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सोशल मीडिया संबंधी दिशानिर्देशों में आईटी कानून से इतर की बातें शामिल : पवन दुग्गल

By भाषा | Updated: February 28, 2021 14:17 IST

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नयी दिल्ली, 28 फरवरी जाने- माने साइबर विशेषज्ञ और वकील पवन दुग्गल ने केंद्र सरकार द्वारा सोशल मीडिया को लेकर जारी दिशानिर्देशों के उद्देश्य को सही बताते हुए कहा कि इनमें ऐसी कई बातें शामिल हैं जो सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम के परे जा रही हैं। ये दिशानिर्देश इसी कानून के तहत बनाए गए हैं और दुग्गल ने कहा कि इनका दुरुपयोग होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।

इस मुद्दे पर पेश है पवन दुग्गल के साथ ' भाषा ' के पांच सवाल और उनके जवाब-

1. सोशल मीडिया के विनियमन संबंधी सरकार के हालिया दिशानिर्देशों को आप कैसे देखते हैं ?

उत्तर : दिशानिर्देशों का उद्देश्य सही है। इनका सकारात्मक पहलू यह है कि सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि सोशल मीडिया कंपनियों को भारतीय कानूनों का पालन करना पड़ेगा, वरना उन्हें कानूनी परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। अब तक कंपनियां कहती थीं कि वे अमेरिकी कंपनियां हैं और वे भारतीय कानून के अधीन नहीं आती हैं। यह कहानी खत्म हो गई है। नियमों की कई सकारात्मक भूमिकाएं हैं तो साथ ही साथ इनके नकारात्मक पहलु और चुनौतियां भी हैं।

2. क्या इससे सोशल मीडिया के नकारात्मक पहलुओं पर लगाम कसी जा सकेगी?

उत्तरः सोशल मीडिया के नकारात्मक पहलुओं पर लगाम कसने का यह एक प्रयास है। कुछ हद तक तो यह प्रयास कामयाब होगा। लेकिन अगर आप सोचें कि यह जादू की छड़ी है और इससे सब कुछ ठीक हो जाएगा, तो ऐसा नहीं होने वाला है। कारण यह है कि सोशल मीडिया काफी विचित्र तरह का मंच है। पूरी तरह से दुरुपयोग को विनियमित नहीं कर पाएंगे। दूसरी बात, ये नियम सिर्फ भारत के अंदर ही लागू हैं। भारत के बाहर लागू हो ही नहीं सकते हैं। सोशल मीडिया सिर्फ भारत में तो है नहीं, भारत के बाहर भी है। मुझे लगता है कि नियमों को लागू करने में चुनौती होगी। इसमें कहीं न कहीं लोगों को लगेगा कि उनकी निजता के अधिकार का हनन होगा। कुछ हद तक नियंत्रण सही है। नियंत्रण उतना ही होना चाहिए जितना मूल कानून इसे करने की इजाजत दे। भारत का आईटी अधिनियम मूल कानून है जिसके तहत ये नियम बने हैं। इन नियमों को समग्र रुप से देखने पर पता चलता है कि इनमें कई ऐसे तत्वों को शामिल किया गया है जो मूल कानून में नहीं हैं। ये नियम संसद ने पारित नहीं किए हैं। संसद ने आईटी अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया है जो निजता का अधिकार छीनता हो। इसलिए मुझे लगता है कि मामले को अदालत ले जाया जा सकता है और अदालत तय करेगी कि इन नियमों की संवैधानिक वैधता है या नहीं।

3. इन दिशानिर्देशों के जरिये पहली बार डिजिटल और ऑनलाइन मीडिया को कानून के दायरे में लाया गया है। कहीं यह इन्हें नियंत्रित करने की कोशिश तो नहीं?

उत्तर : इसमें दो राय नहीं है कि यह ऑनलाइन समाचारों को विनियमित करने का प्रयास है। साथ में ओटीटी (ओवर द टॉप- वेब सीरीज़ आदि) मंचों की सामग्री को भी स्वनियमन के दौर से आगे ले जाना चाहते हैं। चाहे आप स्वनियमन की बात करें या नजर रखने की बात करें, यह नियंत्रण ही है। पिछले दशक को देखें तो स्वनियमन भारत में चलने वाला मॉडल नहीं है। मीडिया पर कोई अंकुश कानून के दायरे में ही लगाया जा सकता है और नजर रखने के तंत्र कानून के दायरे में नहीं आते हैं। इसके तहत कार्रवाई अदालत नहीं, नौकरशाह करेंगे। इन नियमों का दुरुपयोग होने की संभावना है और दुरुपयोग होगा तो आपको लगेगा कि आपकी स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जा रहा है।

4. किसान आंदोलन, लाल किले की घटना और फिर ग्रेटा थनबर्ग का मामला, क्या इन हालिया घटनाक्रमों ने भी इन दिशानिर्देशों के लिए सरकार को बाध्य किया?

उत्तर : इसमें दो राय नहीं है कि 2021 में जो घटनाएं हुई हैं उन्होंने सरकार को यह दिशानिर्देश लाने के लिए मजबूर किया है। दरअसल, सिद्धांत तो सही है कि सेवा प्रदाता कानून से ऊपर नहीं हैं। उन्हें कानून के दायरे में आना होगा है। मगर आपने (सरकार ने) लक्ष्मण रेखा को पार कर कुछ और तत्व डाल दिए हैं, जिसमें आप (सरकार) विनियमन कर रहे हैं। लोगों की निजता के अधिकार पर अंकुश लगाने का प्रयास कर रहे हैं। वहां पर दिक्कतें हैं। व्हाट्सएप का एकतरफा तरीके से निजता नीति बदलना, ग्रेटा थनबर्ग वाला मामला या लाल किले की घटना के बाद ट्विटर को साम्रगी ब्लॉक करने के लिए कहना और कंपनी का ऐसा नहीं करना। इन सभी मामलों ने साबित किया है कि कंपनियां अपने आपको बड़ा और भारतीय कानून से ऊपर समझती हैं। सरकार ने कह दिया है कि कंपनियों को कानून का पालन करना होगा।

5. अभिव्यक्ति की आजादी के लिहाज से इन नियमों की आप कैसे व्याख्या करेंगे?

उत्तर : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित अधिकार नहीं है। उसमें संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत वाजिब अंकुश लगाए जा सकते हैं। इसी प्रावधान के आधार पर सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने का प्रयास किया गया है। जो आधार सरकार ने लिए हैं, वे संविधान के तहत हैं। आधार बहुत विशाल हैं। इसमें क्या आएगा और क्या नहीं आएगा, यह मामले-दर-मामले पर तय करना होगा । सरकार को विवेकाधिकार बहुत दे दिए गए हैं। इन नियमों में और संतुलन होता तो ये और मजबूत बनते। जितने सुरक्षात्मक उपाय होने चाहिए थे, वह नहीं हैं। इसलिए मुझे लगता है कि इन नियमों के अनावश्यक इस्तेमाल और दुरुपयोग की आशंका हो सकती है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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