले पर पुनर्विचार के संबंध में पांच अक्टूबर 2023 को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था, जिसमें कहा गया था कि सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट देने के लिए रिश्वत लेने पर अभियोजन से छूट प्राप्त है।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित कई वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। वृहद पीठ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) रिश्वत मामले में 1998 में पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनाए गए फैसले पर पुनर्विचार कर रही है, जिसके द्वारा सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट देने के संबंध में रिश्वत के लिए अभियोजन से छूट दी गई थी। देश को झकझोर देने वाले झामुमो रिश्वत कांड के 25 साल बाद शीर्ष अदालत फैसले पर दोबारा विचार कर रही है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले में दलीलें रखते हुए अदालत से संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत छूट के पहलू पर नहीं जाने का आग्रह किया था। मेहता ने कहा था, ‘‘रिश्वतखोरी का अपराध तब होता है जब रिश्वत दी जाए और कानून निर्माताओं (सांसद-विधायक) द्वारा स्वीकार की जाए। इससे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत निपटा जा सकता है।’’ अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि वह इस मामले पर सुनवाई करेगी कि यदि सांसदों व विधायकों के कृत्यों में आपराधिकता जुड़ी है तो क्या उन्हें तब भी छूट दी जा सकती है।

English summary :
Supreme Court Bribery isn't protected by parliamentary privileges, interpretation of 1998 verdict is contrary to Constitution's Articles 105, 194 SC


Web Title: Supreme Court Bribery isn't protected by parliamentary privileges, interpretation of 1998 verdict is contrary to Constitution's Articles 105, 194 SC

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