Stampede at Maha Kumbh mela: कुंभ के दौरान पहले भी होते रहे हादसे?, दो कमेटियों की सिफारिशों पर नहीं हुआ अमल 

By राजेंद्र कुमार | Updated: January 29, 2025 16:41 IST2025-01-29T16:40:15+5:302025-01-29T16:41:06+5:30

Stampede at Maha Kumbh mela: कुंभ में हुए हादसों का इतिहास बताता है कि प्रयागराज में बुधवार को संगम नोज पर हुआ हादसा कोई पहला हादसा नहीं हैं.

Stampede at Maha Kumbh mela live 2025 accidents happened before during Kumbh Recommendations two committees not implemented | Stampede at Maha Kumbh mela: कुंभ के दौरान पहले भी होते रहे हादसे?, दो कमेटियों की सिफारिशों पर नहीं हुआ अमल 

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Highlightsभीड़भाड़ वाले कुंभ के दौरान दुखद हादसों को अभी तक रोक नही जा सका है.कमेटी ने एक विस्तृत रिपोर्ट वर्षों पहले सौंपी थी. सिफ़ारिशों पर अभी भी कड़ाई से अमल नहीं किया गया.

Stampede at Maha Kumbh mela: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 144 साल बाद हो रहे महाकुंभ में संगम तट पर बुधवार को उस वक्त बड़ा हादसा हो गया जब मौनी अमावस्या के मौके पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ स्नान के लिए पहुंच गई. ऐसे में देर रात संगम नोज पर भगदड़ मची और कई लोगों की मौत हो गई. महाकुंभ के वक्त हुआ यह हादसा मेला क्षेत्र में हुई सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. इसके पहले इस तरह का हादसा आजाद भारत में वर्ष 1954 के हुए कुंभ के दौरान हुआ था. तब ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सरकार ने न्यायमूर्ति कमलाकांत वर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था. इस कमेटी ने एक विस्तृत रिपोर्ट वर्षों पहले सौंपी थी. इस कमेटी की सिफ़ारिशों पर अभी भी कड़ाई से अमल नहीं किया गया. इस कारण से भीड़भाड़ वाले कुंभ के दौरान दुखद हादसों को अभी तक रोक नही जा सका है.

कुंभ के दौरान हुए प्रमुख हादसे

कुंभ में हुए हादसों का इतिहास बताता है कि प्रयागराज में बुधवार को संगम नोज पर हुआ हादसा कोई पहला हादसा नहीं हैं. वर्ष 2013 में हुए कुंभ में भी मौनी अमावस्या के दिन स्नान कर लौट रहे श्रद्धालुओं के साथ प्रयागराज के रेलवे स्टेशन पर हादसा हुआ था. तब रात करीब साढ़े सात बजे पटना जाने के लिए इंतजार कर रही भारी भीड़ में मची भगदड़ के चलते 36 लोगों की मौत हुई थी.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ प्रयागराज में ही कुंभ के दौरान मची भगदड़ के चलते श्रद्धालुओं की मौत हुई है. वर्ष 2003 के नासिक सिंहस्थ कुंभ में भी अंतिम शाही स्नान के दौरान हुए हादसे में 39 श्रद्धालु मारे गए थे.  यह हादसा कुछ संतों द्वारा चांदी के सिक्के लुटाने के कारण हुआ था, जिसे लूटने के लिए श्रद्धालु एक-दूसरे पर टूट पड़े और भगदड़ में कई महिलाओं, बच्चों व बुजुर्गों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.

कुंभ में हुए ऐसे हादसों को लेकर शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष और शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप कहते हैं, कुंभ के दौरान हादसों का सिलसिला काफी पुराना है. इनमें से कुछ हादसे प्रशासन की लापरवाही से हुए है तो कुछ अखाड़ों के आपसी संघर्ष के परिणामस्वरूप.

स्वामी आनंद स्वरूप के अनुसार, वर्ष 1998 के हरिद्वार कुंभ के दूसरे शाही स्नान के दौरान संन्यासी अखाड़ों की आपसी भिड़ंत में पुलिस को गोलीबारी करनी पड़ी. इस गोलीबारी में दर्जनों नागा संन्यासी मारे गए थे. इसी तरह वर्ष 1986 के हरिद्वार कुंभ में हुआ हादसा वीवीआइपी श्रद्धालुओं के कुंभ स्नान के दौरान मची भगदड़ में कई लोगों की मौत हुई थी.

दो कमेटियों की सिफ़ारिशों की हुई अनदेखी

हरिद्वार के इस कुंभ में मुख्य पर्व स्नान 14 अप्रैल, 1986 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह सहित कई राज्यों के मुख्यमंत्री एवं दो दर्जन से ज्यादा सांसद स्नान करने पहुंच गए थे. इस सभी लोगों को स्नान कराने के लिए हर की पैड़ी पर आम लोगों को स्नान करने से रोका गया. तो भीड़ का दबाव बढ़ा और भगदड़ मच गई, जिसके चलते कई लोगों की मौत हुई.

इस दुर्घटना की जांच के लिए बनी कमेटी के प्रमुख वासुदेव मुखर्जी ने अपनी रिपोर्ट में मुख्य स्नान पर्व पर अतिविशिष्ट लोगों को ना आने देने की सिफ़ारिश की. लेकिन इस सिफ़ारिश की प्रयागराज के महाकुंभ में अनदेखी की गई. यहीं नही वर्मा कमेटी की सिफारिशों पर भी इस महाकुंभ में अमल नहीं किया गया.

इस कमेटी ने यह सिफ़ारिश की थी कि कुंभ मेले की व्यवस्था के लिए जिम्मेदार उच्च अधिकारियों का चयन मेला शुरू होने की तिथि से कम से कम सात-आठ महीने पहले कर लिया जाए और उन्हें जिम्मेदारी सौंपी जाए. पुलिस की व्यवस्था भी काफी पहले कर ली जाए और उन्हें मेला क्षेत्र में जरूरत के मुताबिक तैनात कर दिया जाए.

परेड और संगम क्षेत्र का एक बड़े भूभाग को खाली छोड़ा जाए. मेले में काली सड़क सहित चारों मार्ग संगम की ओर जाने के लिए सुरक्षित किए जाए. बाकी त्रिवेणी मार्ग सहित चार सड़कें संगम से लौटने वाले श्रद्धालुओं के लिए आरक्षित की जाए. मेला क्षेत्र में वन-वे ट्रैफिक की व्यवस्था का कठोरता से पालन किया जाए.

मेला क्षेत्र में लगाए गए साइन बोर्ड सरल भाषा में हों और हर सड़क पर लगे हुए बोर्ड में यह सूचना दी जानी चाहिए कि उस पर कौन से शिविर स्थित हैं. कहा जा रहा है कि कुंभ के दौरान भगदड़ से होने वाले हादसों को रोकने के लिए उक्त कमेटियों की सिफ़ारिशों का कड़ाई से पालन ना करने के चलते ही बुधवार को प्रयागराज में कई लोगों को जान गवानी पड़ी है.

यूपी के पुलिस महानिदेशक रहे विभूति नारायण राय कहते हैं कि प्रयागराज में हुआ हादसा प्रशासनिक लापरवाही और वीआईपी कल्चर को महत्व देने के कारण ही हुआ है. वह कहते है कि बारह से पंद्रह किलोमीटर पैदल चलकर  आम लोग संगम नोज में पहुंचे थे. वहां भीड़ थी ऐसे में प्रशासन के लोगों को लोगों को किसी और घाट की तरफ भेजा जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा किया नहीं गया और हादसा हो गया. 

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