जांच आयोग की रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपा जाना मान्य परंपरा के विपरीत : बघेल

By भाषा | Updated: November 8, 2021 21:19 IST2021-11-08T21:19:22+5:302021-11-08T21:19:22+5:30

Submitting the report of the Commission of Inquiry to the Governor is contrary to the accepted tradition: Baghel | जांच आयोग की रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपा जाना मान्य परंपरा के विपरीत : बघेल

जांच आयोग की रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपा जाना मान्य परंपरा के विपरीत : बघेल

रायपुर, आठ नवंबर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने झीरम घाटी नक्सली हमले की न्यायिक जांच रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपे जाने को स्थापित परंपरा के खिलाफ बताया है। बघेल ने रिपोर्ट को "अचानक" प्रस्तुत करने पर भी आश्चर्य जताया और राजधानी रायपुर के हेलीपैड में सोमवार को संवाददाताओं से बातचीत के दौरान कहा कि आयोग ने जांच पूरी करने के लिए राज्य सरकार से और समय मांगा था।

बघेल ने कहा कि 25 मई, 2013 को झीरम की घटना हुई जिसमें हमारे प्रथम पंक्ति के नेता, कार्यकर्ता और जवान शहीद हो गए। उसके बाद राज्य सरकार रदने 28 मई 2013 को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया तथा जांच के बिंदु भी तय किए गए। नोटिफिकेशन हुआ था कि तीन महीने के भीतर जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करना है। उस समय से लेकर अब तक लगभग 20 बार समय में वृध्दि की गई है।

बघेल ने कहा कि इस वर्ष सितंबर माह में आयोग के कार्यकाल को बढाए जाने के लिए समय मांगा गया था। चूंकि इस बीच न्यायधीश प्रशांत कुमार मिश्रा का स्थानांतरण आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के रूप में हुआ था इसलिए ​विधि विभाग से अभिमत मांगा गया था कि जांच पूरी नहीं हुई है और जो न्यायधीश जांच कर रहे थे उनका स्थानांतरण हो गया है तब ऐसी स्थिति में हम क्या कर सकते हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि इसका अर्थ यह हुआ कि जांच पूरी नहीं हुई थी। समय में वृध्दि करने की मांग आयोग के सचिव की ओर से ही आयी थी। इस बीच समाचार पत्रों से जानकारी मिली कि राज्यपाल महोदया के पास यह रिपोर्ट सौंप दी गई है। हमें राजभवन से इसकी जानकारी नहीं मिली है।

बघेल ने कहा कि अभी तक लगभग सात या आठ आयोग का गठन राज्य सरकार ने किया है। मान्य परिपाटी यह है कि उसे राज्य सरकार को सौंपा जाता है और विधानसभा के पटल में आयोग की रिपोर्ट को रखा जाता है। लेकिेन ऐसा नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट राज्याल महोदया के पास भेजी गयी है। यह जानकारी भी राजभवन से नहीं बल्कि मीडिया के माध्यम से मिली है। इसका ​अर्थ यह हुआ कि यह जांच रिपोर्ट आधी ​अधूरी है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आयोग ने अंतिम अवसर के लिए समय मांगा और दूसरी ओर रिपोर्ट को राज्यपाल को सौंप दिया गया। यह विरोधाभास है। वह भी, रिपोर्ट को मान्य परंपरा के विपरीत राज्पाल को सौंपा गया है।

छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र की झीरम घाटी में माओवादियों ने 25 मई वर्ष 2013 को कांग्रेस पार्टी की 'परिवर्तन यात्रा' पर हमला कर दिया था। इस हमले में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा और पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल समेत 29 लोग मारे गए थे। घटना के बाद 28 मई को राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन किया था। न्यायमूर्ति मिश्रा अब आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश हैं। झीरम घाटी जांच आयोग के सचिव और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) संतोष कुमार तिवारी ने इस महीने की छह तारीख को आयोग की रिपोर्ट राज्यपाल को सौंप दी थी।

मुख्यमंत्री ने इस दौरान भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर भी निशाना साधा और कहा कि केंद्र सरकार झीरम घाटी हमले से संबंधित एनआईए को दी गई केस डायरी नहीं लौटाकर किसे बचाना चाह रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि मामले की जांच का जिम्मा एनआईए को सौंपा गया था और एनआईए ने अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंप ​दी है। राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद इस मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया। इस दौरान केंद्र सरकार से झीरम मामले की जांच की फाइल सौंपने के लिए कहा गया है। लेकिन अनेक बार पत्राचार करने के बाद भी केंद्र सराकर ने वह फाइल राज्य सरकार को वापस नहीं की।

बघेल ने कहा कि सवाल इस बात का है कि आखिर केंद्र सरकार किसे बचाना चाह रही है। किस तथ्य को छिपाना चाहती है। घटना के दौरान जो लोग घटनास्थल पर थे, एनआईए ने उनसे गवाही तक नहीं ली है। एनआईए ने इस घटना के पीछे षड़यंत्र की भी जांच नहीं की है।

इस दौरान बघेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ कृषि उपज मंडी (संशोधन) विधेयक, 2020 जो पिछले साल अक्टूबर माह में विधानसभा में पारित किया गया था, अभी भी राज्यपाल के पास सहमति के लिए लंबित है। उन्होंने कहा कि डीम्ड मंडी का विधेयक जो पिछले साल छत्तीसगढ़ विधानसभा में पारित किया गया था, राज्यपाल के पास सहमति के लिए लंबित है। बिल पर सहमति के लिए हम उनसे कई बार मिल चुके हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह स्वीकृति देने से पहले जब तक चाहें विधेयक को रोक कर रख सकते हैं। लेकिन इस बिल को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर पारित किया गया था।

राजभवन और सरकार के बीच सामंजस्य की कमी को लेकर पूछे गए सवाल पर बघेल ने कहा कि कई बार ऐसे बिल आते हैं जिसे राजभवन में अध्ययन के लिए रोका जाता है। असहमत हैं तब वापस कर दिया जाता है। सहमत हैं तब अनुमोदन कर दिया जाता है। मंडी का बिल रूका हुआ है। पत्रकारिता विश्वविद्यालय का बिल हमने भेजा है, वह भी रूका हुआ है। सामंजस्य की कमी जैसी कोई बात नहीं है।

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