नई दिल्ली, 24 अगस्तः प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। गुरुवार को देश की शीर्ष अदालत ने पदोन्नति में आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए उच्च आधिकारिक पदों पर बैठे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति समुदायों के संपन्न लोगों के परिजनों को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण देने के तर्क पर सवाल उठाया। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सवाल किया कि एससी,एसटी के संपन्न लोगों को पदोन्नति में आरक्षण के लाभ से वंचित करने के लिए उन पर ‘क्रीमीलेयर’ सिद्धांत लागू क्यों नहीं किया जा सकता? यह सिद्धांत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के समृद्ध वर्ग को आरक्षण के लाभ के दायरे से बाहर करने के लिए लागू किया जाता है। पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, आर एफ नरीमन, एस के कौल और इंदू मल्होत्रा भी शामिल थे।
दिनभर चली सुनवाई के दौरान, अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल, अतिरिक्त सालिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ताओं इंदिरा जयसिंह, श्याम दीवान, दिनेश द्विवेदी और पी एस पटवालिया सहित कई वकीलों ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए पदोन्नति में आरक्षण का पुरजोर समर्थन किया और मांग की कि बड़ी पीठ द्वारा 2006 के एम नागराज मामले के पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले पर फिर से विचार किया जाना चाहिए।
अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में अपनी राय देते हुए कहा कि एससी/एसटी वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति पर आरक्षण होना चाहिए या नहीं मैं इसपर टिप्पणी नहीं करुंगा, लेकिन इन लोगों ने पिछले 1000 साल से अत्याचार झेला है और आज भी झेल रहे हैं।
प्रवेश स्तर पर आरक्षण में समस्या नहींः-
- पीठ ने कहा, ‘‘प्रवेश स्तर पर आरक्षण। कोई समस्या नहीं। मान लीजिए, कोई ‘एक्स’ व्यक्ति आरक्षण की मदद से किसी राज्य का मुख्य सचिव बन जाता है। अब, क्या उसके परिवार के सदस्यों को पदोन्नति में आरक्षण के लिए पिछड़ा मानना तर्कपूर्ण होगा क्योंकि इसके जरिये उसका वरिष्ठताक्रम तेजी से बढ़ेगा।’’
12 साल पहले के फैसले में क्या?
देश की शीर्ष अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ सरकारी नौकरी में पदोन्नतियों में अनुसूचित जाति (एसी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणियों में आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर मुद्दे को लेकर उसके 12 वर्ष पुराने फैसले पर फिर से विचार कर रही है। इसके लिए इस पर सुनवाई शुरू हो गई है।
वर्ष 2006 के फैसले में कहा गया था कि एससी/एसटी समुदायों को पदोन्नति में आरक्षण देने से पहले राज्यों पर इन समुदायों के पिछड़ेपन पर गणनायोग्य आंकड़े और सरकारी नौकरियों तथा कुल प्रशासनिक क्षमता में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के बारे में तथ्य उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी है। वेणुगोपाल और अन्य वकीलों ने आरोप लगाया कि फैसले ने इन समुदाय के कर्मचारियों की पदोन्नति को लगभग रोक दिया है।
वरिष्ठ वकीलों ने किया प्रमोशन में आरक्षण का विरोध
हालांकि, वरिष्ठ वकील और पूर्व विधि मंत्री शांति भूषण तथा वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने पदोन्नति में आरक्षण का विरोध किया और कहा कि यह समानता के अधिकार और सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर का उल्लंघन करता है। इस मामले में दलीलों का सिलसिला 29 अगस्त को भी जारी रहेगा।
PTI-Bhasha Inputs